मुंशी प्रेमचंद से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियां मुंशी प्रेमचंद एक भारतीय लेखक थे जो अपने कलम नाम मुंशी प्रेमचंद से अधिक लोकप्रिय हैं। उन्हें अपनी लेखन की विपुल शैली के लिए जाना जाता है। जिन्होंने भारतीय साहित्य की एक विशिष्ट शाखा "हिंदुस्तानी साहित्य" में कई उत्कृष्ट साहित्यिक रचनाएँ दी हैं। मुंशी प्रेमचंद का जन्म और पालन-पोषण ब्रिटिश भारत के बनारस के लमही नामक गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। प्रेमचंद का बचपन ज्यादातर बनारस में ही बीता। उनके दादा गुरु सहाय राय ब्रिटिश सरकार के अधिकारी थे और उन्होंने ग्राम भूमि रिकॉर्ड-कीपर का पद संभाला था; जिसे उत्तर भारत में "पटवारी" के नाम से जाना जाता है। सात साल की उम्र में उन्होंने अपने गांव लमही के पास लालपुर में एक मदरसे में उर्दू की पढ़ाई करना शुरू कर दिया, जहां उन्होंने एक मौलवी से फारसी और उर्दू की शिक्षा प्राप्त की। आठ साल की उम्र में उन्होंने अपनी मां आनंदी देवी को खो दिया था। उनकी माँ उत्तर प्रदेश के करौनी नामक गाँव के एक धनी परिवार से तालुक रखती थीं। उनकी 1926 की लघु कहानी "बड़े घर की बेटी" में "आनंदी" का चरित्र उनकी माँ से प्रेरित है। पेश है लघु कहानी "बड़े घर की बेटी" की एक पंक्ति- जिस तरह सूखी लकड़ी जल्दी से जल उठती है, उसी तरह क्षुधा (भूख) से बावला मनुष्य ज़रा-ज़रा सी बात पर तिनक जाता है।” उनकी माँ के निधन के बाद प्रेमचंद को उनकी दादी ने पाला था; हालाँकि उनकी दादी की भी जल्द ही मृत्यु हो गई।…
| जीवन परिचय | |
|---|---|
| वास्तविक नाम | धनपत राय श्रीवास्तव [1]Dainik Jagran |
| उपनाम | • मुंशी प्रेमचंद • नवाब राय नोट: उनके चाचा महाबीर ने उन्हें "नवाब" उपनाम दिया था, जो एक अमीर जमींदार थे। |
| व्यवसाय | • कवि • उपन्यासकार • लघुकथा लेखक • नाटककार |
| जाने जाते हैं | भारत में सबसे महान उर्दू-हिंदी लेखकों में से एक होने के नाते |
| करियर | |
| पहला उपन्यास | देवस्थान रहस्य (असरार-ए-म'आबिद); 1903 में प्रकाशित |
| आखिरी उपन्यास | मंगलसूत्र (अपूर्ण); 1936 में प्रकाशित |
| उल्लेखनीय उपन्यास | • सेवा सदन (1919 में प्रकाशित) • निर्मला (1925 में प्रकाशित) • गबन (1931 में प्रकाशित) • कर्मभूमि (1932 में प्रकाशित) • गोदान (1936 में प्रकाशित) |
| पहली प्रकाशित कहानी | दुनिया का सबसे अनमोल रतन (1907 में उर्दू पत्रिका ज़माना में प्रकाशित) |
| आखिरी प्रकाशित स्टोरी | क्रिकेट मैचिंग; उनकी मृत्यु के बाद 1938 में ज़माना में प्रकाशित हुई |
| उल्लेखनीय लघु कथाएँ | • बड़े भाई साहब (1910 में प्रकाशित) • पंच परमेश्वर (1916 में प्रकाशित) • बूढ़ी काकी (1921 में प्रकाशित) • शतरंज के खिलाड़ी (1924 में प्रकाशित) • नमक का दरोगा (1925 में प्रकाशित) • पूस की रात (1930 में प्रकाशित) • ईदगाह (1933 में प्रकाशित) • मंत्र |
| व्यक्तिगत जीवन | |
| जन्मतिथि | 31 जुलाई 1880 (शनिवार) |
| जन्मस्थान | लमही, बनारस राज्य, ब्रिटिश भारत |
| मृत्यु तिथि | 8 अक्टूबर 1936 (गुरुवार) |
| मृत्यु स्थल | वाराणसी, बनारस राज्य, ब्रिटिश भारत |
| मृत्यु कारण | लम्बी बीमारी के चलते मृत्यु |
| आयु (मृत्यु के समय) | 56 वर्ष |
| राशि | सिंह (Leo) |
| हस्ताक्षर/ऑटोग्राफ | |
| राष्ट्रीयता | भारतीय |
| गृहनगर | वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत |
| धर्म | हिन्दू |
| जाति | कायस्थ: [2]The Times of India |
| स्कूल/विद्यालय | • क्वींस कॉलेज, बनारस (अब, वाराणसी) • सेंट्रल हिंदू कॉलेज, बनारस (अब, वाराणसी) |
| कॉलेज/विश्वविद्यालय | इलाहाबाद विश्वविद्यालय |
| शैक्षिक योग्यता | • प्रेमचंद ने वाराणसी के लम्ही के एक मदरसे में एक मौलवी से उर्दू और फारसी का अध्ययन किया। • उन्होंने क्वीन्स कॉलेज से मैट्रिक की परीक्षा द्वितीय श्रेणी के साथ उत्तीर्ण किया। • उन्होंने 1919 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य, फारसी और इतिहास में बीए किया। [3]The Penguin Digest |
| विवाद | • उनके कई समकालीन लेखकों ने अक्सर उनकी पहली पत्नी को छोड़ने और एक बाल विधवा से शादी करने पर उनकी आलोचना की। यहां तक कि उनकी दूसरी पत्नी, शिवरानी देवी ने अपनी पुस्तक "प्रेमचंद घर में" में लिखा है कि उनके अन्य महिलाओं के साथ भी संबंध थे। • विनोदशंकर व्यास और प्रवासीलाल वर्मा, जो उनके प्रेस "सरस्वती प्रेस" में वरिष्ठ कार्यकर्ता थे, ने उन पर धोखाधड़ी करने का आरोप लगाया था। • बीमार होने पर अपनी बेटी के इलाज के लिए रूढ़िवादी हथकंडे अपनाने के लिए उन्हें समाज के एक धड़े से आलोचना मिली। |
| प्रेम संबन्ध एवं अन्य जानकारियां | |
| वैवाहिक स्थिति | विवाहित |
| विवाह तिथि | • वर्ष 1895 (पहली शादी, अरेंज मैरिज) • वर्ष 1906 (दूसरी शादी, लव मैरिज) |
| परिवार | |
| पत्नी | • पहली पत्नी: उन्होंने 15 साल की उम्र में 9वीं कक्षा में पढ़ते समय एक अमीर जमींदार परिवार की लड़की से शादी कर ली। • दूसरी पत्नी: शिवरानी देवी (बाल विधवा) |
| बच्चे | बेटा - 2 • अमृत राय (लेखक) • श्रीपथ राय बेटी - कमला देवी नोट: उनके सभी बच्चे उनकी दूसरी पत्नी से हैं। |
| माता/पिता | पिता- अजायब राय (डाकघर में क्लर्क) माता- आनंदी देवी |
| भाई/बहन | भाई- ज्ञात नहीं बहन- सुग्गी राय (बड़ी) नोट: उनकी दो और बहनें थीं जिनकी मृत्यु शिशु अवस्था में हो गई थी। |
| पसंदीदा चीजें | |
| शैली | कथा |
| उपन्यासकार | जॉर्ज डब्ल्यू एम रेनॉल्ड्स (एक ब्रिटिश कथा लेखक और पत्रकार) [4]Makers of Indian Literature by Professor Prakash Chandra Gupta |
| लेखक | चार्ल्स डिकेंस, ऑस्कर वाइल्ड, जॉन गल्सवर्थी, सादी शिराज़ी, गाइ डे मौपासेंट, मौरिस मैटरलिंक, और हेंड्रिक वैन लून |
| उपन्यास | जॉर्ज डब्ल्यू एम रेनॉल्ड्स द्वारा "द मिस्ट्रीज़ ऑफ़ द कोर्ट ऑफ़ लंदन" [5]Makers of Indian Literature by Professor Prakash Chandra Gupta |
| दार्शनिक | स्वामी विवेकानंद |
| भारतीय स्वतंत्रता सेनानी | महात्मा गांधी, गोपाल कृष्ण गोखले, और बाल गंगाधर तिलक |
जिस तरह सूखी लकड़ी जल्दी से जल उठती है, उसी तरह क्षुधा (भूख) से बावला मनुष्य ज़रा-ज़रा सी बात पर तिनक जाता है।”
बच्चों के लिए बाप एक फालतू-सी चीज – एक विलास की वस्तु है, जैसे घोड़े के लिए चने या बाबुओं के लिए मोहनभोग। माँ रोटी-दाल है। मोहनभोग उम्र-भर न मिले तो किसका नुकसान है; मगर एक दिन रोटी-दाल के दर्शन न हों, तो फिर देखिए, क्या हाल होता है।”
हमें अपने साहित्य का स्तर ऊंचा करना होगा, ताकि वह समाज की अधिक उपयोगी सेवा कर सके… हमारा साहित्य जीवन के हर पहलू पर चर्चा करेगा और उसका आकलन करेगा और हम अब अन्य भाषाओं और साहित्य के बचे हुए खाने से संतुष्ट नहीं होंगे। हम स्वयं अपने साहित्य की पूंजी बढ़ाएंगे।”
जीवन एक दीर्घ पश्चाताप के सिवा और क्या है!”
जीत कर आप अपने धोखेबाजियों की डींग मार सकते हैं, जीत में सब-कुछ माफ है। हार की लज्जा तो पी जाने की ही वस्तु है।”
हममें खूबसूरती का मायार बदला होगा (हमें सुंदरता के मापदंडों को फिर से परिभाषित करना होगा)।”
सबसे ज्यादा प्रसन्न है हामिद। वह चार-पांच साल का गरीब-सूरत, दुबला-पतला लड़का, जिसका बाप गत वर्ष हैजे की भेंट हो गया और मां न जाने क्यों पीली होती-होती एक दिन मर गई। किसी को पता न चला, क्या बीमारी है। कहती भी तो कौन सुनने वाला था। दिल पर जो बीतती थी, वह दिल ही में सहती और जब न सहा गया तो संसार से विदा हो गई। अब हामिद अपनी बूढ़ी दादी अमीना की गोद में सोता है और उतना ही प्रसन्न है। उसके अब्बाजान रुपए कमाने गए हैं। बहुत-सी थैलियां लेकर आएंगे। अम्मीजान अल्लाह मियां के घर से उसके लिए बड़ी अच्छी-अच्छी चीजें लाने गई है, इसलिए हामिद प्रसन्न है। आशा तो बड़ी चीज है और फिर बच्चों की आशा! उनकी कल्पना तो राई का पर्वत बना लेती हैं।”
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