R. D. Burman Biography in hindi | आर. डी. बर्मन जीवन परिचय

आर. डी. बर्मन से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ क्या आर. डी. बर्मन धूम्रपान करते थे ? ज्ञात नहीं क्या आर. डी. बर्मन शराब पीते थे ? हाँ उनका जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ, जो संगीत से जुड़ा हुआ था। उनका उपनाम पंचम था। इस नाम पर दो कहानियां प्रचलित है, कि उनका उपनाम कैसे पड़ा। कुछ लोगों द्वारा कहा जाता है कि "बचपन में वह संगीत के पांचवे सुर 'Pa' का उच्चारण करते रहते थे। हालांकि, कुछ लोगों का कहना है कि एक बार जब अशोक कुमार राहुल को देखने आए, तो उन्होंने “Pa Pa" कहना शुरू किया। जिसके चलते अशोक कुमार ने उनका नाम "पंचम" रख दिया। बचपन में, उनके पिता एस. डी. बर्मन ने उनसे पूछा, "आप क्या बनना चाहते हैं ?" फिर, आर. डी. बर्मन ने जवाब दिया, "मुझे साइकिल चलाना बहुत पसंद है और मैं बहुत अच्छे से साइकिल चलाता हूँ और माउथ ऑर्गन अच्छे से बजा लेता हूँ। जिसके चलते मैंने स्वयं अपनी धुनें बनाई है।" जिससे उनकी संगीत की यात्रा शुरू हुई। कलकत्ता में, कुछ साल रहने के बाद, वह अपने परिवार के साथ बॉम्बे (अब, मुंबई) चले गए। जहां, उन्होंने अली अकबर खान (एक प्रसिद्ध सरोद वादक) से 'सरोद' सीखना शुरू किया और हार्मोनिका नामक माउथ ऑर्गन को भी बजाना सीखा। जब वह सिर्फ 9 वर्ष के थे, तब उन्होंने अपने जीवन के पहले गीत को लिखा। उसके बाद, उन्होंने फिल्म 'फंटूश' (1956) के लिए 'ए मेरी टोपी पलट के आ' गीत को लिखा। फिल्म 'प्यासा' (1957) के गीत 'सर जो तेरा…

जीवन परिचय
वास्तविक नाम राहुल देव बर्मन
उपनाम टुब्लू, पंचम
व्यवसाय संगीत निर्देशक, गायक, संगीतकार
शारीरिक संरचना
आँखों का रंग भूरा
बालों का रंग काला
करियर
डेब्यू फिल्म (एक संगीतकार के रूप में) : फंटूश (1956) (गीत - ए मेरी टोपी पलट के आ)
फिल्म (एक संगीत निर्देशक के रूप में) : राज़ (1959)
पुरस्कार एवं सम्मान • उन्हें फिल्म "1942 : ए लव स्टोरी" (1955) के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक के रूप में फिल्मफेयर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
• उन्हें फिल्म 'सनम तेरी कसम' (1983) के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक के रूप में फिल्मफेयर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
• उन्हें फिल्म मासूम (1984) के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक के रूप में फिल्मफेयर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
उनके नाम पर पुरस्कार और स्थल • नई संगीत प्रतिभा के लिए फिल्मफेयर आर. डी. बर्मन अवॉर्ड
• वर्ष 2009 में, बृहन्मुंबई नगर निगम ने सांताक्रूज में एक चौक का नाम "आर. डी. बर्मन" रखा।
• 3 मई 2013 को, भारतीय डाक ने एक विशेष स्मारक 'पोस्टेज स्टाम्प' लॉन्च की, जिसमें आर. डी. बर्मन की तस्वीर चित्रित है।

• वर्ष 2016 में, गूगल ने आर. डी. बर्मन की 77 वीं जयंती की सालगिरह पर एक "गूगल डूडल" बनाया था।
व्यक्तिगत जीवन
जन्म तिथि 27 जून 1939
जन्मस्थान कलकत्ता, बंगाल प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत
मृत्यु तिथि 4 जनवरी 1994
आयु (मृत्यु के समय)54 वर्ष
मृत्यु कारण हृदयघात (दिल का दौरा पड़ने से)
राष्ट्रीयता भारतीय
हस्ताक्षर
गृहनगर कलकत्ता (अब, कोलकाता), भारत
राशिकर्क
स्कूल पश्चिम बंगाल में एक स्कूल
शैक्षणिक योग्यता ज्ञात नहीं
धर्म हिन्दू
खाद्य आदत मांसाहारी
शौक अभिरुचि खाना बनाना और खेल देखना
प्रेम संबन्ध एवं अन्य जानकारी
वैवाहिक स्थिति विवाहित
परिवार
पत्नी • रीटा पटेल (विवाह 1966 और तलाक 1971)

आशा भोसले (विवाह 1979)
बच्चे बेटा - • हेमंत भोसले (सौतेला बेटा)

• आनंद भोसले (सौतेला बेटा)

बेटी - वर्षा भोसले (सौतेली बेटी)
माता-पिता पिता - सचिन देव बर्मन (संगीत निर्देशक)
माता - मीरा देव बर्मन (गीतकार)
पसंदीदा चीजें
पसंदीदा भोजन बिरयानी, मछली कालिया, मटन व्यंजन, क्रेब्स और झींगा, गोयन स्टूज, सरपटेल
पसंदीदा गायक किशोर कुमार, मोहम्मद रफी
पसंदीदा रंग लाल

आर. डी. बर्मन से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ

  • क्या आर. डी. बर्मन धूम्रपान करते थे ? ज्ञात नहीं
  • क्या आर. डी. बर्मन शराब पीते थे ? हाँ

    आर. डी. बर्मन शराब पीते हुए

  • उनका जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ, जो संगीत से जुड़ा हुआ था।
  • उनका उपनाम पंचम था। इस नाम पर दो कहानियां प्रचलित है, कि उनका उपनाम कैसे पड़ा। कुछ लोगों द्वारा कहा जाता है कि “बचपन में वह संगीत के पांचवे सुर ‘Pa’ का उच्चारण करते रहते थे। हालांकि, कुछ लोगों का कहना है कि एक बार जब अशोक कुमार राहुल को देखने आए, तो उन्होंने “Pa Pa” कहना शुरू किया। जिसके चलते अशोक कुमार ने उनका नाम “पंचम” रख दिया।

    आर. डी. बर्मन का उपनाम

  • बचपन में, उनके पिता एस. डी. बर्मन ने उनसे पूछा, “आप क्या बनना चाहते हैं ?” फिर, आर. डी. बर्मन ने जवाब दिया, “मुझे साइकिल चलाना बहुत पसंद है और मैं बहुत अच्छे से साइकिल चलाता हूँ और माउथ ऑर्गन अच्छे से बजा लेता हूँ। जिसके चलते मैंने स्वयं अपनी धुनें बनाई है।” जिससे उनकी संगीत की यात्रा शुरू हुई।
  • कलकत्ता में, कुछ साल रहने के बाद, वह अपने परिवार के साथ बॉम्बे (अब, मुंबई) चले गए। जहां, उन्होंने अली अकबर खान (एक प्रसिद्ध सरोद वादक) से ‘सरोद’ सीखना शुरू किया और हार्मोनिका नामक माउथ ऑर्गन को भी बजाना सीखा।

    आर. डी. बर्मन संगीत सीखते हुए

  • जब वह सिर्फ 9 वर्ष के थे, तब उन्होंने अपने जीवन के पहले गीत को लिखा। उसके बाद, उन्होंने फिल्म ‘फंटूश’ (1956) के लिए ‘ए मेरी टोपी पलट के आ’ गीत को लिखा।
  • फिल्म ‘प्यासा’ (1957) के गीत ‘सर जो तेरा चकराए’ की धुन, उनके द्वारा बचपन में बनाई गई थी।
  • उसके बाद, उन्होंने “कागज़ के फूल” (1957), “सोलवा साल” (1958) और “चलती का नाम गाड़ी” (1958) जैसी फिल्मों में अपने पिता की सहायता की।

    आर. डी. बर्मन अपने पिता के साथ फिल्म में कार्य करते हुए

  • उन्होंने हार्मोनिका बजाना सीखा। जिसके चलते उन्होंने फिल्म ‘सोलवा साल’ के एक गीत “है अपना दिल तो आवरा” में माउथ ऑर्गन को बजाया था।

  • उनकी संगीत यात्रा तब शुरू हुई, जब उन्होंने फिल्म राज़ (1959) में एक संगीत निर्देशक के रूप में कार्य किया। लेकिन, कुछ कारणों से फिल्म रिलीज़ नहीं हो पाई थी।
  • वर्ष 1961 में, एक फिल्म “छोटे नवाब” को रिलीज़ किया गया। जो संगीत निर्देशक के रूप में उनकी पहली रिलीज़ फिल्म थी।
  • अपने करियर के प्रारंभिक चरणों के दौरान, उन्होंने भूत बंगला (1965) और प्यार का मौसम (1969) जैसी फिल्मों में अभिनय कर अभिनय क्षेत्र में अपनी किस्मत आजमाने की कोशिश की।

    आर. डी. बर्मन फिल्म भूत बंगला (1965) में

  • वर्ष 1966 में, वह फिल्म ‘तीसरी मंजिल’ का हिस्सा बने, जो एक स्वतंत्र संगीत निर्देशक के रूप में उनके करियर की पहली हिट फिल्म थी। इस फिल्म ने उनके करियर को एक नई दिशा प्रदान की। जिसके चलते उन्होंने कई अन्य हिट फिल्मों ‘पड़ोसन’ (1968), ‘वारिस’ (1969), इत्यादि में कार्य किया।
  • वर्ष 1969 में, फिल्म “अराधाना” की शूटिंग के दौरान, उनके पिता एस. डी. बर्मन बीमार पड़ गए। फिर, उन्होंने एक सहायक संगीतकार के रूप में पदभार संभाला और फिल्म के संगीत को पूरा किया। उस फिल्म में उन्होंने सुपरहिट बॉलीवुड गीत “कोरा कागज़ था ये मन मेरा” को भी संगीतबद्ध किया।
  • वर्ष 1971 में, वह अपनी पहली पत्नी रीटा पटेल से अलग हो गए। वर्ष 1972 की फिल्म परिचय के गीत ‘मुसाफिर हूँ यारों’ को एक होटल में लिखा (अपनी पत्नी से अलग होने के बाद) था।

  • वर्ष 1970 के दशक में, वह भारतीय फिल्म संगीत उद्योग में बहुत लोकप्रिय हो गए। वर्ष 1975 में, उन्होंने अंग्रेजी गीत ‘आई एम फॉलिंग इन लव विद अ स्ट्रेंजर’ को लिखा। इस गीत को एक दृश्य के रूप में फिल्म में फिल्माया गया, जहां परवीन बॉबी और अमिताभ बच्चन एक दूसरे से एक बार में मिलते हैं।

    आर. डी. बर्मन का गीत ‘आई एम फॉलिंग इन लव विद अ स्ट्रेंजर’ फिल्म दीवार

  • वर्ष 1975 में, उनके पिता का निधन हो गया। अपने पिता की मृत्यु के बाद, उन्होंने शोले (1975), हम किसी से कम नहीं (1977), कसमें वादे (1978), गोलमाल (1979), कुदरत (1981), खुबसुरत (1980), इत्यादि फिल्मों के लिए कई हिट गाने लिखे।
  • फिल्म शोले के लोकप्रिय गीत “मेहबूबा मेहबूबा” को आर. डी. बर्मन ने गाया था। इस गीत को वर्ष 1975 में 24 वें स्थान पर और वर्ष 1976 में बिनाका गीतामाला द्वारा 6 वें स्थान पर सूचीबद्ध किया गया था। इस गीत के लिए, उन्हें सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक के रूप में फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया।

  • वर्ष 1984 में, उन्होंने संगीत उद्योग में कुमार सानू को फिल्म “ये देश” के द्वारा परिचित करवाया। उसी वर्ष, उन्होंने अभिजीत भट्टाचार्य फिल्म आनंद और आनंद फिल्म में मौका दिया; जिससे अभिजीत के करियर को एक नई दिशा मिली।
  • आर. डी. बर्मन ही वह व्यक्ति थे, जिन्होंने फिल्म बॉक्सर (1984) के गीत “है मुबारक आज का दिन” से हरिहरन को लोकप्रिय बनाया। वर्ष 1985 में, मोहम्मद अज़ीज़ ने आर. डी. बर्मन के तहत फिल्म ‘शिव का इंसाफ’ से अपने गायन करियर की शुरुआत की।
  • वर्ष 1980 के दशक के अंत में, पंचम दा ने बप्पी लाहिरी और कई अन्य संगीतकारों को छायांकित किया था। जिससे उनकी सभी रचनाएं बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप होनी शुरू हो गई। जिसके परिणामस्वरूप, अधिकांश फिल्म निर्माताओं ने फिल्मों में एक संगीतकार के रूप में उनका चयन करने से मना कर दिया।
  • वर्ष 1986 में, उन्होंने फिल्म ‘इजाजत’ के लिए चार गीत बनाए, जिन्हें गुलजार ने लिखा था और उनकी पत्नी आशा भोसले ने गाया था। उनके इस कार्य के लिए आर. डी. बर्मन की काफी सराहना की गई थी। गुलजार और आशा भोसले को फिल्म के गीत “मेरा कुछ सामान” के लिए सर्वश्रेष्ठ गीत और सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्व गायिका के रूप में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • 6 जनवरी 1987 को, उनकी लैटिन अमेरिकी रॉक एल्बम, “पैन्टेरा” रिलीज़ की गई थी। जिसको वर्ष 1983 और वर्ष 1984 में अमेरिका में रिकॉर्ड किया गया था।

    आर. डी. बर्मन लैटिन अमेरिकी रॉक एल्बम “पैन्टेरा”

  • वर्ष 1988 में, 49 साल की उम्र में उन्हें दिल का दौरा पड़ा। जिसके एक साल बाद उनकी लंदन में दिल की बाईपास सर्जरी हुई। वर्ष 1989 में, उन्होंने फिल्म परिंदा के लिए संगीत बनाया। उन्होंने फिल्म ‘गैंग’ के लिए ‘छोड़ के ना जाना’ गीत भी बनाया, जिसे उनकी मृत्यु के बाद वर्ष 2000 में रिलीज़ किया गया था।
  • पंचम दा द्वारा आखिरी फिल्म तम्माविन कोम्बाथ (मलयालम) साइन की गई थी, लेकिन अनिश्चित मौत के कारण वह फिल्म नहीं बन पाई।
  • उन्होंने फिल्म ‘1942: ए लव स्टोरी’ के लिए संगीत भी बनाया, ‘जिसे उनकी मृत्यु के बाद रिलीज़ किया गया था। इस फिल्म के लिए उन्हें मरणोपरांत वर्ष 1995 के फिल्मफेयर अवॉर्ड्स में सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक के रूप में सम्मानित किया गया।
  • वर्ष 1994 में, 54 वर्ष की आयु में उन्हें एक और दिल का दौरा पड़ा और 4 जनवरी को उनकी मृत्यु हो गई।
  • वह राजेश खन्ना और किशोर कुमार के बहुत करीबी थे। तीनों ने मिलकर लगभग 32 फिल्मों में एक साथ कार्य किया था।

    आर. डी. बर्मन राजेश खन्ना और किशोर कुमार के साथ

  • उन्होंने अपने संपूर्ण करियर में लगभग 331 फिल्मों को रिलीज़ किया। जिसमें 292 हिंदी, 31 बंगाली, 2 उड़िया, 2 तमिल और 1 मराठी फ़िल्में शामिल है। उन्होंने मराठी और हिन्दी दोनों में 5 टेलीविजन धारावाहिकों के लिए भी कार्य किया है।
  • वह अमेरिकी जैज़ “लुई आर्मस्ट्रांग” और उनकी गायन शैली से काफी प्रभावित थे।

    अमेरिकी जैज़ “लुई आर्मस्ट्रांग”

  • उन्होंने लगभग 18 फिल्मों के लिए पार्श्व गायन किया और उनमें से ज़्यादातर गीतों को संगीतबद्ध भी किया।
  • वह गुलज़ार को सफ़ेद कौवा कह कर पुकारते थे, क्योंकि वह हमेशा सफेद रंग पहनते थे और गुलज़ार बर्मन को ‘लाल कौवा’ कहते थे, क्योंकि उन्हें लाल रंग पसंद था।
  • संगीत हमेशा उनके दिमाग में रहता था, यहां तक कि निंद्रा में भी। यह दावा किया जाता है कि उन्होंने फिल्म हरे राम हरे कृष्णा (1971) के गीत ‘कांची रे कांची रे’ को लिखा था। एक पत्रकार चैतन्य पादुकोण के अनुसार, पंचम दा वास्तव में ऐसा ही थे। पादुकोण ने कहा, “During the interview, Pancham Da would do this very often — stop mid-sentence, and then go and talk to Babloo-da and say, ‘Yahaan aisa music rakh, yahaan silence rakho’ and then return to the interview.”

    आर. डी. बर्मन और पत्रकार चैतन्य पादुकोण

  • वह संगीत के प्रति काफी ईमानदार थे। उनका शोले फिल्म का गीत मेहबूबा मेहबूबा ‘Say You Love Me’ (Demis Roussos’ version of the traditional Cyprus tune) से प्रेरित था।
  • उन्होंने अद्वितीय संगीत बनाने के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग किया। फिल्म शोले के गीत “मेहबूबा मेहबूबा” के लिए उन्होंने एक नई लय बनाने के लिए खाली बियर की बोतलों का प्रयोग किया। जबकि, गीत की धुन को फिल्म “यादों की बारात” के गीत “चुरा लिया” से ले लिया गया। जिसमें उन्होंने टिंकलिंग ध्वनि बनाने के लिए सॉकर और कप का इस्तेमाल किया था।
  • उन्हें गिटार स्ट्रोक के साथ भारतीय अर्द्ध शास्त्रीय संगीत को संगठित करने वाले पहले संगीत निर्देशक के रूप में माना जाता है। फिल्म अमर प्रेम (1972) के गीत “रैना बीती जाए” को उन्होंने गिटार और संतूर के सहयोग से बनाया था।

  • वर्ष 2008 में, उनके जीवन पर आधारित एक वृत्तचित्र, ‘पंचम अनमिक्स्ड’ को रिलीज़ किया गया। जिसे ब्राह्मणंद एस. सियांग द्वारा निर्देशित किया गया था।

    आर. डी. बर्मन वृत्तचित्र, ‘पंचम अनमिक्स्ड’

  • वर्ष 2016 में, ‘आर. डी. बरमनिया शीर्षक वाली एक पुस्तक का विमोचन किया गया। जिसमें उनके सम्पूर्ण जीवन वृतांत को चित्रित किया था। जिसे पत्रकार चैतन्य पादुकोण के द्वारा लिखा गया था।

    आर. डी. बरमनिया शीर्षक वाली एक पुस्तक

  • आर.डी. बर्मन की मृत्यु के बाद कई हिन्दी फिल्में बनाई गई हैं, जिनमें बर्मन के मूल गीत या रीमिक्स्ड संस्करण को शामिल किया गया। उदाहरण के लिए फिल्म दिल विल प्यार व्यार (2002) के गीत ‘दिल हंसिनी (इंस्ट्रुमेंटल)’ और ‘ओ हसीना जुल्फों वाली (इंस्ट्रुमेंटल)’, इत्यादि।

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