Osho (Rajneesh) Biography in Hindi | ओशो (रजनीश) जीवन परिचय
ओशो (रजनीश) से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ
- क्या ओशो धूम्रपान करते थे ? : ज्ञात नहीं
- वह धार्मिक परंपराओं में स्थैतिक विश्वास प्रणालियों के खिलाफ थे और अपने ध्यान आधारित सिद्धांतों में पश्चिम सभ्यता की रीतियों को निहित करते थे।
- मानव कामुकता की ओर अपने खुले रुख के कारण उन्हें भारतीय मीडिया में “सेक्स गुरू” और संयुक्त राज्य अमेरिका में “रोल्स-रॉयस गुरु” (उनकी शानदार जीवन शैली के कारण) के नाम से जाना जाता था।
- उनके माता-पिता तारनापंथी जैन समुदाय से संबंधित थे और कपड़े का व्यापर करते थे।
- सात साल की उम्र तक ओशो का पालन पोषण उनके नाना-नानी के घर हुआ। रजनीश के अनुसार, उस समय का उनके व्यक्तित्व पर काफी प्रभाव पड़ा क्योंकि उनकी दादी ने उनको एक ऐसे वातावरण में रखा था जिसमें उन्हें कुछ भी करने की पूर्ण स्वतंत्रता थी, उन्होंने कभी भी रजनीश पर परंपरागत शिक्षा के लिए दबाव नहीं डाला।
- अपने दादा की मृत्यु के बाद वह अपने माता-पिता के घर गदरवाड़ा (मध्य प्रदेश) चले गए।
- किशोरावस्था के दौरान उन्हें पहले अपने दादा की मृत्यु और कुछ दिन बाद अपने चचेरे भाई की आकस्मिक मृत्यु ने काफी प्रभावित किया।
- अपने स्कूल के दिनों में वह एक प्रतिभाशाली और तर्कसंगत स्वभाव के छात्र थे।
- धीरे-धीरे उन्होंने प्रतिवाद को स्वीकार किया और सम्मोहन के क्षेत्र में जाने का निर्णय किया।
- वह इंडियन नेशनल आर्मी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नामक भारतीय राष्ट्रवादी संगठनों से जुड़े हुए थे, लेकिन बहुत जल्द उन्होंने उन संगठनों को छोड़ दिया।
- उन्नीस वर्ष की उम्र में स्नातक करने के लिए उन्होंने जबलपुर के हितकारिणी कॉलेज में प्रवेश किया और जिसे बाद में डी. एन. जैन कॉलेज, जबलपुर के नाम से जाना जाने लगा।
- उन्हें तर्कपूर्ण स्वभाव के कारण कई बार कक्षा से बाहर जाने के लिए कहा जाता था लेकिन परीक्षा देने के लिए उन्हें अनुमति दी गई थी।
- अपने कॉलेज के खाली समय में उन्होंने एक स्थानीय अख़बार एजेंसी में सहायक संपादक के रूप में नौकरी की।
- वर्ष 1951 से 1968 तक, उन्होंने जबलपुर में तारणपंथी जैन समुदाय द्वारा आयोजित हर साल सर्व धर्म सम्मेलन (सभी धर्मों की बैठकें) में चर्चा की।
- उन्होंने अपनी शादी के संबंध में अपने माता-पिता के फैसले का विरोध किया।
- रजनीश के अनुसार 21 मार्च 1953 में, उन्हें जबलपुर के भंवर्थल बाग में एक पेड़ के नीचे ज्ञान की अनुभूति हुई थी।
- वर्ष 1957 में, उन्होंने सागर विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में परास्नातक करने के बाद संस्कृत कॉलेज, रायपुर में एक शिक्षक का कार्य किया।
- रायपुर कॉलेज के कुलपति ने रजनीश को अपने कॉलेज के छात्रों के नैतिक चरित्र के लिए खतरा मानते हुए किसी अन्य कॉलेज में स्थानांतरण करने के लिए विचार विमर्श किया।
- वर्ष 1958 में, उन्होंने जबलपुर विश्वविद्यालय में एक लेक्चरर (व्याख्याता) के रूप में पढ़ाया। जिसके चलते वर्ष 1960 में उन्हें एक प्रोफेसर के पद पर पदोन्नत किया।
- 1960 के दशक के दौरान, उन्होंने पूरे भारत का एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में भ्रमण किया। वह महात्मा गांधी, समाजवाद और हिन्दू पाखंड के कट्टर आलोचक थे।
- वर्ष 1962 में, उन्होंने अपने ध्यान शिविर जीवन जागृति केंद्र (ध्यान केन्द्र) को शुरू किया, जो आगे चलकर जीवन जागृति आंदोलन (जीवन जागृति आंदोलन) में विस्तारित हो गया।
- वर्ष 1966 में एक दौरे के दौरान विवादास्पद भाषण के कारण उन्हें शिक्षण पद से इस्तीफा देना पड़ा।
- वर्ष 1969 में द्वितीय विश्व हिंदू सम्मेलन के दौरान, उन्होंने कहा कि “एक सच्चे धर्म को जीवन का आनंद लेने के तरीकों को सिखाना चाहिए और पुजारियों की कड़ी आलोचना करते हुए उन्हें मतलबी बताया।”
- वर्ष 1970 में, उन्होंने धार्मिक प्रवचनों के माध्यम से अपने मिशन का विस्तार किया और धार्मिक परंपराओं और रहस्यवाद में एक नई अंतर्दृष्टि प्रदान की।
- 26 सितंबर 1970 को उन्होंने अपने शिष्यों को नव-संन्यासी नाम दिया। उन सभी के सचिव उनकी पहली शिष्या लक्ष्मी ठाकरसी कुरुवा थी जिन्होंने एक नया नाम माँ योग लक्ष्मी पाया। उन्होंने ही इस आंदोलन को व्यवस्थित करने में आर्थिक सहायता प्रदान की थी।
- दिसंबर 1970 में, वह मुंबई के वुडलैंड अपार्टमेंट्स में स्थानांतरित हो गए जिसे वह बिना किसी यात्रा व्याख्यान देने के लिए प्रयोग करते थे।
- वर्ष 1971 में, उन्हें भगवान श्री रजनीश नाम दिया गया।
- वर्ष 1975 में, मानव क्षमता आंदोलन के कई चिकित्सक समूहों ने उनके इस आंदोलन को अपनाया। जिसके चलते उन्होंने अपने आश्रम के लिए अधिक मात्रा काफी धन एकत्रित किया।
- वर्ष 1981 में, उन्होंने अपने आश्रम (रजनीशपुरम) को पुनः निर्मित करने के लिए वास्को काउंटी, ओरेगन में स्थानांतरित किया परन्तु कुछ कानूनी विवादों के कारण वह कार्य नहीं हो सका।
- 10 अप्रैल 1981 को, उन्होंने साढ़े तीन साल के लिए आत्म मौन में प्रवेश किया। उस अवधि के दौरान वह अपने सत्संग भवन में चुपचाप आध्यात्मिक क्रिया के दौरान धार्मिक संगीत को सुनते और खलील जिब्रान (द पैगंबर), ईशा उपनिषद जैसी अन्य धार्मिक पुस्तकों को पढ़ते थे।
- 1 जून 1981 को वह संयुक्त राज्य अमरीका गए और मॉन्टेक्लेयर के किप कैसल में रिट्रीट सेंटर में रहे। 1981 के दौरान उनकी “स्पाइनल डिस्क हर्नियेशन” की समस्या का इलाज विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा सेंट थॉमस अस्पताल, लंदन में किया गया।
- 30 अक्टूबर 1984 को, उन्होंने सार्वजनिक मौन शपथ को तोड़ने का फैसला किया। जिसके चलते जुलाई 1985 में उन्होंने पुनः सार्वजनिक व्याख्यान करना शुरू कर दिया।
- रजनीश द्वारा वास्तविक आध्यात्मिक मूल्य भौतिक गरीबी नहीं हो सकती है। इस तथ्य को साबित करने के लिए उन्होंने बेहतरीन कपड़ों के साथ हाथों से बनी घड़ियों को पहनना शुरू किया और यहीं नहीं ओरेगन में हर रोज अलग-अलग रोल्स-रॉयस कारों को चलाते थे।
- अधिक जनसंख्या को रोकने के लिए उन्होंने दुनिया भर में गर्भनिरोधक और गर्भपात के वैधीकरण की वकालत की। उनके अनुसार एक बच्चे का होना या नहीं होने का निर्णय राजनीतिक के बजाय एक चिकित्सा विषय होना चाहिए।
- सितंबर 1985 में, उन्होंने एक प्रेस सम्मेलन को आयोजित किया जिसमें उन्होंने शीला (उनके निजी सचिव) और उनके साथियों को “फासीवादी का गिरोह” कहा था और अमेरिकी अधिकारियों से शीला समूह के अपराधों की जांच करने के लिए कहा था।
- उन्होंने 30 सितंबर 1985 को एक धार्मिक शिक्षक का खिताब लेने से इन्कार कर दिया था क्योंकि उनकी एक पुस्तक राजनीशवाद में राजनीशवाद को “धर्म रहित धर्म” कहा गया था। जिसके परिणामस्वरूप उनके शिष्यों द्वारा 5,000 प्रतियों को जला दिया गया।
- उन्होंने “मिस्टिक रोज़” नामक एक नई “ध्यान चिकित्सा” पद्धति का आविष्कार किया जिसमें एक व्यक्ति को एक हफ्ते के लिए दैनिक तीन घंटे तक हंसना पड़ता था, फिर एक सप्ताह में दैनिक तीन घंटे रोना पड़ता था और आखिरी सप्ताह में दैनिक तीन घंटे मौन रहना पड़ता था।
- ओशो ने ध्यान की एक नई विधा ईजाद की जिसे कुंडलिनी के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा उन्होंने कई ध्यान मुद्राएं विकसित कीं जैसे कि नादब्रह्म, इत्यादि।
- नवंबर 1987 में, रजनीश ने बताया कि संयुक्त राज्य में कैद के दौरान वहां के अधिकारियों ने उन्हें जहर दिया जिससे उन्हें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा हुईं। जिसके चलते उनकी तबीयत बिगड़ गई।
- वर्ष 1989 में उन्होंने अपना नाम “भगवान श्री रजनीश” से बदल कर “ओशो रजनीश” रख लिया। जिसके चलते ओशो के सभी ट्रेडमार्क ब्राण्डों को पुनः नामित किया।
- अप्रैल 1989 में, उन्होंने अपना अंतिम भाषण दिया और बाद में मौन रहकर प्रवचन देना शुरू किया।
- 19 जनवरी 1990 को, उनका पुणे आश्रम में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। जिसके चलते उनकी अस्थियों को पुणे आश्रम के “लाओ त्ज़ू हाउस” में रखा गया था।
- उन्होंने मानवीय अस्तित्व के सभी पहलुओं पर 650 से अधिक पुस्तकें लिखीं। जो उनके टेप वाले प्रवचनों पर आधारित हैं। जो 60 से अधिक विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध है।
- उनकी अधिकतर रचनाएं भारत की राष्ट्रीय संसद लाइब्रेरी, नई दिल्ली में रखी गई हैं।
- उनकी मृत्यु के बाद, उनके व्यक्तित्व के बारे में लोगों के विचारों में काफी बदलाव हुए। जनवरी 2008 में उनके आश्रमों की संख्या बढ़ कर 60 हो गई थी जिसमें लगभग 45,000 शिष्य थे।
- पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और प्रमुख भारतीय लेखक खुशवंत सिंह ने भी उनके व्यक्तित्व की सराहना की।
- आईबीएम और बीएमडब्ल्यू जैसी प्रसिद्ध कॉर्पोरेट कंपनियों के ग्राहकों के लिए ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन (ओआईएफ) द्वारा नियमित रूप से तनाव प्रबंधन सेमिनार का आयोजन किया जाता है।
- पुणे स्थित ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिजॉर्ट में प्रवेश पाने के लिए एचआईवी टेस्ट अनिवार्य है। जो लोग इस परीक्षा में असफल हो जाते हैं उन्हें आश्रम में प्रवेश नहीं दिया जाता है।
- ओशो के जीवन पर कई वृत्तचित्र फ़िल्में बनाई गई हैं जैसे कि समकालीन गुरु रजनीश (डेविड एम. कनिप), द गॉड देट फ्लेड (क्रिस्टोफर हिचेंन्स), रजनीश: आध्यात्मिक आतंकवादी (सिंथिया कॉनॉप), इत्यादि। रजनीश की ज़िंदगी पर आधारित सबसे प्रसिद्ध जीवनी फ़िल्म – द रीबिलियस फ्लॉवर (क्रिकून हुड्डा द्वारा निर्देशित और जगदीश भारती द्वारा निर्मित, 2016 में राजकुमार शाह द्वारा निर्मित) उनकी यादों और परिचित व्यक्तियों द्वारा प्रदान की गई जानकारी पर आधारित फ़िल्में हैं।