मैं शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार-क्षार डमरू की वह प्रलय-ध्वनि हूँ जिसमें नचता भीषण संहार रणचंडी की अतृप्त प्यास मैं दुर्गा का उन्मत्त हास मैं यम की प्रलयंकार पुकार, जलते मरघट का धुआंधार" यहाँ "मैं" शब्द जिस शख्स के लिए प्रयुक्त हुआ है वो और कोई नहीं ..हिन्दुस्तान की राजनीति के सबसे लोकप्रिय नेता अटल बिहारी वाजपई हैं। अटल जी के अथक परिश्रम, गंभीर लेखन, ओजस्वी भाषण और कार्यकर्ताओं से दूरी-रहित लगाव ने ही उनको "लोकप्रिय" होने का खिताब दिया। संसद में सरकार को अपने ओजस्वी और तर्कपूर्ण भाषणों से नाकों चने चबवाने वाले अटल जी राजनीति के गगन में ध्रुव नक्षत्र हैं। एक धुरंधर राजनीतिज्ञ होने के साथ वो उच्चकोटि के कवियों में भी शुमार किए जाते हैं। अटलजी व्यक्ति एक : व्यक्तित्व अनेक कहना गलत नहीं होगा। आइए रूबरू होते हैं अटलजी के व्यक्तित्व और उनके जीवन से जुडी कुछ रोचक बातों से : अटलजी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को क्रिसमस के दिन ब्रिटिश भारत के ग्वालियर राज्य में हुआ था। वह सात भाई बहनों में सबसे छोटे थे। उनका पैतृक गांव आगरा के बाटेश्वर में है। जहाँ से उनके दादा, पंडित शाम लाल वाजपेयी, मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में पलायन कर गए थे। शिक्षा उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा सरकारी उच्च माध्यमिक विद्यालय, गोरखी, बारा, ग्वालियर से प्राप्त की, जहां उनके पिता कृष्णा बिहारी वर्ष 1935 और 1937 तक स्कूल के हेडमास्टर रहे। उनके पिता को स्कूलों के निरीक्षक के रूप में भी पदोन्नत किया गया था और जो बाद में निदेशक भी…
मैं शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार-क्षार
डमरू की वह प्रलय-ध्वनि हूँ जिसमें नचता भीषण संहार
रणचंडी की अतृप्त प्यास मैं दुर्गा का उन्मत्त हास
मैं यम की प्रलयंकार पुकार, जलते मरघट का धुआंधार”
यहाँ “मैं” शब्द जिस शख्स के लिए प्रयुक्त हुआ है वो और कोई नहीं ..हिन्दुस्तान की राजनीति के सबसे लोकप्रिय नेता अटल बिहारी वाजपई हैं। अटल जी के अथक परिश्रम, गंभीर लेखन, ओजस्वी भाषण और कार्यकर्ताओं से दूरी-रहित लगाव ने ही उनको “लोकप्रिय” होने का खिताब दिया। संसद में सरकार को अपने ओजस्वी और तर्कपूर्ण भाषणों से नाकों चने चबवाने वाले अटल जी राजनीति के गगन में ध्रुव नक्षत्र हैं। एक धुरंधर राजनीतिज्ञ होने के साथ वो उच्चकोटि के कवियों में भी शुमार किए जाते हैं। अटलजी व्यक्ति एक : व्यक्तित्व अनेक कहना गलत नहीं होगा।
अटलजी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को क्रिसमस के दिन ब्रिटिश भारत के ग्वालियर राज्य में हुआ था। वह सात भाई बहनों में सबसे छोटे थे। उनका पैतृक गांव आगरा के बाटेश्वर में है। जहाँ से उनके दादा, पंडित शाम लाल वाजपेयी, मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में पलायन कर गए थे।
उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा सरकारी उच्च माध्यमिक विद्यालय, गोरखी, बारा, ग्वालियर से प्राप्त की, जहां उनके पिता कृष्णा बिहारी वर्ष 1935 और 1937 तक स्कूल के हेडमास्टर रहे। उनके पिता को स्कूलों के निरीक्षक के रूप में भी पदोन्नत किया गया था और जो बाद में निदेशक भी बने थे। उनके पिता भी एक कवि थे और उन्होंने स्कूल की प्रार्थना भी लिखी थी। यहीं पर जब वह पांचवीं कक्षा में थे तब पहली बार उन्होंने भाषण दिया था। इंटरमीडिएट की पढाई उन्होंने ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेजिएट स्कूल से की और इसके बाद विक्टोरिया कॉलेज से स्नातक किया। कॉलेज जीवन में ही उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना आरंभ कर दिया था। आरंभ में वह छात्र संगठन से जुड़े।
कॉलेज जीवन में ही उन्होंने कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं। वह 1943 में कॉलेज यूनियन के सचिव रहे और 1944 में उपाध्यक्ष भी बने। ग्वालियर से स्नातक उपाधि प्राप्त करने के बाद वह कानपुर चले गए। यहां उन्होंने डीएवी महाविद्यालय में प्रवेश लिया। यह जानकर हैरानी होगी कि अटल बिहारी और उनके पिताजी क्लासमेट थे और कानून का अध्ययन करते हुए कानपुर के डीएवी कॉलेज में उन्होंने अपने पिता के साथ हॉस्टल भी शेयर किया था। कला में पोस्ट ग्रेजुएशन फर्स्ट डिवीजन में करने के बाद वह पी. एच. डी करने लखनऊ चले गए। हालाँकि वह अपनी पी. एच. डी. पूरी नहीं कर सके क्योंकि पत्रकारिता से जुड़ने के कारण उन्हें अध्ययन के लिए समय नहीं मिल रहा था। उस समय राष्ट्रधर्म नामक समाचार-पत्र पंडित दीनदयाल उपाध्याय के संपादन में लखनऊ से मुद्रित हो रहा था। तब अटलजी इसके सह सम्पादक के रूप में कार्य करने लगे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय इस समाचार-पत्र का संपादकीय स्वयं लिखते थे और शेष कार्य अटलजी एवं उनके सहायक करते थे।
वह बाबा साहेब आप्टे थे जिनसे प्रभावित होकर वर्ष 1939 में अटलजी राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ में शामिल हुए और वर्ष 1947 में एक पूर्णकालिक सदस्य के तौर पर संघ के प्रचारक बन गए। संघ में शामिल होने से पहले अटल जी कम्युनिज्म के विचारों से काफी प्रभावित थे।
1942 के “भारत छोड़ो आंदोलन” में भी अटल जी ने सक्रिय रूप से भाग लिया था और जिसके चलते 24 दिनों तक जेल में भी रहे थे। यहीं से वाजपेयी की राजनैतिक यात्रा की शुरुआत हुई। इसी समय उनकी मुलाकात श्यामा प्रसाद मुखर्जी से हुई, जो भारतीय जनसंघ यानी बीजेएस के नेता थे। स्वास्थ्य समस्याओं के चलते मुकर्जी की जल्द ही मृत्यु हो गई और बीजेएस की कमान वाजपेयी ने संभाली और इस संगठन के विचारों और एजेंडे को आगे बढ़ाया।
सन 1957 में वह बलरामपुर सीट से पहली बार संसद सदस्य निर्वाचित हुए। छोटी उम्र के बावजूद वाजपेयी के विस्तृत नजरिए और जानकारी ने उन्हें राजनीति जगत में सम्मान और स्थान दिलाने में मदद की। पहली बार संसद के तौर पर जब अटलजी ने संसद में भाषण दिया था तब पंडित नेहरू भी संसद में मौजूद थे और अटल जी का भाषण सुनकर उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि – यह लड़का आगे चलकर देश का प्रधानमंत्री बन सकता है।
वर्ष 1977 में जब मोरारजी देसाई की सरकार बनी, वाजपेयी को विदेश मंत्री बनाया गया। दो वर्ष बाद उन्होंने चीन के साथ संबंधों पर चर्चा करने के लिए वहां की यात्रा की। भारत पाकिस्तान के 1971 के युद्ध के कारण प्रभावित हुए भारत-पाकिस्तान के व्यापारिक रिश्ते को सुधारने के लिए उन्होंने पाकिस्तान की यात्रा कर नई पहल की। जब जनता पार्टी ने आरएसएस पर हमला किया, तब उन्होंने 1979 में मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। वर्ष 1980 में भारतीय जनता पार्टी की नींव रखने की पहल उनके व बीजेएस तथा आरएसएस से आए लालकृष्ण आडवाणी और भैरो सिंह शेखावत जैसे साथियों ने रखी। स्थापना के बाद पहले पांच साल वाजपेयी इस पार्टी के अध्यक्ष रहे।
सन 1996 के लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी को में सत्ता में आने का मौका मिला और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री चुने गए। लेकिन बहुमत सिद्ध नहीं कर पाने के कारण सरकार गिर गईऔर वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद से मात्र 13 दिनों के बाद ही इस्तीफा देना पड़ गया। सन 1998 चुनाव में बीजेपी एक बार फिर विभिन्न पार्टियों के सहयोग वाला गठबंधन नेशनल डेमोक्रेटिक अलायन्स के साथ सरकार बनाने में सफल रही पर इस बार भी पार्टी सिर्फ 13 महीनों तक ही सत्ता में रह सकी, क्योंकि ऑल इंडिया द्रविड़ मुन्नेत्र काज़गम ने अपना समर्थन सरकार से वापस ले लिया।
वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने मई 1998 में राजस्थान के पोखरण में परमाणु परीक्षण कराए। 1999 के लोक सभा चुनावों के बाद नेशनल डेमोक्रेटिक अलायन्स (एनडीए) को सरकार बनाने में सफलता मिली और अटल बिहारी वाजपेयी एक बार फिर प्रधानमंत्री बने। इस बार सरकार ने अपने पांच साल पूरे किए और ऐसा करने वाली पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनी। सहयोगी पार्टियों के मजबूत समर्थन से वाजपेयी ने आर्थिक सुधार के लिए और निजी क्षेत्र के प्रोत्साहन हेतु कई योजनाएं शुरू की। उन्होंने औद्योगिक क्षेत्र में राज्यों के दखल को सीमित करने का प्रयास किया। वाजपेयी ने विदेशी निवेश की दिशा में और सूचना तकनीकी के क्षेत्र में शोध को बढ़ावा दिया।
पाकिस्तान और यूएसए के साथ मैत्रीपूर्ण रिश्ते कायम करके उनकी सरकार ने द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत किया। हालांकि अटल बिहारी वाजपेयी की विदेश नीतियां ज्यादा बदलाव नहीं ला सकीं, फिर भी इन नीतियों को बहुत सराहा गया।
19 फ़रवरी 1999 को सदा-ए-सरहद नाम से दिल्ली से लाहौर तक बस सेवा शुरू की गई। इस सेवा का उद्घाटन करते हुए प्रथम यात्री के रूप में वाजपेयी जी ने पाकिस्तान की यात्रा करके नवाज़ शरीफ से मुलाकात की और आपसी संबंधों में एक नयी शुरुआत की। कुछ ही समय पश्चात् पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज़ मुशर्रफ की शह पर पाकिस्तानी सेना व उग्रवादियों ने कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ करके कई पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लिया। अटल सरकार ने पाकिस्तान की सीमा का उल्लंघन न करने की अंतर्राष्ट्रीय सलाह का सम्मान करते हुए धैर्यपूर्वक किंतु ठोस कार्यवाही करके भारतीय क्षेत्र को मुक्त कराया। इस युद्ध में प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण भारतीय सेना को जान माल का काफी नुकसान हुआ और पाकिस्तान के साथ शुरु किए गए संबंध सुधार एकबार फिर शून्य हो गए।दिसंबर 2005 में अटल बिहारी वाजपेयी ने सक्रीय राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर दी।अटल जी भारत के पहले विदेश मंत्री थे, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया था।
अटलजी की अगुआई में सन् 1998 में राजस्थान के पोखरण में भारत का द्वितीय परमाणु परीक्षण किया गया जिसे अमेरिका की सीआईए को भनक तक नहीं लगने दी। आजीवन अविवाहित रहने वाले अटलजी का प्रेम प्रसंग भी सुर्ख़ियों में रहा। अटल बिहारी और उनके साथ ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज में पढ़ने वाली राजकुमारी कौल का अप्रत्यक्ष प्रेम प्रसंग जगजाहिर था।
वर्ष 1992 में पद्मभूषण, वर्ष 1994 में सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान, वर्ष 2015 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, ‘भारत रत्न‘ तथा उसी वर्ष बांग्लादेश द्वारा ‘लिबरेशन वार अवार्ड‘, इत्यादि अटलजी के शख्सियत की गवाही देने के लिए काफी हैं।
16 अगस्त 2018 को लम्बी बीमारी के बाद एम्स में इलाज के दौरान भारतीय राजनीति का यह ध्रुव तारा अंतरिक्ष में विलीन हो गया। आज जब अटल जी नहीं रहे तो यह कहने में अतिश्योक्ति नहीं होगी कि संसद में उनका अभाव कभी नहीं भरेगा। वह व्यक्तित्व, वह ज़िंदादिली, विरोधी को भी साथ ले कर चलने की वह भावना, वह सज्जनता, वह महानता शायद निकट भविष्य में देखने को नहीं मिलेगी।
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