जहां एक और स्वच्छता अभियान चल रहा हैं वही दक्षिण भारत के एक गरीब परिवार मे जन्मे अरुनाचलम मुरुगनांथम की कहानी इस दिशा मे एक मिल के पत्थर की तरह है एक सस्ते सैनिटरी पैड की खोज/निर्माण करके उन्होंने न केवल भारत बल्कि दूसरे अन्य विकासशील देशों की ग्रामीण महिलाओं के स्वास्थ्य में एक क्रांति कारी परिवर्तन किया है। आइए भारत के पैडमैन की प्रेरणादायक कहानी को विस्तार से पढ़ें: अरुनाचलम मुरुगनांथम का प्रारंभिक जीवन अरुनाचलम मुरुगनांथम का जन्म 1962 में भारत के कोयंबतूर में एक हथ-करघा बुनकरों के परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम एस अरुणाचलम और माता का नाम ए वनिता है। मुरुगनांथम के पिता का एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया था, जिसके कारण बचपन में ही मुरुगनांथम को गरीबी का सामना करना पड़ा। उनके अध्ययन में मदद करने के लिए, उनकी मां एक खेत में मजदूर के रूप में कार्य किया करती थीं। वह अपनी मां को दुःखी देखा करते थे। घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उन्हें 14 वर्ष की उम्र में ही कारखाने के कर्मचारियों को भोजन की आपूर्ति, मशीन उपकरण ऑपरेटर, खेत मजदूर, वेल्डर आदि के रूप में विभिन्न नौकरियाँ करनी पड़ीं। अपनी पत्नी को प्रसन्न कीजिए और एक वैज्ञानिक बने वर्ष 1998 में, उन्होंने शांति नामक एक महिला से शादी कर ली। शादी के बाद उनकी पत्नी मासिक धर्म के दौरान अख़बार और पुराने कपड़ो का इस्तेमाल किया करती थी, क्योंकि उस समय पैड की कीमत बहुत ज्यादा होती थी। जिसकी वजह से वह उन्हें खरीद…
जहां एक और स्वच्छता अभियान चल रहा हैं वही दक्षिण भारत के एक गरीब परिवार मे जन्मे अरुनाचलम मुरुगनांथम की कहानी इस दिशा मे एक मिल के पत्थर की तरह है एक सस्ते सैनिटरी पैड की खोज/निर्माण करके उन्होंने न केवल भारत बल्कि दूसरे अन्य विकासशील देशों की ग्रामीण महिलाओं के स्वास्थ्य में एक क्रांति कारी परिवर्तन किया है। आइए भारत के पैडमैन की प्रेरणादायक कहानी को विस्तार से पढ़ें:
अरुनाचलम मुरुगनांथम का जन्म 1962 में भारत के कोयंबतूर में एक हथ-करघा बुनकरों के परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम एस अरुणाचलम और माता का नाम ए वनिता है। मुरुगनांथम के पिता का एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया था, जिसके कारण बचपन में ही मुरुगनांथम को गरीबी का सामना करना पड़ा। उनके अध्ययन में मदद करने के लिए, उनकी मां एक खेत में मजदूर के रूप में कार्य किया करती थीं। वह अपनी मां को दुःखी देखा करते थे। घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उन्हें 14 वर्ष की उम्र में ही कारखाने के कर्मचारियों को भोजन की आपूर्ति, मशीन उपकरण ऑपरेटर, खेत मजदूर, वेल्डर आदि के रूप में विभिन्न नौकरियाँ करनी पड़ीं।
वर्ष 1998 में, उन्होंने शांति नामक एक महिला से शादी कर ली। शादी के बाद उनकी पत्नी मासिक धर्म के दौरान अख़बार और पुराने कपड़ो का इस्तेमाल किया करती थी, क्योंकि उस समय पैड की कीमत बहुत ज्यादा होती थी। जिसकी वजह से वह उन्हें खरीद नहीं सकती थी। यह बात जब मुरुगनांथम को पता चली तब उन्होंने अपनी पत्नी को प्रभावित करने के लिए एक प्रोटोटाइप पैड डिजाइन किया और अपनी पत्नी को प्रस्तुत किया और उससे कहा कि वह इसका परीक्षण करे। हालांकि, प्रतिक्रिया नकारात्मक थी क्योंकि वह उनकी पत्नी के लिए बेकार था और उसने अख़बार और पुराने कपड़ों का इस्तेमाल करना जारी रखा। इसे प्रभावित हो कर मुरुगनांथम ने सस्ते पैड बनाने का संकल्प किया।
दुकान पर उपलब्ध और उनके पैड के बीच क्या अंतर था? उन्होंने इसकी खोज करनी शरू कर दी, मुरुगनांथम ने विभिन्न सामग्रियों के साथ प्रयोग करना शुरू कर दिया, लेकिन एक परेशानी थी, उनके अपने पैड का परीक्षण करने के लिए हर बार उसे एक महीने तक इंतजार करना पड़ता था। अपने प्रोटोटाइप का परीक्षण करने के लिए मुरुगनांथम को कुछ स्वयंसेवकों की आवश्यकता थी। उन्होंने अपने गांव के करीब एक मेडिकल कॉलेज की महिला छात्रों से संपर्क किया। उनमें से ज्यादातर ने उनका प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया, और कुछ ने उनका प्रस्ताव स्वीकार किया, लेकिन वो मासिक धर्म के मुद्दों पर चर्चा करने में शर्माती थीं। इसके बाद मुरुगनांथम ने खुद पर ही पैड का परीक्षण करने का फैसला किया। फिर उन्होंने खुद पर सैनिटरी पैड का परीक्षण करने का निर्णय लिया। उन्होंने एक फुटबॉल ब्लैडर से ‘गर्भाशय’ बनाया और इसे बकरी के खून से भर दिया। मुरुगनांथम अपने द्वारा बनाए गए सैनिटरी पैड के अवशोषण दर का परीक्षण करने के लिए उसे अपने कपड़ो के नीचे एक कृत्रिम गर्भाशय के तौर पर लगा लिया और दौड़ना, चलना और साइकिल चलाना शरू कर दिया। उनकी कहानी से प्रेरित होकर अमित वर्मानी ने उनकी जीवनी फिल्म “मेन्स्त्रुअल मैन” लिखी।
उनके कपड़े से बाहर निकलने वाली गंध की वजह से लोगो उनका बहिष्कार करने लगे। हर कोई सोचा था कि वह पागल हो गया है। 18 महीनों तक अपनी पत्नी के लिए सैनिटरी पैड बनाने के लिए शोध करने के बाद उनकी पत्नी उन्हें छोड़ कर चली गई। कुछ समय बाद उनकी मां ने भी उन्हें छोड़ दिया। उनकी पहचान विकृत ( Pervert) व्यक्ति कि तरह हो गई और अंत में मुरुगनांथम को उनके गांव से भी बहिष्कृत कर दिया गया। यह सबसे बुरी स्थिति थी की गांव वाले इस बात से आश्वस्त हो गए थे कि वह कुछ बुरी आत्माओं से घिरे हुए है और उसे एक स्थानीय ज्योतिषी द्वारा ठीक करने के लिए पेड़ के साथ बाँध दिया गया। ज्योतिषी के उपचार से बचने के लिए मुरुगनांथम गांव छोड़ने के लिए राजी हो गए। एक साक्षात्कार में, मुरुगनांथम ने कहा- ‘मेरी पत्नी चली गयी, मेरी मां चली गयी, मुझे गांव से बहिष्कृत कर दिया गय। वह आगे कहते है ‘मैं जीवन मे अकेला रहा गया था। इन सब के बावजूद मुरुगनांथम ने सस्ते सैनिटरी पैड बनाने का प्रयास जारी रखा।
उनके लिए सबसे बड़ा रहस्य यह था की आखिरकार सैनिटरी पैड बनता किस चीज से है? हालांकि, जिस कपास का वह उपयोग कर रहे थे, वह बहुराष्ट्रीय कंपनियों से बिलकुल अलग थी। चूंकि उस समय मुरुगनांथम को ज्यादा अंग्रेजी नहीं आती थी, और इसलिए कॉलेज के एक प्रोफेसर ने उनकी औद्योगिक संगठनों को पत्र लिखने में मदद की। इस प्रक्रिया में, मुरुगनांथम के लगभग 7,000 रुपये टेलीफोन कॉल पर खर्च हो गए थे। अंत में, कोयंबतूर स्थित एक कपड़ा मिल के मालिक ने मुरुगनांथम से कुछ नमूनों के लिए अनुरोध किया। कुछ हफ्ते बाद, मुरुगनांथम को सैनिटरी पैड बनाने में इस्तेमाल की जाने वाली वास्तविक सामग्री के बारे में पता चला, यह सेलुलोस था जो कि पेड़ों की छाल से निकला जाता है। सैनिटरी पैड किस चीज़ से बनता हैं यह पता लगाने में उन्हें 2 वर्ष और 3 महीने लग गए थे, हालांकि, अभी भी एक अड़चन थी सैनिटरी पैड बनाने के लिए एक मशीन की आवकश्यता थी, जिसकी कीमत हजारों डॉलर थी और इसलिए उन्होंने खुद मशीन बनाने का निर्णय लिया। साढ़े चार सालों के प्रयोगों के बाद, उन्होंने कम लागत वाले सैनिटरी तौलिये प्रणाली का अविष्कार किया।
उनका पहला मॉडल ज्यादातर लकड़ी से बना हुआ था, और जब उन्होंने आईआईटी मद्रास के वैज्ञानिकों को इसे दिखाया, तो उन्होंने इसे राष्ट्रीय नवप्रवर्तन स्पर्धा में अपनी (मुरुगनांथम) मशीन को प्रवेश करने के लिए कहा। उनका मॉडल 943 प्रविष्टियों में से चुना गया। भारत की पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने मुरुगनांथम को उनकी नई खोज के लिए सम्मानित किया।
अचानक, मुरुगनांथम सुर्खियों में आ गए, और साढ़े पांच साल के बाद उनकी पत्नी शांती भी उनके पास वापस आ गई। उन्होंने “जयश्री इंडस्ट्रीज” की स्थापना की, जो अब भारत भर में ग्रामीण महिलाओं के लिए कम-लागत में सैनिटरी नैपकिन बनाने वाली मशीनों की बिक्री करती है। मुरुगनांथम अपनी सफलता के पीछे अपनी प्रतिष्ठा और तक़दीर को मानते हैं, मशीन बनाने के पीछे उनका कोई व्यक्तिगत लाभ नहीं था। मुरुगनांथम के पास कम लगता में सैनिटरी नैपकिन बनाने वाली विश्व की एकमात्र मशीन थी, जिसको वह पेटेंट भी करवा सकते थे। यदि उनकी जगह कोई एमबीए डिग्री धारक व्यक्ति होता तो वह इस मशीन को पेटेंट करवा देता।
उन्होंने 18 महीनों में 250 मशीनें बनाईं और उन्हें भारत के सबसे अविकसित और सबसे गरीब राज्यों में ले गए- जैसे कि- बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश। उनके अधिकांश ग्राहक महिला स्व-सहायता समूह और गैर-सरकारी संगठन हैं। हाथ से चलने वाली मशीन की कीमत करीब 75,000 रुपए है, जबकि एक अर्द्ध-स्वचालित मशीन की कीमत इससे अधिक है। प्रत्येक मशीन 10 लोगों के लिए रोजगार प्रदान करती है और 3,000 महिलाओं के लिए वह पैड बना सकती है। हर मशीन प्रति दिन 200-250 पैड का बना सकती है, जिसे लगभग 2.5 रुपए की औसत से बेचा जा सकता है। मुरुगनांथम दुनिया भर में 106 देशों में व्यापार कर रहें है जैसे कि – मॉरीशस, केन्या, नाईजीरिया, बांग्लादेश और फ़िलीपीन्स इत्यादि।
वह एक सामाजिक उद्यमी के रूप में जाने जाते हैं और आईआईएम अहमदाबाद, आईआईएम बैंगलोर, आईआईटी बॉम्बे और हार्वर्ड सहित कई प्रतिष्ठित संस्थानों में व्याख्यान (लेक्चर) दे चुके है।
मुरुगनांथम ने एक बार “TED Talks” किया था।
अरुनाचलम मुरुगनांथम के महान काम से प्रभावित होकर, वर्ष 2014 में, टाइम पत्रिका ने उन्हें दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में रखा।
वर्ष 2016 में, भारत सरकार ने उन्हें चौथी उच्चतम नागरिक पुरस्कार-पद्म श्री से सम्मानित किया। उन्हें भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा पुरस्कार प्राप्त किया।
मुरुगनांथम के कार्य से प्रेरित होकर, लेखक और निर्देशक आर. बाल्की ने उनके जीवन पर एक फिल्म “पैडमैन” बनाने का फैसला किया। जिसमें अक्षय कुमार ने अरुनाचलम मुरुगनांथम की भूमिका निभाई।
मुरुगनांथम का प्राथमिक उद्देश्य भारत मे फैली महिलाओ के मासिक धर्म से जुड़ी रूढ़िवादिता एक कुरीतियों को दूर करना था- जैसे कि मासिक धर्म वाली महिलाएं सार्वजनिक स्थानों और मंदिरों में नहीं जा सकती है। वो जलाशयों के पास नहीं जा सकती है और उन्हें खाना बनाने की अनुमति भी नहीं होती है। यह तक की मासिक धर्म के समय महिलाओं को साथ एक अछूत जैसा व्यवहार किया जाता है। उनका उद्देश्य सिर्फ सस्ती सैनिटरी पैड बनाना ही नहीं है, बल्कि ग्रामीण महिलाओं के लिए रोजगार प्रदान करना भी है। शुरू में, उनका लक्ष्य गरीब महिलाओं के लिए 10 लाख नौकरियां प्रदान करना था, लेकिन अब, उनका उद्देश्य दुनिया भर में 1 करोड़ नौकरियों को प्रदान करना है।
मुरुगनांथम एक छोटे से अपार्टमेंट में अपने परिवार के साथ रहते हैं। वह कहते है कि उन्हें कोई इच्छा नहीं है की वह किसी बड़े घर में रहें ‘यदि आप अमीर हो जाते हैं, तो आपके पास एक अतिरिक्त बेडरूम वाला अपार्टमेंट होता है- और फिर आप मर जाते है’।
उनकी यह कहानी वाकई में एक प्रेरणादायक है कि किस प्रकार हम अपनी दृढ़ इच्छा से आगे बढ़ सकते हैं। मुरुगनांथम, अपनी पत्नी शांति को अपनी प्रेरणा मानते हैं, क्योंकि उनके द्वारा पुराने कपड़ों का इस्तेमाल करने पर ही उनका ध्यान महिलाओं की इस समस्या पर गया। इनकी इस कहानी से कई पुरूषों को प्रेरणा मिलती है कि वो दिमाग से खुले अंदाज में सोचें, जो करना चाहते हैं उसे करते रहें न कि समाज की फिक्र करें। प्रस्तुत है मुरुगनांथम के जीवन की एक झलक:
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