भारतीय इतिहास के पन्नों में अत्यंत सुंदर और साहसी रानी "रानी पद्मावती" का उल्लेख है। रानी पद्मावती को रानी पद्मिनी के नाम से भी जाना जाता है। रानी पद्मावती के पिता सिंघल प्रांत (श्रीलंका) के राजा थे। उनका नाम गंधर्वसेन था। और उनकी माता का नाम चंपावती था। पद्मावती बाल्य काल से ही दिखने में अत्यंत सुंदर और आकर्षक थीं। पद्मिनी जब बड़ी हुई तो उसकी बुद्धिमानी के साथ ही उसके सौन्दर्य की चर्चे चारों तरफ होने लगे | पद्मावती का लम्बा इकहरा शरीर ,झील सी गहरी आंखें और परियों सा सुंदर रंग रूप सभी का ध्यान आकर्षित कर लेता था। उनके माता-पिता ने उन्हे बड़े लाड़-प्यार से बड़ा किया था। कहा जाता है बचपन में पद्मावती के पास एक बोलने वाला तोता था जिसका नाम हीरामणि था। रानी पद्मावती/ एक कवि की कल्पना पद्मावती को 13 वीं -14 वीं सदी की महान भारतीय रानी के रूप में जाना जाता हैं। रानी पद्मावती के जीवन का उल्लेख करने वाला सबसे पहला स्रोत 16 वीं शताब्दी के सूफी-कवि मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा लिखित “पद्मावत” नामक एक महाकाव्य को माना जाता है। यह महाकाव्य 1540 ई. में अवधी भाषा में लिखा गया था। हालांकि इसका कोई सबूत नहीं है की पद्मावती अस्तित्व में है और अधिकांश आधुनिक इतिहासकारों ने 13 वीं सदी की रानी पद्मावती के अस्तित्व को खारिज कर दिया है। रानी पद्मावती विवाह उनके पिता रानी पद्मावती के प्रति काफी सुरक्षात्मक थे, जिसके चलते उन्हें पद्मावती का किसी और से बात करना पसंद नहीं था। जिसके कारण रानी पद्मावती…
भारतीय इतिहास के पन्नों में अत्यंत सुंदर और साहसी रानी “रानी पद्मावती” का उल्लेख है। रानी पद्मावती को रानी पद्मिनी के नाम से भी जाना जाता है। रानी पद्मावती के पिता सिंघल प्रांत (श्रीलंका) के राजा थे। उनका नाम गंधर्वसेन था। और उनकी माता का नाम चंपावती था। पद्मावती बाल्य काल से ही दिखने में अत्यंत सुंदर और आकर्षक थीं। पद्मिनी जब बड़ी हुई तो उसकी बुद्धिमानी के साथ ही उसके सौन्दर्य की चर्चे चारों तरफ होने लगे | पद्मावती का लम्बा इकहरा शरीर ,झील सी गहरी आंखें और परियों सा सुंदर रंग रूप सभी का ध्यान आकर्षित कर लेता था। उनके माता-पिता ने उन्हे बड़े लाड़-प्यार से बड़ा किया था। कहा जाता है बचपन में पद्मावती के पास एक बोलने वाला तोता था जिसका नाम हीरामणि था।
पद्मावती को 13 वीं -14 वीं सदी की महान भारतीय रानी के रूप में जाना जाता हैं। रानी पद्मावती के जीवन का उल्लेख करने वाला सबसे पहला स्रोत 16 वीं शताब्दी के सूफी-कवि मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा लिखित “पद्मावत” नामक एक महाकाव्य को माना जाता है। यह महाकाव्य 1540 ई. में अवधी भाषा में लिखा गया था। हालांकि इसका कोई सबूत नहीं है की पद्मावती अस्तित्व में है और अधिकांश आधुनिक इतिहासकारों ने 13 वीं सदी की रानी पद्मावती के अस्तित्व को खारिज कर दिया है।
उनके पिता रानी पद्मावती के प्रति काफी सुरक्षात्मक थे, जिसके चलते उन्हें पद्मावती का किसी और से बात करना पसंद नहीं था। जिसके कारण रानी पद्मावती का लगाव एक तोते (हीरामणी) से हो गया था। जब उनके पिता को तोता (हीरमणी) व पद्मावती के घनिष्ठ संबंधों के बारे में पता चला तो, उनके पिता ने तोते को मारने का आदेश दे दिया। हालांकि, वह तोता अपनी जान बचाकर वहाँ से उड़ गया। उसी दौरान, एक शिकारी ने तोते को पकड़ लिया और उसे एक ब्राह्मण को बेच दिया। उस ब्राह्मण ने वह तोता चितौड़ के राजा रतन सिंह को बेच दिया। क्योंकि राजा रतन सिंह उस तोते के क्रियाकलापों से काफी प्रभावित थे। उस तोते (हीरामणी) ने राजा रतन सिंह के समक्ष रानी पद्मावती की सुंदरता की काफी प्रशंसा कि, जिसके बाद राजा रतन सिंह पद्मावती से मिलने के लिया व्याकुल हो गए। जिसके कारण राजा रतन सिंह ने रानी पद्मावती से विवाह करने का निश्चय किया और अपने सोलह हजार सैनिकों के साथ सात समुद्र पार कर सिंहल साम्राज्य की ओर प्रस्थान किया। जब राजा रतन सिंह ने अपने सोलह हजार सैनिकों के साथ सिंहल साम्राज्य पर आक्रमण किया, तो राजा रतन सिंह को पराजय का सामना करना पड़ा और उन्हें बाद में क़ैद कर लिया गया। जैसे ही रतन सेन को फांसी दी जाने वाली थी, उनके साम्राज्य के गायक (Royal Bard) ने वहां मौजूद लोगों को बताया कि रतन सेन दरअसल चितौड़ के राजा हैं। यह सुनने के बाद, गंधर्व सेन ने पद्मावती का विवाह रतन सिंह के साथ करने का निर्णय लिया और साथ-ही-साथ रतन सेन के साथ आए हुए, सोलह हजार सैनिकों का विवाह भी सिंहल साम्राज्य की सोलह हजार पद्मनियों के साथ सम्पन्न करवा दिया। जल्द ही, रतन सेन को एक संदेशवाहक पक्षी के द्वारा संदेश प्राप्त हुआ, कि उनकी पहली पत्नी नागमती राजा रतन सेन के लिए वापस चितौड़ लौट रही हैं। यह संदेश प्राप्त करने के पश्चात् रतन सेन ने तुरंत चितौड़ लौटने का फैसला किया। चितौड़ के रास्ते पर, समुद्र देवता ने उन्हें दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत को जीतने के लिए अत्याधिक गर्व पैदा करने के लिए रतन सेन को दंडित करने का निर्णय किया। हालांकि, रतन सेन ने समुद्र के देवता को चितौड़ में बीती अपनी दुःख भरी व्यथा को बताया, अंत में समुद्र देवता ने उन्हें चितौड़ जाने के लिए लौटा दिया।
राजा रावल रतन सिंह रण कौशल और राजनीति में निपुण थे। उनका भव्य दरबार एक से बढ़कर एक महावीर योद्धाओं से भरा हुआ था। चित्तौड़ की सैन्य शक्ति और युद्ध कला दूर-दूर तक मशहूर थी। चित्तौड़ राज्य में राघव चेतन नामक एक संगीतकार बहुत प्रसिद्ध था। महाराज रावल रतन सिंह उसे बहुत मानते थे इसीलिये राज दरबार में राघव चेतन को विशेष स्थान दिया गया था। चित्तौड़ की प्रजा और वहाँ के महाराज को उन दिनों यह बात मालूम नहीं थी कि राघव चेतन संगीत कला के अतिरिक्त जादू-टोना भी जानता है। ऐसा कहा जाता है कि राघव चेतन अपनी इस काली शक्ति का उपयोग शत्रु को परास्त करने और अपने कार्य सिद्ध करने के लिए करता था। एक दिन राघव चेतन जब अपना कोई तांत्रिक कार्य कर रहा था तब उसे रंगे हाथों पकड़ लिया गया और उसे राजा रावल रतन सिंह के समक्ष पेश कर दिया गया। सभी साक्ष्य और फरियादी पक्ष की दलील सुन कर महाराज ने राघव चेतन को दोषी पाया और तुरंत उसका मुंह काला करके गधे पर बैठा कर देश से निकाल दिया। अपने अपमान और राज्य से निर्वासित किए जाने पर राघव चेतन बदला लेना चाहता था। अब उसके जीवन का एक ही लक्ष्य रहा गया था और वह था चित्तौड़ के महाराज रावल रतन सिंह का सम्पूर्ण विनाश। अपने इसी उद्देश के साथ वह दिल्ली राज्य चला गया। वहां जाने का उसका मकसद दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन खिलजी को उकसा कर चित्तौड़ पर आक्रमण करवा कर अपना प्रतिशोध पूरा करने का था। 12वीं और 13वीं सदी में दिल्ली की गद्दी पर अलाउद्दीन खिलजी का राज था। उन दिनों दिल्ली के बादशाह से मिलना इतना आसान नहीं था। इसीलिए राघव चेतन दिल्ली के पास स्थित एक जंगल में अपना डेरा डाल कर रहने लगा, क्योंकि वह जानता था कि दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन खिलजी शिकार के शौक़ीन हैं और एक दिन जब सुल्तान अलाउद्दीन शिकार खेलने गया तो उन्हें बाँसुरी की सुरीली आवाज सुनाई पड़ी । वह राघव चेतन ही था। अलाउद्दीन खिलजी फ़ौरन राघव चेतन को अपने पास बुला लेता है और राज दरबार में आ कर अपना हुनर प्रदर्शित करने का प्रस्ताव देता है। तभी चालाक राघव चेतन अलाउद्दीन खिलजी से कहता है- “आप मुझे जैसे साधारण कलाकार को अपनें राज्य दरबार की शोभा बनाकर क्या पाएंगे, अगर हासिल ही करना है तो अन्य संपन्न राज्यों की ओर नजर दौड़ाइए जहां एक से बढ़ कर एक बेशकीमती नगीने मौजूद हैं और उन्हें जीतना और हासिल करना भी सहज है।” अलाउद्दीन खिलजी तुरंत राघव चेतन को पहेलियाँ बुझाने की बजाए साफ-साफ अपनी बात बताने को कहता है। तब राघव चेतन चित्तौड़ राज्य की सैन्य शक्ति, चित्तौड़ गढ़ की सुरक्षा और वहाँ की सम्पदा से जुड़ा एक-एक राज़ खोल देता है और राजा रावल रतन सिंह की धर्म पत्नी रानी पद्मावती के अद्भुत सौन्दर्य का बखान भी कर देता है। यह सब बातें जानकर अलाउद्दीन खिलजी चित्तौड़ राज्य पर आक्रमण कर के वहाँ की सम्पदा लूटने, वहाँ कब्ज़ा करने और रानी पद्मावती को हासिल करने का मन बना लेता है।
कहा जाता है कि रानी की सुन्दरता का बखान सुनकर, अलाउद्दीन उन पर मोहित हो गया था। उसे लगने लगा था कि ऐसी सुन्दर रानी को तो उसके महल में होना चाहिए। सुल्तान खिलजी, रानी पद्मावती की एक झलक पाने को बेताब था। इसलिए चित्तौड़गढ़ किले की घेराबंदी के बाद खिलजी ने राजा रतन सिंह को ये कहकर संदेशा भेजा कि वो रानी पद्मावती से मिलना चाहता था। उनसे मिलने के बाद वो वहां से चला जाएगा।
रतन सिंह के महल पहुँच कर भी खिलजी रानी का चेहरा नहीं देख सका। क्योंकि परम्परा के अनुसार रानी किसी पराये मर्द को अपना मुहँ नही दिखाती और घूँघट में ही रहती थी। यह बात जानकर खिलजी ने रतन सिंह से आग्रह किया कि वह रानी को देखना चाहते हैं लेकिन रानी ने मना कर दिया। रतन सिंह ने रानी को समझाया की खिलजी एक बहुत बड़े साम्राज्य के सुल्तान है। उन्हें मना करना ठीक नहीं होगा। यह सब जानकर रानी मान गई लेकिन रानी ने एक शर्त रखी कि खिलजी, शीशे में उन्हें देख सकता है वो भी रतन सिंह और कुछ दासियों के सामने। यह शर्त खिलजी ने स्वीकार कर ली थी। रानी पद्मावती के सुंदर चेहरे को कांच के प्रतिबिम्ब में जब अलाउदीन खिलजी ने देखा तो उसने सोच लिया कि रानी पदमिनी को अपना बना कर रहें गा। अलाउद्दीन को उसके शिवर में वापिस भेजने के लिए जब रतन सिंह उसे बहार छोड़ने के लिए जा रहा था तो खिलजी ने मौका देखकर रतन सिंह को बंदी बना लिया और पद्मावती की मांग करने लगा। चौहान राजपूत सेनापति गोरा और बादल ने सुल्तान को हराने के लिए एक चाल चलते हुए खिलजी को संदेशा भेजा कि अगली सुबह पद्मावती को सुल्तान को सौंप दिया जाएगा।
अगले दिन सुबह भोर होते ही 150 पालकियां किले से खिलजी के शिविर की तरफ रवाना हुई। पालकियां वहां रुक गई जहां पर रतन सिंह को बंदी बना कर रखा गया था। पालकियों को देखकर जब रतन सिंह ने सोचा, कि वह पालकियां किले से आई हैं और उनके साथ रानी भी यहाँ आई होगी। तब वह अपने आप को बहुत अपमानित समझने लगे। उन पालकियो में न ही उनकी रानी और न ही दासिया थीं। अचानक से उनमे से सशस्त्र सैनिक निकले और रतन सिंह को छुड़ा लिया और खिलजी के अस्तबल से घोड़े चुराकर तेजी से घोड़ो पर किले की ओर भाग गए। गोरा इस मुठभेड़ में बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए जबकि बादल, रतन सिंह को सुरक्षित किले में ले आया। जब रतन सेन को दिल्ली में कैद किया गया था, उसी समय चितौड़ के पड़ोसी राज्य – कुंभलनेर के राजा देवपाल का भी रानी पद्मावती के प्रति आकर्षण हो गया था। जिसके चलते राजपूत राजा देवपाल ने एक दूत के द्वारा रानी पद्मावती को विवाह का प्रस्ताव भेजा। चितौड़ लौटने के बाद, रतन सेन ने देवपाल से बदला लेने का फैसला लेते हुए,युद्ध करने का निर्णय लिया। परिणामस्वरूप इस एकल युद्ध में राजा देवपाल मारे गए और रतनसेन भी अत्यधिक घायल हो गए। अपनी हार को देखकर खिलजी बहुत शर्मिंदा हुआ और उसने इस धोखे का बदला लेने का निश्चय किया। उसने तुरंत ही चितौड़गढ़ किले पर आक्रमण कर दिया।
जब सुल्तान को पता चला कि उसकी योजना नाकाम हो गई है, तो अलाउद्दीन ने अपनी सेना को चित्तौड़ पर आक्रमण करने का आदेश दिया। अलाउद्दीन की सेना ने किले में प्रवेश करने के लिए कड़ी कोशिश की लेकिन वह नाकाम रहें, इसके बाद अलाउद्दीन ने किले की घेराबंदी करने का निश्चय किया। घेराबंदी इतनी कड़ी थी कि किले में खाद्य आपूर्ति धीरे-धीरे समाप्त होने लग गई। अंत में रतन सिंह ने द्वार खोलने का आदेश दिया और अलाउद्दीन के सैनिकों से लड़ते हुए रतन सिंह वीरगति को प्राप्त हो गए। यह सुचना पाकर रानी पद्मावती ने सोचा कि अब सुल्तान की सेना चित्तौड़ के सभी पुरुषों को मार देगी, तब चित्तौड़ की औरतो के पास दो ही विकल्प रहें या तो वह जौहर के लिए प्रतिबद्ध हो या विजयी सेना के समक्ष अपना निरादर सहें।
रानी पद्मावती के सामने दो विकल्प रह गए या तो वह मुगलों के सामने आत्मसमर्पण करे या फिर जौहर व्रत करे। उन्होंने निर्णय लिया कि दुश्मनों के सामने आत्मसमर्पण करने से अच्छा है कि देश की आन-बान के लिए अपना बलिदान किया जाये। उन्होंने एक बड़ा हवन कुण्ड बनवाया और 16000 राजपूत महिलाओं के साथ हवन कुण्ड में अपने आप को समर्पित कर दिया। अपने देश के स्वाभिमान के लिए ऐसा उदाहरण शायद ही कहीं मिलता हो। मुगल सैनिक जब किले में प्रवेश करते हैं, तो उन्हें वहाँ राख और जली हुई हड्डियों के अतरिक्त कुछ भी नहीं मिलता है।
इतिहास ग्रंथों में अधिकतर ‘पद्मिनी’ नाम स्वीकार किया गया है, जबकि जायसी ने स्पष्ट रूप से ‘पद्मावती’ नाम स्वीकार किया है। जायसी के वर्णन से स्पष्ट होता है कि ‘पद्मिनी’ से उनका भी तात्पर्य स्त्रियों की उच्चतम कोटि से ही है। जायसी ने स्पष्ट लिखा है कि राजा गंधर्वसेन की सोलह हजार पद्मिनी रानियाँ थीं, जिनमें सर्वश्रेष्ठ रानी चंपावती थी, जो कि पटरानी थी। इसी चंपावती के गर्भ से पद्मावती का जन्म हुआ था। इस प्रकार कथा के प्राथमिक स्रोत में ही स्पष्ट रूप से ‘पद्मावती’ नाम ही स्वीकृत हुआ है।
कहानी की सच्चाई को लेकर कई मत प्रसारित है। मेवाड़ के कई इतिहासकारों की मानें तो अलाउद्दीन ने रानी पद्मावती को कभी देखा ही नहीं था। रानी पद्मावती ऐतिहासिक किरदार हैं या केवल साहित्यिक किरदार, इस बारे में भी कई राय हैं। हालांकि इतिहासकारों के कुछ आधुनिक जानकर ने इस कहानी को पूरी तरह से काल्पनिक बताया हैं।
वर्ष 2017 में, हिंदी फिल्म ‘पद्मावती’ काफी सुर्खियों में रहीं। इस फिल्म का निर्देशन संजय लीला भंसाली द्वारा किया गया है। इस फ़िल्म में मुख्य भूमिका में दीपिका पादुकोण (पद्मवती), शाहिद कपूर( राणा रतन सिंह) और रणवीर सिंह ( सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी) हैं। यह फिल्म विवादों के कारण इस फिल्म का शीर्षक भी ‘पद्मावती’ से ‘पद्मावत’ कर दिया गया था।
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