Tyagaraja Biography in Hindi | त्यागराज जीवन परिचय
जीवन परिचय | |
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वास्तविक नाम | ककर्ला त्यागब्रह्मन |
उपनाम | ज्ञात नहीं |
व्यवसाय | शास्त्रीय संगीतकार, महान् कवि व रचनाकार |
व्यक्तिगत जीवन | |
जन्मतिथि | 4 मई 1767 |
मृत्यु तिथि | 6 जनवरी 1847 |
मृत्यु स्थल | तिरुवारूर, तंजावुर, तमिलनाडु, भारत |
मृत्यु कारण | स्वाभाविक मृत्यु |
समाधि स्थल | तिरुवारूर, तंजावुर, तमिलनाडु, भारत |
आयु (मृत्यु के समय) | 79 वर्ष |
जन्मस्थान | तिरुवारूर, तंजावुर, तमिलनाडु, भारत |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
राशि | वृषभ |
गृहनगर | तिरुवारूर, तंजावुर, तमिलनाडु, भारत |
परिवार | पिता : रामब्रह्मम माता : सीताम्मा भाई : कोई नहीं बहन : कोई नहीं |
धर्म | हिन्दू |
जाति | तमिल ब्राह्मण |
संगीत शैली | कर्नाटक संगीत |
प्रेम संबन्ध एवं अन्य जानकारियां | |
वैवाहिक स्थिति | अविवाहित |
पत्नी | कोई नहीं |
बच्चे | कोई नहीं |
त्यागराज से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ
- त्यागराज का जन्म तमिलनाडु के तंजावुर ज़िले में तिरूवरूर नामक स्थान पर माता सीताम्मा और पिता रामब्रह्मम के घर हुआ था।
- उन्होंने अपनी एक कृति में यह कहा है कि – “सीताम्मा मायाम्मा श्री रामुदु मा तंद्री” जिसका अर्थ सीता मेरी मां और श्री राम मेरे पिता हैं।
- वह संस्कृत भाषा व ज्योतिष विज्ञान के प्रखर ज्ञानी थे।
- बचपन से ही उनका संगीत के प्रति लगाव था, बहुत ही कम उम्र में वह वेंकटरमनैया के शिष्य बन गए और किशोरावस्था में ही उन्होंने पहले गीत ‘नमो नमो राघव’ की रचना की।
- त्यागराज के अनुसार संगीत ईश्वर से साक्षात्कार का मार्ग है, जिसके चलते उनके संगीत में भक्तिरस विशेष रूप से उभर कर सामने आया है।
- उन्होंने मुत्तुस्वामी दीक्षित और श्यामाशास्त्री के साथ कर्नाटक संगीत को एक नई दिशा प्रदान की और उनके योगदान को देखते हुए, उन्हें त्रिमूर्ति की संज्ञा दी गई।
- उनकी संगीत प्रतिभा से तंजावुर नरेश काफी प्रभावित हुए थे, जिसके चलते उन्हें दरबार में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन प्रभु श्री राम की उपासना में डूबे होने के कारण त्यागराज ने तंजावुर नरेश के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था।
- एक दिन त्यागराज के भाई ने भगवान श्री राम की मूर्ति (जिसकी वह अर्चना करते थे) कावेरी नदी में फेंक दी। जिससे त्यागराज अपने इष्टदेव के अपमान को बर्दाश्त नहीं कर सके और घर छोड़कर चले गए। जिसके चले उन्होंने दक्षिण भारत के सभी प्रमुख मंदिरों की यात्रा की और उन मंदिरों के देवताओं की स्तुति में गीत बनाए।
- त्यागराज ने करीब 600 कृतियों की रचना की है, इसके अलावा तेलुगू में दो नाटक प्रह्लाद भक्ति विजय और नौका चरितम भी लिखा है। प्रह्लाद भक्ति विजय के पांच दृश्यों में 45 कृतियां हैं, वहीं नौका चरितम एकांकी में 21 कृतियां हैं।
- वह अपनी कृतियों में भगवान श्री राम को मित्र, मालिक, पिता और सहायक बताते हैं।
- उन्होने समाज एवं साहित्य के साथ-साथ कला को भी समृद्ध किया। वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।
- वह तिरुवैयारू में अंबाल देवी के मंदिर में भजन गाया करते थे और उनकी दैनिक दिनचर्या थी कि वह भिक्षाटन के लिए जाने से पहले देवी की आराधना अवश्य करते थे।
- ऐसा कहा जाता है कि देव ऋषि नारद ने इन्हें शास्त्रीय संगीत के प्रचार प्रसार के लिए ‘स्वरार्णव’ नाम का एक ग्रंथ भेंट किया था, जब वह त्यागराज के द्वार पर एक वृद्ध व्यक्ति के रूप में आए और कहने लगे कि “मैं तुम से कुछ भजन सुनने के लिए आया हूँ, कहते हैं तुम्हें भगवान राम के दर्शन हुए हैं, मैं भी व्यक्तिगत रूप से तुम्हें देखने के लिए आया हूँ।“ त्यागराज ने वृद्ध व्यक्ति को आदर सहित बैठाया और पूरी भक्ति से भजन गाया, थोड़ी ही देर में वृद्ध व्यक्ति वहाँ से चला गया। उसी दिन रात्रि में त्यागराज को वृद्ध व्यक्ति ने स्वप्न में दर्शन दिए और पूछा, “मुझे पहचानते हो? मैं नारद हूँ। मैं तुम से अत्याधिक प्रसन्न हूँ। मैं यह ग्रंथ तुम्हें भेंट देता हूँ। तुम अपनी प्रसिद्धि के चरम उत्कर्ष पर पहुँचोगे।“
- वर्ष 1946 में, तेलुगू सिनेमा पर चित्तौर वी नाग्याह द्वारा त्यागराज के जीवन पर एक फिल्म Thyagayya बनाई गई।