Rajendra Prasad Biography in Hindi | राजेन्द्र प्रसाद जीवन परिचय
राजेन्द्र प्रसाद से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ
- राजेन्द्र प्रसाद का जन्म एक कायस्थ परिवार में बिहार के जिला सारन के एक गाँव जीरादेई में हुआ था।
- उनके पिता महादेव सहाय संस्कृत एवं फारसी के विद्वान थे एवं उनकी माता कमलेश्वरी देवी एक धर्मपरायण महिला थीं।
- पाँच वर्ष की आयु में उन्होंने एक मौलवी से फारसी में शिक्षा प्राप्त की और उसके बाद प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए बिहार चले गए थे।
- महज 13 वर्ष की कम उम्र में उनका विवाह राजवंशी देवी से हुआ और विवाह के बाद भी उन्होंने अपनी पढाई को जारी रखा।
- वर्ष 1902 में, उन्होंने कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया और अपनी प्रतिभा से गोपाल कृष्ण गोखले तथा बिहार-विभूति अनुग्रह नारायण सिन्हा जैसे विद्वानों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया।
- उन्हें अंग्रेजी, हिन्दी, उर्दू, फ़ारसी व बंगाली भाषा और साहित्य का अच्छा ज्ञान था।
- उनका हिन्दी के प्रति काफी लगाव था, जिसके चलते हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं जैसे भारत मित्र, भारतोदय, कमला, इत्यादि में उनके लेख छपते थे।
- उन्होंने हिन्दी में “देश” और अंग्रेजी में “पटना लॉ वीकली” समाचार पत्र का सम्पादन भी किया था।
- राजेंद्र प्रसाद ने एक शिक्षक के रूप में विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में कार्य किया, अर्थशास्त्र में परास्नातक करने के बाद वह बिहार के लंगत सिंह कॉलेज (बिहार) में अंग्रेजी के प्रोफेसर और प्रिंसिपल बने।
- वर्ष 1909 में, कोलकाता में विधिशास्त्र का अध्ययन करते हुए उन्होंने “कलकत्ता सिटी कॉलेज” में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में भी कार्य किया।
- वर्ष 1916 में, उन्होंने बिहार और ओडिशा के उच्च न्यायालय में अध्ययन किया, जिसके चलते उन्हें पटना विश्वविद्यालय के सीनेट और सिंडिकेट के पहले सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया।
- अपने करियर के शुरुआती दौर में उनका भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में पदार्पण एक वकील के रूप में हुआ था, जब चम्पारण में महात्मा गांधी सत्याग्रह आंदोलन कर रहे थे।
- राजेन्द्र बाबू महात्मा गांधी की निष्ठा, समर्पण एवं साहस से बहुत प्रभावित हुए थे, जिसके चलते उन्होंने वर्ष 1921 में कोलकाता विश्वविद्यालय के सीनेटर का पद त्याग दिया था।
- जिस समय गांधी जी विदेशी संस्थाओं के बहिष्कार की अपील कर रहे थे, तब राजेन्द्र प्रसाद जी ने अपने पुत्र मृत्युंजय प्रसाद (जो पढ़ाई में मेधावी छात्र थे) को कोलकाता विश्वविद्यालय से निकालकर बिहार विद्यापीठ में दाखिला करवाया।
- वर्ष 1914 में, उन्होंने बिहार और बंगाल मे आई बाढ में काफी बढ़-चढ़कर सेवा-कार्य किया था।
- वर्ष 1934 में, वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गए थे।
- वर्ष 1939 में, नेताजी सुभाषचंद्र बोस के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष का पदभार राजेंद्र प्रसाद जी ने पुन: संभाला था।
- 26 जनवरी 1950 को, भारत का संविधान लागू होने पर उन्होंने देश के पहले राष्ट्रपति का पदभार संभाला।
- राष्ट्रपति के तौर पर कार्य करते हुए उन्होंने कभी भी अपने संवैधानिक अधिकारों में प्रधानमंत्री या कांग्रेस को दखलअंदाजी का मौका नहीं दिया और हमेशा स्वतन्त्र रूप से कार्य किया।
- भारतीय संविधान के लागू होने के एक दिन पहले 25 जनवरी 1950 को उनकी बहन भगवती देवी का निधन हो गया था, लेकिन वह भारतीय गणराज्य की स्थापना में व्यस्त होने के कारण दाह संस्कार में भाग लेने पाए।
- उन्होंने 12 वर्षों तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया और उसके बाद वर्ष 1962 में त्यागपत्र देने की घोषणा की।
- सितम्बर 1962 में, त्यागपत्र देते ही उनकी पत्नी राजवंशी देवी का निधन हो गया था।
- राजेन्द्र बाबू ने अपनी आत्मकथा (1946) के अतिरिक्त कई अन्य पुस्तकें भी लिखी हैं – जिनमें “बापू के कदमों में” (1954), “इण्डिया डिवाइडेड” (1946), “सत्याग्रह ऐट चम्पारण” (1922), “गांधी जी की देन”, “भारतीय संस्कृति व खादी का अर्थशास्त्र”, इत्यादि उल्लेखनीय हैं।
- वर्ष 1921 से 1946 के दौरान, राजनीतिक सक्रियता के समय वह बिहार विद्यापीठ भवन में रहे थे, जिसके चलते उनके मरणोपरांत उसे “राजेन्द्र प्रसाद संग्रहालय” बना दिया गया।
- 28 फ़रवरी 1963 में, पटना के निकट सदाकत आश्रम में उनका निधन हो गया था।
- भारत सरकार द्वारा उनके जन्मदिवस के अवसर पर एक डाक टिकट जारी की गई।
- उनकी याद में कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक प्रतिमा को स्थापित किया गया है।