Tulsidas Biography in Hindi | तुलसीदास जीवन परिचय

तुलसीदास से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ अधिकांश विद्वानों के अनुसार तुलसीदास का जन्म राजापुर और सोरों शूकरक्षेत्र में माना जाता है। तुलसीदास के पिता एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण थे और उनकी माता एक गृहणी थी। विभिन्न विद्वानों के अनुसार जब गोस्वामी तुलसीदास का जन्म हुआ था, तब उनके मुख के दांत दिखाई देने लगे थे। सर्वप्रथम उन्होंने अपने मुख से "राम" शब्द का उच्चारण किया, जिसके चलते उनके पिता ने तुलसीदास का नाम "रामबोला" रख दिया। तुलसीदास का बचपन बहुत ही कष्टों में बीता, क्योंकि उनके जन्म के दो दिन बाद उनकी माता का देहांत हो गया था। तभी उनके पिता तुलसीदास को अशुभ समझने लगे और उसे एक चुनियाँ नामक महिला को दे देते हैं। जब तुलसीदास साढ़े पांच वर्ष के हुए तब चुनियाँ भी चल बसी। उसके बाद तुलसीदास अनाथों की तरह इधर-उधर घूमने लगा। वह भीख मांगकर अपने जीवनयापन के लिए भोजन एकत्रित करने लगे और गांव के एक हनुमान मन्दिर में रहने लगे। भगवान शंकरजी की प्रेरणा से रामशैल के रहनेवाले श्री नरहरि बाबा की मुलाकात बालक रामबोला से हुई। उसके बाद उन्होंने रामबोला का नाम विधिवत रूप से बदलकर "तुलसीदास" रख दिया और तुलसीदास को अपने साथ अयोध्या (उत्तर प्रदेश) ले गए। अयोध्या में उनका "यज्ञोपवीत-संस्कार" हुआ, जिसमें उन्होंने बिना किसी के सिखाए गायत्री मंत्र का स्पष्ट उच्चारण किया। जिसे देखकर सभी चकित हो गए। उसके बाद नरहरि बाबा ने वैष्णवों के पाँच संस्कारो को करवाकर तुलसीदास को राम-मंत्र की दीक्षा दी, जहां उन्होंने विद्याध्ययन भी किया। 29 वर्ष की आयु में, तुलसीदास का विवाह राजापुर…

जीवन परिचय
वास्तविक नाम गोस्वामी तुलसीदास
उपनाम रामबोला
व्यवसाय कवि
व्यक्तिगत जीवन
जन्मतिथि 1511 ई०
जन्मस्थान सोरों शूकरक्षेत्र, उत्तर प्रदेश (वर्तमान में कासगंज, एटा)
कुछ विद्वानों के अनुसार जिला राजापुर, बाँदा (वर्तमान में चित्रकूट)
मृत्यु तिथि 1623 ई०
मृत्यु स्थल असीघाट, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
आयु (मृत्यु के समय)112 वर्ष
गुरुनरहरिदास
राष्ट्रीयता भारतीय
गृहनगर सोरों शूकरक्षेत्र, उत्तर प्रदेश (वर्तमान में कासगंज, एटा)
कुछ विद्वानों के अनुसार जिला राजापुर, बाँदा (वर्तमान में चित्रकूट)
धर्म हिन्दू
जाति ब्राह्मण
संप्रदाय वैष्णव
साहित्यिक कार्यरामचरितमानस, विनयपत्रिका, दोहावली, कवितावली, हनुमान चालीसा, वैराग्य सन्दीपनी, जानकी मंगल, पार्वती मंगल
उपाधि/सम्मान गोस्वामी, अभिनव वाल्मीकि
परिवार पिता - आत्माराम शुक्ला दुबे
माता - हुल्सी
प्रेम संबन्ध एवं अन्य जानकारियां
वैवाहिक स्थिति विवाहित
पत्नी रत्नावली
बच्चे बेटा - तारक (जन्म के कुछ वर्षों बाद मृत्यु)
बेटी - कोई नहीं

तुलसीदास से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ

  • अधिकांश विद्वानों के अनुसार तुलसीदास का जन्म राजापुर और सोरों शूकरक्षेत्र में माना जाता है।
  • तुलसीदास के पिता एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण थे और उनकी माता एक गृहणी थी।
  • विभिन्न विद्वानों के अनुसार जब गोस्वामी तुलसीदास का जन्म हुआ था, तब उनके मुख के दांत दिखाई देने लगे थे।
  • सर्वप्रथम उन्होंने अपने मुख से “राम” शब्द का उच्चारण किया, जिसके चलते उनके पिता ने तुलसीदास का नाम “रामबोला” रख दिया।
  • तुलसीदास का बचपन बहुत ही कष्टों में बीता, क्योंकि उनके जन्म के दो दिन बाद उनकी माता का देहांत हो गया था। तभी उनके पिता तुलसीदास को अशुभ समझने लगे और उसे एक चुनियाँ नामक महिला को दे देते हैं।
  • जब तुलसीदास साढ़े पांच वर्ष के हुए तब चुनियाँ भी चल बसी। उसके बाद तुलसीदास अनाथों की तरह इधर-उधर घूमने लगा।
  • वह भीख मांगकर अपने जीवनयापन के लिए भोजन एकत्रित करने लगे और गांव के एक हनुमान मन्दिर में रहने लगे।
  • भगवान शंकरजी की प्रेरणा से रामशैल के रहनेवाले श्री नरहरि बाबा की मुलाकात बालक रामबोला से हुई। उसके बाद उन्होंने रामबोला का नाम विधिवत रूप से बदलकर “तुलसीदास” रख दिया और तुलसीदास को अपने साथ अयोध्या (उत्तर प्रदेश) ले गए।
  • अयोध्या में उनका “यज्ञोपवीत-संस्कार” हुआ, जिसमें उन्होंने बिना किसी के सिखाए गायत्री मंत्र का स्पष्ट उच्चारण किया। जिसे देखकर सभी चकित हो गए।
  • उसके बाद नरहरि बाबा ने वैष्णवों के पाँच संस्कारो को करवाकर तुलसीदास को राम-मंत्र की दीक्षा दी, जहां उन्होंने विद्याध्ययन भी किया।
  • 29 वर्ष की आयु में, तुलसीदास का विवाह राजापुर से थोडी ही दूर यमुना के पास एक गाँव की भारद्वाज गोत्र की कन्या रत्नावली के साथ हुआ।
  • विवाह के कुछ समय बाद वह अपने गुरु के साथ काशी चले गए।
  • एक दिन तुलसीदास को अपनी पत्नी की बहुत याद आई और उनसे मिलने के लिए उन्होंने अपने गुरु से अनुमति ली और अंधेरी रात में यमुना को पार करके तुलसीदास राजापुर अपनी पत्नी के कक्ष में जा पहुंचे। अपने कक्ष में रात को तुलसीदास को देखकर रत्नावली दंग हो गई। जब तुलसीदास ने अपनी पत्नी को घर वापस चलने के लिए कहा तब रत्नावली ने एक दोहे के माध्यम से कहा,“अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति ! नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत ?” वह दोहा सुनते ही तुलसीदास अपने घर वापस लौट आए और उनकी अनुपस्थिति में उनके पिता का भी देहांत हो गया था।
  • कुछ समय के बाद तुलसीदास राजापुर रहने के बाद पुन: काशी चले गए और वहाँ लोगों को राम-कथा सुनाने लगे।
  • एक दिन तुलसीदास को मनुष्य के वेष में एक प्रेत मिला, जिसने उन्हें हनुमान ‌जी का पता बताया। उसके बाद तुलसीदास हनुमान ‌जी से मिलने के लिए अपने गांव से रवाना हुए और अंत में उन्हें हनुमान जी के दर्शन हुए। तब उन्होंने हनुमान जी से श्रीरघुनाथजी के दर्शन कराने की प्रार्थना की। तभी हनुमान्‌जी ने कहा- “तुम्हें चित्रकूट में रघुनाथजी के दर्शन होंगें।” इतना सुनते ही तुलसीदास जी चित्रकूट की ओर चल पड़े। 
  • उन्होंने रामनवमी (यानि त्रेतायुग के आधार पर राम-जन्म) के दिन प्रातःकाल रामचरितमानस की रचना प्रारम्भ की। इस महान ग्रंथ को सम्पन्न होने में दो वर्ष, सात महीने और छब्बीस दिन का समय लगा था। 
  • 1680 ई० में, शनिवार को “राम-राम” का उच्चारण करते हुए, तुलसीदास जी का देहावसान हो गया था।
  • 1 अक्टूबर 1952 को, भारत सरकार द्वारा गोस्वामी तुलसीदास को महान कवि के रूप में सम्मानित करते हुए, एक डाक टिकट जारी की गई। 

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