अलाउद्दीन खिलजी का जन्म अलाउद्दीन खिलजी, खिलजी वंश के दूसरे शासक थे, अलाउद्दीन खिलजी का वास्तविक नाम अली गुरशास्प उर्फ़ जूना खान खिलजी था। 16 वीं-17 वीं शताब्दी के इतिहासकार हाजी-उद-दबीर के मुताबिक, अलाउद्दीन का जन्म कलात, ज़ाबुल प्रान्त, अफ़्ग़ानिस्तान में हुआ था। अलाउद्दीन खिलजी एक साम्राज्यवादी शासक था, जिसने आक्रामकता के साथ साम्राज्य का विस्तार दक्षिण भारत के मदुरै तक किया, कहा जाता है कि खिलजी जितना बड़ा साम्राज्य किसी शासक ने अगले 300 सालों तक नहीं किया। अलाउद्दीन खिलजी को खिलजी वंश का सबसे ताकतवर शासक माना जाता है। अपनी महत्वकांक्षी के चलते उसे “सिकन्दर-ए-सनी” का ख़िताब मिला था जिसका अर्थ था "दूसरा सिकन्दर"। उसने अपने शासनकाल के दौरान शराब पर पूर्णत: प्रतिबन्ध लगा दिया था। अपने चाचा की लड़की से विवाह अलाउद्दीन खिलजी के पिता का नाम शिहाबुद्दीन मसूद था। खिलजी वंश के प्रथम शासक जलालुद्दीन खिलजी उनके चाचा थे। अलाउद्दीन खिलजी के पिता की मृत्यु के बाद उनके चाचा जलालुद्दीन खिलजी ने अलाउद्दीन खिलजी का पालन-पोषण अपने बेटे की तरह किया था और अपनी बेटी का निकाह भी उससे करवाया, लेकिन वह जलालुद्दीन की बेटी से शादी कर के खुश नहीं थे, क्योंकी जलालुद्दीन के सुल्तान बनने के बाद उनकी पत्नी एक राजकुमारी बन गई थी, और उनके बर्ताव में अचानक से अभिमान आ गया था। अपने चाचा जलालुद्दीन के खिलाफ बगावत वर्ष 1291 में, कारा के राज्यपाल मलिक छज्जू ने सुल्तान के राज्य में विद्रोह कर दिया था, इस समस्या को अलाउद्दीन ने बहुत अच्छे से संभाला, जिसके बाद उन्हें कारा का मुक्ति (राज्यपाल) बना…
अलाउद्दीन खिलजी, खिलजी वंश के दूसरे शासक थे, अलाउद्दीन खिलजी का वास्तविक नाम अली गुरशास्प उर्फ़ जूना खान खिलजी था। 16 वीं-17 वीं शताब्दी के इतिहासकार हाजी-उद-दबीर के मुताबिक, अलाउद्दीन का जन्म कलात, ज़ाबुल प्रान्त, अफ़्ग़ानिस्तान में हुआ था।
अलाउद्दीन खिलजी एक साम्राज्यवादी शासक था, जिसने आक्रामकता के साथ साम्राज्य का विस्तार दक्षिण भारत के मदुरै तक किया, कहा जाता है कि खिलजी जितना बड़ा साम्राज्य किसी शासक ने अगले 300 सालों तक नहीं किया। अलाउद्दीन खिलजी को खिलजी वंश का सबसे ताकतवर शासक माना जाता है। अपनी महत्वकांक्षी के चलते उसे “सिकन्दर-ए-सनी” का ख़िताब मिला था जिसका अर्थ था “दूसरा सिकन्दर”। उसने अपने शासनकाल के दौरान शराब पर पूर्णत: प्रतिबन्ध लगा दिया था।
अलाउद्दीन खिलजी के पिता का नाम शिहाबुद्दीन मसूद था। खिलजी वंश के प्रथम शासक जलालुद्दीन खिलजी उनके चाचा थे। अलाउद्दीन खिलजी के पिता की मृत्यु के बाद उनके चाचा जलालुद्दीन खिलजी ने अलाउद्दीन खिलजी का पालन-पोषण अपने बेटे की तरह किया था और अपनी बेटी का निकाह भी उससे करवाया, लेकिन वह जलालुद्दीन की बेटी से शादी कर के खुश नहीं थे, क्योंकी जलालुद्दीन के सुल्तान बनने के बाद उनकी पत्नी एक राजकुमारी बन गई थी, और उनके बर्ताव में अचानक से अभिमान आ गया था।
वर्ष 1291 में, कारा के राज्यपाल मलिक छज्जू ने सुल्तान के राज्य में विद्रोह कर दिया था, इस समस्या को अलाउद्दीन ने बहुत अच्छे से संभाला, जिसके बाद उन्हें कारा का मुक्ति (राज्यपाल) बना दिया गया। मलिक छज्जू ने जलालुद्दीन को एक अप्रभावी शासक माना और दिल्ली के सिंहासन को हड़पने के लिए अलाउद्दीन को उकसाया। जलालुद्दीन के साथ विश्वासघात करना आसान काम नहीं था, क्योंकि इसके लिए उन्हें एक बड़ी सेना और हथियारों के लिए पैसे की आवश्यकता थी। इस योजन में लगने वाले धन की कमी को पूरा करने के लिए अलाउद्दीन ने आसपास के हिंदू साम्राज्यों में लूट-पाट शुरू कर दी। वर्ष
वर्ष 1293 में, अलाउद्दीन ने भिलसा (मालवा के परमार राज्य में एक अमीर शहर) में लूट-पाट की और सुल्तान का विश्वास जीतने के लिए, अलाउद्दीन ने पूरी लूट को जलालुद्दीन को सौंप दी। इसे खुश हो कर जलालुद्दीन ने उन्हें अरीज़-आई ममालिक (युद्ध सेनापति) नियुक्त किया और उन्हें सेना को मजबूत बनाने के लिए अधिक राजस्व बढ़ाने जैसे अन्य विशेषाधिकार भी दे दिए।
भिलसा में लूट की सफलता के बाद अलाउद्दीन ने अपनी अगली लूट 1296 में देवगिरी (जो कि दक्कन क्षेत्र स्थित दक्षिणी यादव साम्राज्य की राजधानी) में की, वहाँ से उन्होंने रत्नों, कीमती धातुओं, रेशम उत्पादों, घोड़ों, हाथियों और दासों सहित भारी मात्रा में धन की लूट-पाट की। इस बार भी जलालुद्दीन लूट का सारा सामान अलाउद्दीन द्वारा सौंपे जाने की उम्मीद कर रहे थे। हालांकि, दिल्ली लौटने के बजाय अलाउद्दीन लूट का सामान कारा लेकर चला गया। अलाउद्दीन ने जलालुद्दीन को एक पत्र लिखा और लूट के साथ दिल्ली वापस नहीं आने के कारण माफ़ी मांगी। इसके बाद जलालुद्दीन ने व्यक्तिगत रूप से अलाउद्दीन से मिलने के लिए कारा आने का फैसला किया। जब वह कारा के रास्ते पर थे, तब उन्होंने (जलालुद्दीन) करीब 1,000 सैनिकों की एक छोटी सी टुकड़ी के साथ गंगा नदी पार करने का फैसला किया।
20 जुलाई 1296 को जब जलालुद्दीन ने गंगा नदी के किनारे अलाउद्दीन से मुलाकात की तब अलाउद्दीन ने जलालुद्दीन को गले लगाते समय उनकी पीठ पर चाकू से वार कर दिया और उनकी मृत्यु के बाद खुद को दिल्ली का नया सुल्तान घोषित कर दिया। जुलाई 1296 कारा में अलाउद्दीन ने अपने आप को औपचारिक रूप से ‘अलाउद्दीन उद-दीन मुहम्मद शाह-सुल्तान’ की उपाधि के रूप में नया सुल्तान घोषित किया। अलाउद्दीन ने अपने अधिकारियों को यथासंभव कई सैनिकों की भर्ती करने और उन्हें (अलाउद्दीन) एक उदार सुल्तान के रूप में पेश करने का आदेश दिया। इसके बाद उन्होंने कारा में अपने मुकुट के साथ-साथ 5 मन (लगभग 35 किलोग्राम) सोना वितरित किया। भरी बारिश और नदियों में बाढ़ की स्थिति के कारण, उन्होंने दिल्ली की ओर प्रस्थान किया। 21 अक्तूबर 1296 को अलाउद्दीन खिलजी ने औपचारिक रूप से खुद को दिल्ली का सुल्तान घोषित किया।
अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली की गद्दी पर बैठते ही अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार करना शुरू कर दिया। अलाउद्दीन खिलजी बहुत ही महत्वकांक्षी राजा थे और वह अपने आप को दूसरा सिकंदर कहते थे। उन्होंने “सिकंदर-ए- सानी” की उपाधि भी ग्रहण की थी।
1298 ई. में अलाउद्दीन ने नुसरत खाँ की अगुवाई में 14 हजार घुड़सवारों और 20 हजार पैदल सैनिकों को गुजरात विजय के लिए भेजा। अहमदाबाद के पास बेघल के राजा कर्ण और खिलजी सेना में युद्ध, जिसमें राजा कर्ण पराजित हुआ और अपनी पुत्री देवल देवी के साथ भाग कर देवगिरि के शासक रामचन्द्र देव की शरण में पहुँच गया। राजा कर्ण की पत्नी कमला देवी को अलाउद्दीन ख़िलजी के पास भेज दिया गया, अलाउद्दीन ख़िलजी ने कमला देवी का जबरन धर्म परिवर्तन करवाया और उससे निकाह कर उसे शाही हरम में भेज दिया। गुजरात के विजय अभियान के समय नुसरत खाँ ने भयंकर कत्लेआम मचाया था तथा कई बड़े मंदिरों को तोड दिया था। इनमे से गुजरात का सोमनाथ मंदिर सबसे प्रमुख है।
जैसलमेर के शासक द्वारा अलाउद्दीन ख़िलजी की सेना के कुछ घोड़े छीन लेने के कारण सुल्तान ख़िलजी ने जैसलमेर के शासक दूदा एवं उसके सहयोगी तिलक सिंह को 1299 ई. में पराजित किया और जैसलमेर पर फतेह प्राप्त कि।
चित्तौड़ किले पर किया गया, आक्रमण अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल में किए गए आक्रमणों में सबसे सुर्खियों में रहा। चूँकि चित्तौड़ का किला सामरिक दृष्टि से बेहद सुरक्षित स्थान पर बना हुआ था। इसलिए अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया और महाराजा रतन सिंह को हराया। हालाँकि इस पूरे हमले की वजह रानी पद्मावती की सुन्दरता भी बताई जाती है, जिसपर अलाउद्दीन मोहित हो गए थे। अन्ततः 28 जनवरी 1303 ई. को सुल्तान चित्तौड़ के क़िले पर अधिकार करने में सफल हुआ।
राणा रतन सिंह युद्ध में शहीद हुऐ और उनकी पत्नी रानी पद्मावती ने अन्य स्त्रियों के साथ जौहर कर लिया, यह चर्चा का विषय है। अधिकतर इतिहासकार पद्मावती को काल्पनिक पात्र मानते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि किले पर अधिकार के बाद सुल्तान ने लगभग 30,000 राजपूत वीरों की हत्या करवा दी थी।
उत्तर भारत में खिलजी सेना ने 1299 ई. में जैसलमेर पर जीत हासिल की तो वहीं 1301 ई. में रणथम्भौर पर, 1305-1308 ई. में मालवा पर और 1304 में जालौर में विजय हासिल की। उत्तर भारत की विजय के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने दक्षिण भारत की और अपना रुख किया।
अलाउद्दीन के दक्षिण विजय का मुख्य श्रेय मलिक काफ़ूर को जाता है। मलिक काफ़ूर ने ही दक्षिण भारत के सभी विजय अभियानों की अगुवाई की थी।
1306 ई में अलाउद्दीन खिलजी ने मलिक काफ़ूर के नेतृत्व में एक बड़ी सेना को देवगिरि के राजा रामचन्द्र देव पर आक्रमण करने के लिए भेजा। युद्ध के बाद राजा रामचन्द्र ने आत्मसर्पण कर दिया।
1310 ई में जब मलिक काफ़ूर तेलंगाना राज्य के वारंगल पहुँचे तो वहां के राजा रुद्रदेव ने अपनी सोने की मूर्ति बनवाकर उसके गले में एक सोने की जंजीर डालकर आत्मसर्पण स्वरूप मलिक काफ़ूर के पास भेजा, साथ ही 100 हाथी, 700 घोड़े, अपार धन राशि और वार्षिक कर देने के वायदे के साथ अलाउद्दीन खिलजी की अधीनता स्वीकार कर ली।
वारंगल के बाद 1311 ई में मलिक काफ़ूर ने कर्नाटक के होयसल के शासक वीर बल्लाल तृतीय को आत्मसर्पण करने पर मज़बूर किया। मलिक काफ़ूर ने दक्षिण भारत के बड़े हिस्से को जीता लिया और कत्लेआम अथवा लूट-पाट की। उसने भारत के कई प्रसिद्ध मंदिरों (रामेश्वरम) को भी तुड़वा दिया।
अलाउद्दीन ने मंगोल को जालंधर (1298), किली (1299), अमरोहा (1305) और रवि (1306) की लड़ाइयों में हराया। जब मंगोल सैनिकों में से कुछ एक ने विद्रोह किया, तो अलाउद्दीन के प्रशासन ने विद्रोहियों को क्रूर दंड दिया, उनके परिवारों और उनके बच्चों की हत्या उनकी माताओं के सामने कर दी गई।
अगस्त 1303 के आसपास मंगोलों ने दिल्ली पर एक बार फिर आक्रमण किया परंतु पर्याप्त तैयारी की कमी के कारण अलाउद्दीन को, निर्माणाधीन ‘सीरी किले’ में शरण लेनी पड़ी। वर्ष 1303 में हुए मंगोल आक्रमण ने अलाउद्दीन को अपने प्रशासन में कुछ सख्त कदम उठने को मजबूर कर दिया, ताकि ऐसे हमले दोबारा न हो उन्होंने भारत के मंगोल मार्गों पर सैन्य उपस्थिति बढ़ा दी और किले की सुरक्षा को मजबूत कर दिया। सेना को मजबूत बनाए रखने के लिए और पर्याप्त राजस्व प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने आर्थिक सुधारों की एक श्रृंखला कार्यान्वित की।
दिसंबर 1305 में मंगोलों ने फिर से भारत पर हमला किया। मलिक नायक के नेतृत्व में अलाउद्दीन के मजबूत घुड़सवारों ने अमरोहा की लड़ाई में भी मंगोलों को हराया।
अलाउद्दीन के दरबार में अमीर खुसरो तथा हसन निजामी जैसे उच्च कोटि के विद्धानों को संरक्षण प्राप्त था। स्थापत्य कला के क्षेत्र में अलाउद्दीन खिलजी ने वृत्ताकार ‘अलई दरवाजा’ और ‘कुश्क-ए-शिकार’ का निर्माण करवाया। उसके द्वारा बनाया गया ‘अलई दरवाजा’ प्रारम्भिक तुर्की कला का एक श्रेष्ठ नमूना माना जाता है। 16 वीं शताब्दी के इतिहासकार फिरिश्ता के मुताबिक, 8000 से ज्यादा मंगोलों के सिरों (मुण्डीयो) का इस्तेमाल अलाउद्दीन द्वारा सीरी किले की स्थापना के लिए किया गया।
कुछ इतिहासकारों ने उनको उभयलिंगी बताया है। उनके अनुसार अलाउद्दीन मलिक काफ़ूर के प्रति बहुत आकर्षित थे। जिसे उन्होंने एक दास के रूप में खरीदा और बाद में उसे (मलिक काफ़ूर) अपने सबसे वफादार अधिकारी के रूप में पदोन्नत किया। हालांकि, इसका कोई ठोस सबूत नहीं है।
अपने शासन के आखरी चार-पांच वर्षो में अलाउद्दीन खिलजी की सोचने समझने की शक्ति कमजोर हो गई थी। इन वर्षों के दौरान शासन की पूरी कमान मलिक काफ़ूर के हाथों में आ गई थी। कहा जाता है कि मलिक काफ़ूर ने ही अलाउद्दीन खिलजी की हत्या करवाई थी।
हालांकि इस बात की पुष्टि इस तथ्य से भी हो जाती है कि मलिक काफ़ूर ने खिलजी के मरने के बाद उनके दो बेटों को अंधा करवा दिया तथा खिलजी के तीन वर्ष के पुत्र शहाबुद्दीन को गद्दी पर बैठाकर खुद शासन करने लगा।
संजय लीला भंसाली की ऐतिहासिक फिल्म ‘पद्मावती’ को लेकर काफी विरोध उत्पन हुआ। इस फिल्म में मुख्य भूमिका में दीपिका पादुकोण (पद्मवती), शाहिद कपूर( राणा रतन सिंह) और रणवीर सिंह ( सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी) है। यह पहली बार नहीं है की रानी पद्मावती के बारे में फिल्म बनी हो, इससे पहले हिंदी और तमिल में कई फ़िल्मों बन चुकी है। इसके अलावा दूरदर्शन पर एक शो ‘भारत एक खोज’ में भी रानी पद्मावती की कहानी को दिखाया गया था।
वर्ष 1964 में, पहली हिंदी फिल्म ‘महारानी पद्मिनी’ बनी थी। इस फिल्म के निर्देशक जसवंत झावेरी थे। इस फिल्म में अनिता गुहा ने रानी पद्मावती का क़िरदार निभाया था, और इस फिल्म के अंत में खिलजी पद्मावती को अपनी बहन मान लेते हैं। हालांकि इस फिल्म में दिखाया गया है कि मलिक काफ़ूर ने अलाउद्दीन खिलजी को बड़कया था। ताकि वह दिल्ली का शासक बन सके। इस फिल्म के अंत में अलाउद्दीन खिलजी कहते हैं कि “हमारी ये फ़तह इतिहास की सबसे बड़ी शिकस्त है” और फिल्म के अंत में रानी पद्मावती जौहर कर लेती है।
वर्ष 1963 में पद्मावती पर बनी पहली साउथ फिल्म “चित्तौड़ रानी पद्मिनी” है। इस फिल्म के निर्देशक चित्रापू नारायण मूर्ति थे। इस फिल्म में रानी पद्मावती का किरदार वैजयंती माला ने निभाया था और शिवाजी गणेशन ने राजा रतन सिंह का किरदार निभाया था। इस फिल्म में रानी पद्मावती ने खिलजी के सामने आने से मना कर दिया और रानी पद्मावती ने जौहर कर लिया।
वर्ष 1988 में धारावाहिक “भारत एक खोज” अलाउद्दीन खिलजी के ऊपर आधारित था। यह धारावाहिक दूरदर्शन पर दिखाए गया था। इस धारावाहिक की कहानी पंडित जवाहरलाल नेहरू की पुस्तक “डिस्कवरी ऑफ इण्डिया” से ली गई थी। इस धारावाहिक के निर्देशक श्याम बेनेगल थे। इस धारावाहिक में राजा रतन सिंह, राघव चेतन को अपने राज्य से निकल देते है। राघव चेतन अपने अपमान का बदला लेने के लिए अलाउद्दीन खिलजी से हाथ मिला लेते है, और अलाउद्दीन खिलजी को चित्तौड़ पर हमला करने को कहते है, खिलजी इसका कारण पूछते है तो राघव चेतन कहते है की राजा रतन सिंह की एक खूबसूरत पत्नी रानी पद्मावती है। इस धारावाहिक में अलाउद्दीन खिलजी राजा रतन सिंह को हारा देते है और पद्मावती को पाना चाहते थे लेकिन रानी पद्मावती जौहर कर लेती है।
वर्ष 2017 में, हिंदी फिल्म ‘पद्मावती’ काफी सुर्खियों में रहीं। इस फिल्म का निर्देशन संजय लीला भंसाली द्वारा किया गया है। इस फ़िल्म में मुख्य भूमिका में दीपिका पादुकोण (पद्मवती), शाहिद कपूर( राणा रतन सिंह) और रणवीर सिंह ( सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी) हैं। यह फिल्म विवादों के कारण इस फिल्म का शीर्षक भी ‘पद्मावती’ से ‘पद्मावत’ कर दिया गया था।
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