Menu

Chandra Shekhar Azad Biography in Hindi | चंद्रशेखर आजाद जीवन परिचय

Chandra Shekhar Azad

जीवन परिचय
वास्तविक नाम चंद्रशेखर तिवारी [1]Britannica
व्यवसाय भारतीय स्वतंत्रता सेनानी
जाने जाते हैंचंद्रशेखर आजाद 27 फरवरी 1931 को अपने एक क्रांतिकारी साथी से मिलने इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क (जो अब चंद्रशेखर आजाद पार्क के नाम से जाना जाता है ) में गए थे, जहां उनका साथी ब्रिटिश पुलिस से मिलकर उनके साथ विश्वासघात किया। अल्फ्रेड पार्क को पुलिस ने चारो तरफ से घेर लिया इस मुठभेड़ में कुछ ब्रिटिश पुलिस अधिकारी घायल हो गए और बंदूक की लड़ाई के दौरान चंद्रशेकर आजाद ने अपनी अंतिम गोली खुद के सिर पर मार लिया। [2]Hindustan Times
शारीरिक संरचना
आँखों का रंगकाला
बालों का रंगकाला
व्यक्तिगत जीवन
जन्मतिथि 23 जुलाई 1906 (सोमवार)
जन्मस्थान भावरा, अलीराजपुर राज्य, ब्रिटिश भारत
मृत्यु तिथि27 फरवरी 1931
मृत्यु स्थलचंद्रशेखर आजाद पार्क, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
आयु (मृत्यु के समय)24 वर्ष
मृत्यु का कारणआत्महत्या [3]Hindustan Times
राशिसिंह (Leo)
राष्ट्रीयताभारतीय
गृहनगर/राज्यभावरा, अलीराजपुर राज्य
प्रेम संबन्ध एवं अन्य जानकारियां
वैवाहिक स्थितिअविवाहित
गर्लफ्रेंड ज्ञात नहीं
परिवार

पत्नीलागू नहीं
माता/पितापिता- सीताराम तिवारी (माली)
माता- जागरानी देवी (गृहिणी)
Chandra Shekhar Azad's mother
भाईसुखदेव (बड़े भाई)

Chandra Shekhar Azad

चंद्रशेखर आजाद से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ

  • चंद्रशेखर आजाद एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने भारत देश आज़ाद करने के लिए अपने जान की कुर्बानी दे दी। 1928 में राम प्रसाद बिस्मिल के निधन के बाद चंद्रशेखर आज़ाद ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) संगठन का नाम बदलकर ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) रख दिया।
  • 1923 में रोशन सिंह, राजेंद्र नाथ लाहिरी और अशफाकउल्ला खान ने एचआरए संगठन की स्थापना की। चंद्रशेखर आजाद उन पैम्फलेटों पर “बलराज” नाम से हस्ताक्षर करते थे जो ब्रिटिश सरकार को हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के कमांडर-इन-चीफ के रूप में जारी किया था।
  • चंद्रशेखर आजाद के दादा उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बदरका गांव के वंशज थे। उनके माता-पिता अपने बड़े बेटे सुखदेव के जन्म के तुरंत बाद एक अच्छी जीविका की तलाश में मध्य प्रदेश के अलीराजपुर चले गए। चंद्रशेखर आजाद के पिता तीन बार शादी किए थे और उनकी मां उनके पिता की तीसरी पत्नी थीं। उनके पिता की पहली और दूसरी पत्नियों का पहले ही निधन हो गया था।
  • उनके पिता ने उन्हें संस्कृत विद्वान बनाने के लिए बनारस के काशी विद्यापीठ भेज दिया था। लेकिन उनकी माँ इस बात से सहमत नहीं थी।
  • बचपन में आजाद के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी आजाद के एक शिक्षक ने ब्रिटिश सरकार से गुजारिश कर उनके लिए तहसील कार्यालय में नौकरी की व्यवस्था की जो आज़ाद को पसंद नहीं आई और जल्द ही उन्होंने नौकरी छोड़ दी क्योंकि वह ब्रिटिश अधिकारियों की आज्ञा का पालन नहीं करना चाहते थे।
  • किशोरावस्था में चंद्रशेखर आज़ाद ने बॉम्बे में भारतीय मजदूर वर्ग के लोगों की सबसे खराब परिस्थितियों का अनुभव किया। जब आजाद ने 1920 में कुछ समय के लिए एक जहाज पर बतौर चित्रकार काम किया, जहां उन्होंने भारतीयों के प्रति ब्रिटिश सरकार के उत्पीड़ित व्यवहार को देखा। काम के दौरान चंद्रशेखर आज़ाद और अन्य कार्यकर्ताओं को एक भीड़भाड़ वाले जहाज पर सोने और खाने के लिए मजबूर किया गया था। चंद्रशेखर आजाद जहाज के भीड़भाड़ वाले कमरों में सोने और खाने से बचने के लिए बहुत फिल्में देखते थे।

आजाद के एक साथी विश्वनाथ वैशम्पायन ने अपनी जीवनी में चंद्रशेखर आजाद के जीवन से जुड़े एक पल को साझा किया। उन्होंने बताया-

उन्होंने सात दिनों में से छह दिन काम किया और जो भी पैसा कमाया उसे रविवार को एक मूवी टिकट और एक नई शर्ट खरीदी, शर्ट को फेंक दिया जो उन्होंने पूरे सप्ताह पहनी थी।”

  • पंद्रह साल की उम्र में संस्कृत की शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने 1921 में असहयोग आंदोलन के विरोध और अभियानों में भाग लिया। महाविद्यालय के छात्र के रूप में वह उन छात्रों में से थे जिन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ वंदे मातरम और भारत माता की जय के नारे लगाए थे। जिसके चलते उन्हें 20 दिसंबर 1921 को अन्य छात्रों के साथ गिरफ्तार किया गया था। गिरफ्तारी के एक हफ्ते बाद उन्होंने कई अदालती सुनवाई की। उन्होंने अपना नाम ‘आज़ाद’, अपने पिता का नाम ‘आज़ादी’ और अपना पता ‘जेल’ के रूप में जिलाधिकारी न्यायमूर्ति ‘रेवरेंड टॉमसन क्रेगट’ के सामने प्रस्तुत किया। नाराज मजिस्ट्रेट ने चंद्रशेखर आजाद को दिन में 15 कोड़े मारने के साथ-साथ 23 हफ्ते जेल में रखने का आदेश दिया।
  • वर्ष 1922 में महात्मा गांधी ने अपने असहयोग आंदोलन को रोक दिया जिससे चंद्रशेखर आज़ाद काफी निराश हुए। जल्द ही वह मनमथ नाथ गुप्ता नामक एक और भारतीय स्वतंत्रता क्रांतिकारी से मिले, जिन्होंने आजाद को राम प्रसाद बिस्मिल से मिलवाया। राम प्रसाद बिस्मिल 1923 में क्रांतिकारी आंदोलन हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के संस्थापक थे। आजाद इस आंदोलन में शामिल हो गए और जल्द ही अपने धन और वित्त के लिए काम करना शुरू किया। 1925 में काकोरी ट्रेन डकैती सहित ब्रिटिश सरकार की संपत्तियों से संबंधित डकैतियों के पीछे चंद्रशेखर आजाद का हाथ था। भारतीय स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए आजाद ने 1928 में लाहौर में जे. पी. सॉन्डर्स को गोली मारने की योजना बनाई। 18 दिसंबर 1928 को लाहौर में जे.पी. सॉन्डर्स की हत्या के बाद उन्होंने कमांडर-इन-चीफ ‘बलराज’ के रूप में हस्ताक्षर करके ब्रिटिश सरकार को एक पैम्फलेट भेज दिया। HSRA pamphlet after the murder of Saunder that was signed by Balraj a pen name of Chandra Shekhar Azad
  • 1929 में आजाद और उनके साथियों द्वारा भारत के वायसराय की ट्रेन को बम से उड़ाने का भी प्रयास किया गया। उनके संगठन को मोती लाल नेहरू ने भी आर्थिक रूप से समर्थन दिया जो तत्कालीन कांग्रेस पार्टी के एक प्रमुख नेता थे।
  • चंद्रशेखर आजाद ने कुछ समय के लिए झांसी के सतर नदी के तट और हनुमान मंदिर के पास के जंगलों को अपने रहने का ठिकाना बनाया। जहां वह निशानेबाजी का अभ्यास करते थे और साथ ही वह अपने साथियों को भी शूटिंग सिखाया करते थे। वहाँ वह कुछ समय के लिए पंडित हरिशंकर ब्रम्हचारी के शिष्य बने। झांसी में रहने के दौरान वह पास के गांव ‘धीमरपुरा’ के बच्चों को पढ़ाते थे और स्थानीय ग्रामीणों से अच्छे संबंध बनाए। साथ ही उन्होंने सदर बाजार के बुंदेलखंड मोटर गैरेज में कार चलाना सीखा।
  • हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) संगठन जिसकी स्थापना राम प्रसाद बिस्मिल ने की थी। 1923 में जोगेश चंद्र चटर्जी, सचिंद्र नाथ सान्याल और शचींद्र नाथ बख्शी काकोरी ट्रेन डकैती में शामिल थे। राम प्रसाद बिस्मिल को उनके साथियों अशफाकउल्ला खान, ठाकुर रोशन सिंह और राजेंद्र नाथ लाहिरी के साथ गिरफ्तारी किया गया और मौत की सजा दी गई। हालांकि लूट के सक्रिय भागीदार जैसे चंद्रशेखर आजाद, केशब चक्रवर्ती और मुरारी लाल गुप्ता पुलिस की गिरफ्तारी से बच गए। A Picture of Ashfaq Bismil and Roshan Singh
  • वर्ष 1928 में चंद्रशेखर आजाद ने भगत सिंह के साथ हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) संगठन को हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) में पुनर्गठित किया।
  • आजाद हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) आंदोलन के कमांडर-इन-चीफ के रूप में लोकप्रिय होने के बाद अन्य प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी जैसे सदाशिवराव मलकापुरकर, विश्वनाथ वैशम्पायन, और भगवान दास महौर इस आंदोलन के प्रमुख व्यक्ति थे। समय बीतने के साथ-साथ रघुनाथ विनायक धुलेकर और सीताराम भास्कर भागवत जैसे प्रसिद्ध कांग्रेसी नेता भी इस आंदोलन का एक अभिन्न अंग थे। इन नेताओं ने उन्हें ब्रिटिश सरकार से बचे रहने के लिए आश्रय प्रदान किया। अन्य ज्ञात क्रांतिकारी नेता केसरी दीवान शत्रुघ्न सिंह, जिन्होंने बुंदेलखंड में स्वतंत्रता आंदोलन की स्थापना की, ने भी स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष के बीच वित्त और हथियारों के साथ आजाद का समर्थन किया।
  • मनमथ नाथ जिन्होंने आज़ाद को राम प्रसाद बिस्मिल से मिलवाया, हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के एक सक्रिय सदस्य थे। संगठन जिसने बाद में अपनी जीवनी में “चंद्रशेखर आज़ाद” शीर्षक से आज़ाद के विद्रोही कार्यों पर एक पुस्तक लिखी। जिसका नाम “भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का इतिहास” (उपरोक्त का अंग्रेजी संस्करण: 1972) है। उन्होंने अपनी जीवनी में उल्लेख किया कि आजाद ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के आंदोलन में समाजवादी सिद्धांत का पालन किया।
  • 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद पुलिस के सीआईडी ​​प्रमुख सर जे आर एच नॉट-बोवर को आजाद के बारे में एक सूचना मिली कि आजाद इलाहबाद के अल्फ्रेड पार्क में अपने साथी सुखदेव राज के साथ मीटिंग शेड्यूल पर है। जिसके बाद सर जेआर एच नॉट-बोवर डीएसपी ठाकुर विश्वेश्वर सिंह व अन्य पुलिस कर्मियों के साथ हथियार व बंदूक लेकर अल्फ्रेड पार्क को चारों तरफ से घेर लिया। सुखदेव राज मौके से बाल-बाल बच गए आजाद पार्क में एक बड़े पेड़ के पीछे छिप गए और जवाबी फायरिंग शुरू कर दी कथित तौर पर उन्होंने अंत में एक गोली खुद के सिर पर मार ली क्योंकि उन्होंने हमेशा मुक्त रहने की प्रतिज्ञा ली थी वह ब्रिटिश पुलिस द्वारा गिरफ्तार नहीं होना चाहते थे आजाद की जवाबी फायरिंग में डीएसपी व बोवर को भी काफी चोटें लगी थी। आजाद के एनकाउंटर के बाद उनके शव को आम जनता और उनके परिवार के सदस्यों को बताए बिना ब्रिटिश पुलिस द्वारा निजी दाह संस्कार के लिए रसूलाबाद घाट भेज दिया गया था। जल्द ही उनके मुठभेड़ की खबर आग की तरह फैल गई और आम जनता ब्रिटिश सरकार के खिलाफ और चंद्रशेखर आजाद की प्रशंसा के नारे लगाते हुए रसूलाबाद घाट पर उनके दाह संस्कार में एकत्र हो गए। बाद में आजाद के पुराने साथियों वीरभद्र तिवारी और यशपाल को आजाद की सूचना पुलिस को देने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया। Last photo of Chandra Shekhar Azad when he shot himself
  • स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग लेने के दौरान चंद्रशेखर आज़ाद को उनके साथियों द्वारा उन्हें प्यार से आज़ाद, बलराज और पंडितजी कहा जाता था।
  • चंद्रशेखर आजाद एक उत्कृष्ट निशानेबाज थे उन्होंने अपने बचपन में झाबुआ जिले के भील समुदाय के लड़कों से तीरंदाजी का प्रशिक्षण प्राप्त किया था जिसे बाद में उन्होंने अपने पूरे वयस्कता में अभ्यास किया। इस तीरंदाजी ने उन्हें एक महान बंदूकधारी बना दिया। Chandra Shekhar Azad in his teens
  • चंद्रशेखर आजाद का वास्तविक नाम चंद्रशेखर तिवारी था 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान ब्रिटिश पुलिस द्वारा उनकी गिरफ्तारी के बाद उन्होंने अपने नाम के बाद उर्दू शब्द ‘आजाद जिसका अर्थ है मुक्त’ जोड़ दिया। उन्होंने अपना नाम “आजाद” बताया, अपने पिता का नाम “आजादी” बताया और जिला मजिस्ट्रेट के सामने अपने अदालती परीक्षण के दौरान जेल को अपना पता बताया।
  • कथित तौर पर चंद्रशेखर आजाद का व्यवहार बेचैन करने वाला था। वह एक बेचैन क्रांतिकारी थे, उनके समूह के सदस्यों और साथियों द्वारा उन्हें अक्सर ‘क्विक सिल्वर’ कहा जाता था।
  • चंद्रशेखर आजाद को उनके क्रांतिकारी युग के दौरान उनके मित्र मास्टर रुद्र नारायण ने उनका एक फोटो खिंचा था यह तस्वीर आजाद के परिवार के सदस्यों की बताई जा रही है। Chandra Shekhar Azad with the wife and children of his friend
  • भारत में ब्रिटिश शासन का विरोध करते हुए चंद्रशेखर आजाद नारा लगाते थे। उनका नारा था-

    दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं और आजाद ही रहेंगे।”

  • स्वतंत्रता संग्राम के दौरान चंद्रशेखर आजाद द्वारा अपनाई गई विचारधारा समाजवाद थी 1928 में उन्हें हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) का कमांडर-इन-चीफ चुना गया इस विचारधारा के अनुसार समूह के सभी सदस्यों द्वारा सभी धार्मिक और जाति प्रतीकों जैसे पगड़ी, तिलक या जनेऊ को त्याग दिया गया था। आज़ाद ने एक भाषण के दौरान कहा-

    हम ब्रिटिश राज के तहत उत्पीड़न और गुलामी के खिलाफ लड़ते हुए अपने जीवन का बलिदान देने के लिए उत्सुक हैं लेकिन ब्रिटिश राज के तहत जो दमन मौजूद है, वह रियासतों की तुलना में कुछ भी नहीं है। कभी-कभी मुझे लगता है कि हमें ब्रिटिश भारत छोड़कर रियासतों में जाकर वहां काम करना चाहिए। ज़रा सोचिए, वह जानवर [राजकुमार] जो सोचते हैं कि दस से बीस महिलाओं को अपने हरम में रखना उनका अधिकार है वह अपनी प्रजा के साथ कैसा न्याय करेंगे?”

  • भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के लिए इलाहाबाद के आजाद पार्क में उनकी प्रतिमा का निर्माण किया गया।
  • भारत की आजादी के बाद भारत सरकार ने अल्फ्रेड पार्क का नाम बदलकर ‘चंद्र शेखर आजाद पार्क’ कर दिया। आजाद ने जिस पेड़ के निचे खुद को गोली मारी थी उस पेड़ को भी भारत की आजादी के बाद भारतीय इतिहास में एक स्मारक वृक्ष घोषित किया गया। The tree at Alfred Park in Allahabad where Chandra Shekhar Azad died
  • आजाद की मृत्यु के बाद उनकी बंदूक को अंग्रेजों ने जब्त कर लिया था। भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद इस बंदूक को भारतीय इतिहास में एक स्मारक वस्तु के रूप में घोषित किया गया। Gun of Chandra Shekhar Azad
  • चंद्रशेखर आजाद के जीवन पर आधारित भारत में विभिन्न फिल्में- चंद्रशेखर आजाद (1963), शहीद (1965), 23 मार्च 1931: शहीद (2002), लीजेंड ऑफ भगत सिंह (2002), शहीद-ए-आजम (2002), और रंग दे बसंती (2006) शामिल हैं। सन्नी देओल ने फिल्म शहीद 2002 में आजाद की भूमिका निभाई। Sunny Deol extreme right portraying Azad
  • वर्ष 2002 में फिल्म लीजेंड ऑफ भगत सिंह में अखिलेंद्र मिश्रा ने आजाद का किरदार निभाया था। चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, बिस्मिल और अशफाक को फिल्म रंग दे बसंती में चित्रित किया गया था, जिसमें आज की पीढ़ी के जीवन की तुलना स्वतंत्रता सेनानियों से की गई थी। इस फिल्म का निर्माण और निर्देशन प्रसिद्ध भारतीय निर्देशक और निर्माता राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने किया था और आमिर खान ने इस फिल्म में चंद्रशेखर आजाद की भूमिका निभाई थी। Aamir Khan right as Azad in a still from the movie Rang De Basanti
  • वर्ष 2018 में स्टार भारत पर टेलीविजन शो ‘चंद्रशेखर’ का प्रसारण किया गया था। आजाद के बचपन किशोर और वयस्कता को इस शो में अयान जुबैर, देव जोशी और करण शर्मा ने चित्रित किया था। Chandrashekhar a television series of 2018

सन्दर्भ

सन्दर्भ
1 Britannica
2, 3 Hindustan Times

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *