इस दुनिया में शयद ही कोई होगा जो गामा पहलवान को नहीं जानता होगा। कुश्ती पहलवानी का नाम सुनते ही एक नाम सबसे पहले आता है वो है- गामा पहलवान। दिमाग में एक तस्वीर बनती है तगड़े-चौड़े मुस्टंडे वाले व्यक्ति की जिसके चेहरे पर तेज और रौबीली मूंछे होती हैं भीमकाय डोले और तना हुआ सीना। गामा पहलवान भारत के एकमात्र ऐसे पहलवान थे, जिन्होंने अपने पूरे जीवन में कभी कोई कुश्ती नहीं हारी थी। रुस्तम-ए-हिंद (भारत चैंपियन) से रुस्तम-ए-ज़माना (विश्व चैंपियन) तक गामा पहलवान को दिए गए प्रत्येक शीर्षक हमेशा किंवदंती का वर्णन करने के लिए कम हैं। गामा पहलवान की विरासत ऐसी है कि उनकी मृत्यु के पांच दशकों के बाद भी भारतीय उपमहाद्वीप में हर पहलवान गामा की तरह बनने की इच्छा रखता है और कहा जाता है कि मशहूर मार्शल आर्टिस्ट ब्रूस ली गामा पहलवान से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इन्हें अपना प्रेरणास्त्रोत मान लिया था। चलो आज हम गामा पहलवान के जीवन के बारे में विस्तार से पढ़ते हैं: एक पहवालन के घर में जन्म उनका जन्म गांव जब्बोवाल अमृतसर के कश्मीरी परिवार में 22 मई 1878 को गुलाम मोहम्मद बख्श के रूप में हुआ था। उनका परिवार विश्व स्तर के पहलवानों की वजह से जाना जाता है। प्रारंभिक कुश्ती अध्ययन जब गामा 6 वर्ष के थे, तो उनके पिता मोहम्मद अजीज बक्श का देहांत हो गया था जो कि एक प्रसिद्ध पहलवान थे। उनके पिता की मृत्यु के बाद, गामा पहलवान की देखभाल उनके नाना और नून पहलवान ने की थी। नून पहलवान…
इस दुनिया में शयद ही कोई होगा जो गामा पहलवान को नहीं जानता होगा। कुश्ती पहलवानी का नाम सुनते ही एक नाम सबसे पहले आता है वो है- गामा पहलवान। दिमाग में एक तस्वीर बनती है तगड़े-चौड़े मुस्टंडे वाले व्यक्ति की जिसके चेहरे पर तेज और रौबीली मूंछे होती हैं भीमकाय डोले और तना हुआ सीना। गामा पहलवान भारत के एकमात्र ऐसे पहलवान थे, जिन्होंने अपने पूरे जीवन में कभी कोई कुश्ती नहीं हारी थी। रुस्तम-ए-हिंद (भारत चैंपियन) से रुस्तम-ए-ज़माना (विश्व चैंपियन) तक गामा पहलवान को दिए गए प्रत्येक शीर्षक हमेशा किंवदंती का वर्णन करने के लिए कम हैं। गामा पहलवान की विरासत ऐसी है कि उनकी मृत्यु के पांच दशकों के बाद भी भारतीय उपमहाद्वीप में हर पहलवान गामा की तरह बनने की इच्छा रखता है और कहा जाता है कि मशहूर मार्शल आर्टिस्ट ब्रूस ली गामा पहलवान से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इन्हें अपना प्रेरणास्त्रोत मान लिया था। चलो आज हम गामा पहलवान के जीवन के बारे में विस्तार से पढ़ते हैं:
उनका जन्म गांव जब्बोवाल अमृतसर के कश्मीरी परिवार में 22 मई 1878 को गुलाम मोहम्मद बख्श के रूप में हुआ था। उनका परिवार विश्व स्तर के पहलवानों की वजह से जाना जाता है।
जब गामा 6 वर्ष के थे, तो उनके पिता मोहम्मद अजीज बक्श का देहांत हो गया था जो कि एक प्रसिद्ध पहलवान थे। उनके पिता की मृत्यु के बाद, गामा पहलवान की देखभाल उनके नाना और नून पहलवान ने की थी। नून पहलवान की मृत्यु के बाद उनके चाचा इदा ने उनकी देखभाल की और उन्होंने ही गामा पहलवान को कुश्ती में पहली बार प्रशिक्षण दिया।
सन 1888 में, 10 वर्ष की आयु में गामा को पहली बार सार्वजनिक रूप से देखा गया था। जब उन्होंने जोधपुर में आयोजित एक प्रतियोगिता में भाग लिया था। प्रतियोगिता में गामा का स्थान 15 नंबर पर था। जोधपुर के महाराजा गामा के प्रदर्शन से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने गामा को विजेता घोषित कर दिया।
जब कुश्ती में गामा के कौशल की कहानी दतिया के महाराजा तक पहुंच गई, तब उन्होंने उन्हें प्रशिक्षण देने के लिए अपने साथ रख लिया, और इस प्रकार गामा पहलवान की पेशेवर कुश्ती यात्रा शुरू हुई।
कुछ सूत्रों के अनुसार, उनकी खुराक में छह देशी मुर्गियां, 10 लीटर दूध, आधा किलो घी और बादाम का टॉनिक होता था।
सूत्रों के अनुसार, गामा प्रशिक्षण के दौरान प्रतिदिन 40 पहलवानों के साथ अखाड़ा में कुश्ती किया करते थे। गामा एक दिन में 5000 उठक-बैठक (squats) और 3000 दंड (pushups) किया करते थे।
सूत्रों के अनुसार, गामा पहलवान ने वर्ष 1902 में बड़ौदा में 1200 किलो का एक पत्थर उठाया था और वह इसको उठा कर कुछ दुरी तक चले भी थे। अब इस पत्थर को बड़ौदा के संग्रहालय में रखा गया है।
सन 1895 में, 17 वर्ष की उम्र में गामा ने रहीम बख्श सुल्तानीवाला (तत्कालीन भारतीय कुश्ती चैंपियन) कश्मीरी पहलवान को चुनौती दे डाली, जो कि गुजरांवाला, पंजाब, पाकिस्तान से थे। रहीम बख्श सुल्तानीवाला एक मध्यम आयु वर्ग के आदमी थे जिनकी ऊँचाई लगभग 7 फीट थी और उनके पास एक शानदार रिकॉर्ड भी था। कुश्ती का मुकाबला कई घंटों तक चला और अंततः यह प्रतियोगिता ड्रॉ से समाप्त हो गई। रहीम बख्श सुल्तानीवाला के साथ उनका मुकाबला उनके जीवन में सबसे अहम था।
वर्ष 1910 तक, रहीम बख्श सुल्तानीवाला को छोड़कर गामा ने उन सभी प्रमुख भारतीय पहलवानों को हराया जिन्होंने उनसे कुश्ती की।
अपनी घरेलू सफलताओं के बाद गामा ने अपना ध्यान दुनिया के अन्य हिस्सों पर केंद्रित कर दिया। पश्चिमी पहलवानों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए गामा अपने छोटे भाई इमाम बख्श के साथ इंग्लैंड गए। हालांकि उनके छोटे कद के कारण उन्हें बाद में प्रवेश प्राप्त हुआ। जब वह लंदन में थे तो उन्होंने पहलवानों को चुनौती दी कि वह 30 मिनट के किसी भी वज़न वर्ग में 3 पहलवानों को फेंक सकते हैं, लेकिन कोई भी इसे मानने के लिए तैयार नहीं था वह सब यह समझते थे कि वह उनको बेवकूफ बना रहे हैं।
इसके अलावा, गामा ने स्टैनिसलॉस जबिश्को और फ्रैंक गॉच को विशेष रूप से चुनौती दे दी और कहा कि या तो वह उनसे मुकाबला करें या फिर उन्हें पुरस्कार राशि दें। यह चुनौती पहली बार अमेरिका के पहलवान ‘बैंजामिन रोलर’ ने स्वीकार की। गामा ने रोलर को 1 मिनट 40 सेकेण्ड में पछाड़ दिया और फिर दोबारा गामा और रोलर के बीच में कुश्ती हुई, जिसमें रोलर 9 मिनट 10 सेकेण्ड ही टिक सका। अगले दिन गामा ने 12 पहलवानों को हराकर आधिकारिक टूर्नामेंट में प्रवेश प्राप्त किया।
10 सितंबर 1910 को, लंदन के ‘जॉन बुल बैल्ट’ विश्व चैंपियनशिप के फाइनल में गामा ने विश्व चैंपियन ‘स्टेनिस्लस ज़िबेस्को’ का सामना किया। मैच £250 (₹22000) पुरस्कार राशि के लिए था। लगभग तीन घंटों तक कुश्ती होने के बाद ज़िबेस्को और गामा के बीच यह मुकाबल ड्रा हो गया। दूसरे दिन, जब ज़िबेस्को और गामा के बीच मुकाबला होना था, तो ज़िबेस्को डर के मारे मैदान में ही नहीं आया और फिर गामा को विजेता घोषित कर दिया गया।
पश्चिमी देशों के अपने दौरे के दौरान, गामा ने दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित पहलवानों को हराया। जैसे कि- फ्रांस के मॉरिस देरिज़, संयुक्त राज्य अमेरिका के डॉक” बेंजामिन रोलर, स्वीडन के जॅसी पीटरसन (विश्व चैंपियन) और स्विट्जरलैंड के जोहान लेम (यूरोपियन चैंपियन) । बेंजामिन रोलर के साथ कुश्ती लड़ते हुए, गामा ने उन्हें 15 मिनट में 13 बार फेंका।
दुनिया के कई प्रसिद्ध पहलवानों को हराने के बाद, गामा ने उन लोगों के लिए एक चुनौती जारी की जो “विश्व चैंपियन” के शीर्षक का दावा करते थे। जिसमें जापान का जूडो पहलवान ‘तारो मियाकी’, रूस का ‘जॉर्ज हॅकेन्शमित’, अमरीका का ‘फ़ॅन्क गॉश’ शामिल थे। हालांकि, उनमें से किसी ने भी उनके निमंत्रण को स्वीकार नहीं किया।
इसके बाद गामा पहलवान ने कहा कि वो एक के बाद एक लगातार बीस पहलवानों से लड़ेगा, लेकिन फिर भी किसी ने उनकी चुनौती स्वीकार नहीं की।
इंग्लैंड से भारत लौटने के बाद गामा और रहीम बख्श सुल्तानीवाला के बीच इलाहाबाद में कुश्ती हुई। यह कुश्ती काफ़ी देर तक चली और गामा ने इस कुश्ती को जीतकर रुस्तम-ए-हिंद का ख़िताब प्राप्त किया।
जब उनसे उनके सबसे मजबूत प्रतिद्वंद्वी के बारे में पूछा गया तो गामा ने उत्तर दिया “रहीम बख्श सुल्तानीवाला”।
वर्ष 1922 में, इंग्लैंड के ‘प्रिंस ऑफ़ वेल्स’ ने भारत की यात्रा के दौरान गामा को चाँदी का एक बेशक़ीमती ‘गदा’ (ग़ुर्ज) उपहार स्वरूप प्रदान किया था।
वर्ष 1927 तक गामा को किसी ने चुनौती नहीं दी थी। हालांकि, शीघ्र ही यह घोषणा की गई कि गामा और ज़िबेस्को एक बार फिर से एक-दूसरे का सामना करेंगे। जनवरी 1928 में पटियाला में मुकाबला हुआ और गामा ने एक मिनट के अंदर ज़िबेस्को को हरा दिया और विश्व कुश्ती चैंपियनशिप के विजेता बने। मुकाबले के बाद ज़िबेस्को ने गामा को “टाइगर” के रूप में संबोधित किया।
फरवरी 1929 में गामा ने जेसी पीटरसन से मुकालबा किया जिसमें उन्होंने ‘जेसी पीटरसन’ को डेढ़ मिनट में पछाड़ दिया। इस मुकाबले में गामा विजयी रहे।
वर्ष 1940 में, हैदराबाद के निजाम के निमंत्रण पर गामा ने उनके सभी पहलवानों को हराया फिर निजाम ने उन्हें पहलवान बलराम हेरमन सिंह यादव से लड़ने के लिए भेजा, जो कभी अपने जीवन में पराजित नहीं थे। एक लंबे समय तक चली कुश्ती के बाद गामा उसे हरा नहीं पाए। आखिरकार यह मुकालबा ड्रा हो गया और कोई भी पहलवान नहीं जीता।
वर्ष 1947 में, भारत पाकिस्तान विभाजन के बाद वह पाकिस्तान चले गए थे। वर्ष 1952 में उनकी सेवानिवृत्ति तक कोई भी गामा पहलवान को हरा नहीं पाया था।
कुछ सूत्रों के अनुसार, गामा ने अपने जीवन में दो बारी निकाह किया एक वज़ीर बेगम के साथ और एकअन्य। उनके 5 पुत्र और 4 पुत्रियां थीं। उनकी पोती नवाज़ शरीफ की पत्नी हैं।
अपनी सेवानिवृत्ति के बाद गामा ने अपने भतीजे भोलू पहलवान को प्रशिक्षित किया। जिन्होंने लगभग 20 वर्षों तक पाकिस्तानी कुश्ती के चैंपियन रहे।
अपने अंतिम दिनों में, गामा को एक पुरानी बीमारी का सामना करना पड़ा और उसके इलाज के लिए भुगतान करने के लिए संघर्ष करना पड़ा। उनकी मदद करने के लिए एक उद्यमी “जी डी बिरला” और एक कुश्ती प्रशंसक ने उन्हें ₹2,000 और ₹300 की मासिक पेंशन को दान में दिया। उनकी मृत्यु के समय तक पाकिस्तान सरकार ने भी उनके चिकित्सा व्यय का समर्थन किया। 23 मई, 1960 को उनका निधन हो गया।
पटियाला के ‘नेशनल इस्टीटूयट ऑफ़ स्पोर्टस’ में उनके कसरत में इस्तेमाल होने वाला एक 95 किलोग्राम डोनट आकार का चक्र रखा हुआ है।
कुछ सूत्रों के अनुसार, ब्रूस ली गामा पहलवान के दिनचर्या का पालन किया करते थे।
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