Surya Sen Biography in Hindi | सूर्य सेन जीवन परिचय
जीवन परिचय | |
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पूरा नाम | सूर्य कुमार सेन [1]Byjus |
उपनाम | सुर्ज्या सेन [2]News Click और कालू [3]Bangalapedia |
व्यवसाय | भारतीय स्वतंत्रता सेनानी |
जाने जाते हैं | वर्ष 1930 में चटगांव शस्त्रागार छापे का मास्टरमाइंड होने और भारतीय रिपब्लिकन आर्मी (IRA) नामक क्रांतिकारी संगठन के संस्थापक होने के नाते |
शारीरिक संरचना |
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आँखों का रंग | काला |
बालों का रंग | काला |
व्यक्तिगत जीवन | |
जन्मतिथि | 22 मार्च 1894 (गुरुवार) |
जन्मस्थान | नोआपारा गांव, थाना रावजन, चटगांव (जो अब बांग्लादेश में है) |
मृत्यु तिथि | 12 जनवरी 1934 (शुक्रवार) |
मृत्यु स्थल | चटगांव, बंगाल प्रेसीडेंसी (जो अब बांग्लादेश में है) |
आयु (मृत्यु के समय) | 39 वर्ष |
मृत्यु का कारण | फांसी [4]India Today |
राशि | मेष (Aries) |
राष्ट्रीयता | ब्रिटिश भारत |
गृहनगर | नोआपारा गांव, थाना रावजन, चटगांव |
स्कूल/विद्यालय | • दयामय प्राथमिक विद्यालय • नोआपाड़ा हायर इंग्लिश स्कूल |
कॉलेज/ विश्वविद्यालय | बहरामपुर कॉलेज, मुर्शिदाबाद (जो अब कृष्णनाथ कॉलेज के नाम से जाना जाता है) |
शौक्षिक योग्यता | बीए [5]Bangalapedia |
जाति | बैद्य परिवार [6]Abhipedia |
प्रेम संबन्ध एवं अन्य जानकारियां | |
वैवाहिक स्थिति | विवाहित |
विवाह तिथि | वर्ष 1919 |
परिवार | |
पत्नी | पोशपो कोंटोला दत्ता |
माता/पिता | पिता- राजमोनी सेन (शिक्षक) माता- शीला बाला देवी |
भाई/बहन | वह पांच भाई-बहन थे। |
सूर्य सेन से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ
- सूर्य सेन एक बंगाली भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने 18 अप्रैल 1930 को बंगाल और भारतीय उपमहाद्वीप में ब्रिटिश राज के खिलाफ चटगांव शस्त्रागार छापे का प्रयास किया था। भारत स्वतंत्रता के दौरान 1918 में सूर्य सेन ने चटगांव शहर के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया था।
- उनके बचपन में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया था इसलिए सेन और उनके भाई-बहनों का पालन-पोषण उनके चाचा गौरोमोनी ने किया था।
- वर्ष 1916 में सूर्य सेन अपने एक शिक्षक के माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित हुए, जब वह पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद के बहरामपुर कॉलेज (जो अब कृष्णनाथ कॉलेज के नाम से जाना जाता है) से कला में स्नातक की पढ़ाई कर रहे थे। जल्द ही इस प्रेरणा ने उन्हें ‘अनुशीलन समिति’ क्रांतिकारी संगठन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। वर्ष 1918 में उन्होंने चटगांव के नंदन कानन में एक राष्ट्रीय विद्यालय में प्रवेश लिया और गणित पढ़ाना शुरू किया। वह एक महान शिक्षक थे और स्कूल में मास्टर दा के नाम से लोकप्रिय थे। बाद में उन्होंने स्कूल में अपनी शिक्षक की नौकरी छोड़ दी और 1918 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में शामिल हुए।
- महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन में सूर्य सेन सक्रिय रूप से शामिल हुए। ब्रिटिश विरोधी रैलियों का नेतृत्व करते हुए, उन्हें ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था और उन्हें 1926 से 1928 तक दो साल के लिए कैद कर लिया। स्वतंत्रता संग्राम गतिविधियों में भाग लेने के दौरान सूर्य सेन जिस मुहावरे का उच्चारण करना पसंद करते थे, वह यह था-
मानवतावाद क्रांतिकारी का एक विशेष गुण है।”
- वर्ष 1918 में जेल से छूटने के बाद सूर्य सेन ने चटगांव में ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया। सूर्य सेन अपने साथियों निर्मल सेन और अंबिका चक्रवर्ती के साथ 1930 में इंडियन रिपब्लिकन आर्मी (IRA) नामक एक संगठन का गठन किया जहां कई क्रांतिकारियों ने इस विद्रोह आंदोलन में उनका साथ दिया। उसी वर्ष 18 अप्रैल को इस संगठन के सदस्यों ने सूर्य सेन के नेतृत्व में चटगांव में ब्रिटिश पुलिस शस्त्रागार बलों पर छापे की साजिश रची। इस योजना में उन्होंने खुद को पाँच समूहों में विभाजित किया जिनका उद्देश्य शस्त्रागार को जब्त करना था। योजना को सफल करने के लिए पूरे चटगांव शहर की संचार प्रणाली जैसे टेलीफोन, टेलीग्राफ और रेलवे को उनके द्वारा नष्ट कर दिया गया था। विध्वंस ने अंग्रेजों को शहर में होने वाली घटनाओं से अलग कर दिया योजना के क्रियान्वयन के बाद विद्रोहियों ने हथियार लूट लिए लेकिन गोला-बारूद पर कब्जा करने में विफल रहे घटना स्थल से भागने से पहले क्रांतिकारियों ने मौके पर भारतीय ध्वज फहराया जल्द ही ब्रिटिश सरकार द्वारा किए गए छापे में चटगांव शस्त्रागार छापे के कुछ ही दिनों बाद जलालाबाद हिल्स में कई क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी हुई।
- गिरफ्तारी के दौरान पुलिस सैनिकों और क्रांतिकारियों के बीच एक गंभीर संघर्ष हुआ जिसमें 12 क्रांतिकारियों और 80 पुलिस कर्मियों की मौत हो गई। कई क्रांतिकारी घटनास्थल से भागने में सफल रहे जिसमें सूर्य सेन भी शामिल थे। भागने के बाद सूर्य सेन और उनके समूह के सदस्यों ने खुद को छोटे समूहों में विभाजित कर लिया और आस-पास के गांवों में छिप गए।
- चटगांव शस्त्रागार छापे के युवा क्रांतिकारियों को 1930 में सूर्य सेन द्वारा भर्ती किया गया था। जिसमें अनंत सिंह, गणेश घोष और लोकनाथ बल प्रमुख क्रांतिकारी थे जो भारत में ब्रिटिश राज के खिलाफ लड़ने के लिए सूर्य सेन के आंदोलन में शामिल हुए थे।
- चटगांव शस्त्रागार छापे के बाद सूर्य सेन और उनके साथियों को ब्रिटिश सरकार ने भगोड़ा घोषित कर दिया। इस दौरान सूर्य सेन ने अपनी पहचान छुपाते हुए कुछ समय तक कामगार, किसान, पुजारी, गृहिणी के रूप में काम किया था। वह अपने दोस्त के यहां छिपने में भी कामयाब रहे। लेकिन सूर्य सेन के एक रिश्तेदार नेत्रा सेन ने जो उनके दोस्त के घर के पास रहता था ने ब्रिटिश पुलिस को उनके ठिकाने की जानकारी लीक कर दी। जिसके बाद 16 फरवरी 1933 को ब्रिटिश पुलिस ने सूर्य सेन को गिरफ्तार कर लिया। बाद में सूर्य सेन के क्रांतिकारी साथी ने नेत्रा सेन का नुकीले चाकू से सिर काट दिया था।
- फांसी दिए जाने से पहले उन्हें अंग्रेजों ने बेरहमी से प्रताड़ित किया था। उनके दांतों पर हथौड़ा मारा और उनके नाखूनों को ब्रिटिश जेलर ने तोड़ दिया था ताकि वह ‘वंदे मातरम’ का जाप न कर सकें। उनके जोड़ों, अंगों और हड्डियों को बुरी तरह तोडा गया था। जिसके बाद उन्हें 12 जनवरी 1934 को फांसी पर लटका दिया गया था। उनके समूह के सदस्यों को जल्द ही अंग्रेजों ने पकड़ लिया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। सूर्य सेन ने 1933 में फांसी पर लटकने से पहले अपने एक करीबी दोस्त को एक पत्र लिखा था। इस पत्र में लिखा था-
मौत मेरे दरवाजे पर दस्तक दे रही है। मेरा मन अनंत काल की ओर जा रहा है। ऐसे दुखद समय पर, ऐसी कब्र पर, ऐसे महत्वपूर्ण क्षण में, मैं तुम्हारे पीछे क्या छोड़ूंगा? एक ही चीज है, वो है मेरा सपना, एक सुनहरा सपना- आजाद भारत का सपना। चटगांव में पूर्वी विद्रोह के दिन 18 अप्रैल 1930 की तारीख को कभी न भूलें। अपने दिल के अंदर लाल अक्षरों में उन देशभक्तों के नाम लिखो जिन्होंने भारत की आजादी की वेदी पर अपने प्राणों की आहुति दे दी।”
- सूर्य सेन को 1933 में बांग्लादेश के चट्टोग्राम में अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया था। जिस स्थान पर उन्हें फांसी दी गई थी उसे बांग्लादेश सरकार द्वारा आम जनता के लिए एक ऐतिहासिक स्मारक के रूप में नामित किया।
- स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा सूर्य सेन की स्मृति में कोलकाता में ‘मास्टरदा सुरजो सेन मेट्रो स्टेशन’ नामक एक मेट्रो रेलवे स्टेशन का उद्घाटन किया।
- भारतीय रिपब्लिकन आर्मी (IRA) नाम के सूर्य सेन द्वारा शुरू किया गया स्वतंत्रता आंदोलन उनकी फांसी के तुरंत बाद बंद हो गया। यह आंदोलन 1916 के आयरलैंड में ईस्टर राइजिंग से प्रभावित था।
- सूर्य सेन और उनके साथियों ने 18 अप्रैल 1930 को हथियारों की छापेमारी के दौरान आम जनता को दो पर्चे बांटे। ‘देशद्रोह के कानूनों को तोड़ना’ क्रांतिकारियों द्वारा वितरित पहला पैम्फलेट था जिसने चटगांव की स्वतंत्रता का संकेत दिया था। महात्मा गांधी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आंदोलन के बाद और दूसरा पैम्फलेट भारत के युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए छापा गया था।
- भारतीय इतिहास की पुस्तक ‘इंडियाज स्ट्रगल फॉर इंडिपेंडेंस 1857-1947’ प्रसिद्ध भारतीय इतिहासकार बिपन चंद्र द्वारा लिखी गई थी। इस पुस्तक में बिपन चंद्र ने सूर्य सेन से जुड़ी एक घटना का वर्णन किया है। उन्होंने कहा-
भारतीय रिपब्लिकन सेना, चटगांव शाखा के नाम से की गई छापेमारी में कुल मिलाकर पैंसठ लोग शामिल थे। सभी क्रांतिकारी दल पुलिस शस्त्रागार के बाहर एकत्रित हुए जहाँ सूर्य सेना एक बेदाग सफेद खादी धोती और एक लंबा कोट और कड़े लोहे की गांधी टोपी पहने हुए एक सैन्य सलामी ली, ‘वंदे मातरम’ और ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारों के बीच राष्ट्रीय ध्वज फहराया, और एक अनंतिम क्रांतिकारी सरकार की घोषणा की।”
- बिपन चंद्र ने सूर्य सेन के सरल, मृदुभाषी और पारदर्शी रूप से ईमानदार स्वभाव का वर्णन किया। उन्होंने लिखा-
सूर्य सेन एक शानदार और प्रेरक आयोजक, एक सरल, मृदुभाषी और पारदर्शी रूप से ईमानदार व्यक्ति थे। अपार व्यक्तिगत साहस के धनी, वह अपने दृष्टिकोण में अत्यधिक मानवीय थे। उन्हें यह कहने का शौक था: ‘मानववाद एक क्रांतिकारी का एक विशेष गुण है।”
- सूर्य सेन ने चटगांव में अपने साथी क्रांतिकारियों को प्रशिक्षित करने के लिए 1928 में एक शारीरिक फिटनेस सेंटर शुरू किया था। उन्होंने क्रांतिकारियों के शारीरिक और मनोवैज्ञानिक क्षमता में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया। तैरना, नाव चलाना, पेड़ों पर चढ़ना, लाठी चलाना, चाकू फेंकना, मुक्केबाजी ऐसी गतिविधियाँ थीं जो सूर्य सेन ने अपने क्रांतिकारियों को सिखाई थी। [7]Banglapedia
- 18 अप्रैल 1930 को सूर्य सेन और उनके साथियों द्वारा गुड फ्राइडे की छुट्टी पर हथियारों की छापेमारी करने का निर्णय लिया। उस दिन सभी ब्रिटिश सैनिक और अधिकारी घर पर थे। छापेमारी के अंत में क्रांतिकारियों को यूरोपीय क्लब के मुख्यालय पर कब्जा करने में सफलता मिली।
- सूर्य सेन का एक पोस्टर 10,000 टका की नकद राशि के साथ, ब्रिटिश सरकार और चटगांव के पुलिस महानिरीक्षक द्वारा 1932 में चटगांव में हथियारों की छापेमारी के तुरंत बाद प्रसारित किया गया था।
- वर्ष 1949 में सूर्य सेन और उनके समूह की क्रांतिकारी गतिविधियों पर ‘चट्टाग्राम अस्त्रगर लुंथन’ नामक एक फिल्म का चित्रण किया गया था।
- वर्ष 1978 में भारत और बांग्लादेश सरकार ने 1930 चटगांव छापे के सम्मान में उनकी तस्वीर और नाम के साथ 25 पैसे का एक डाक टिकट जारी किया।
- वर्ष 2010 में भारतीय फिल्म निर्देशक आशुतोष गोवारिकर ने सूर्य सेन के जीवन और संघर्ष को “खेलें हम जी जान से” फिल्म में चित्रित किया। इस फिल्म में भारतीय अभिनेता अभिषेक बच्चन ने उनका मुख्य किरदार निभाया था।
- ‘चटगांव’ नाम की एक और तस्वीर 2012 में रिलीज़ हुई थी जो 1930 के चटगांव शस्त्रागार छापे पर आधारित है और फिल्म के मुख्य चरित्र को भारतीय अभिनेता मनोज बाजपेयी ने चित्रित किया था।
- भारत की स्वतंत्रता में उनके योगदान को मान्यता देने के लिए चटगांव विश्वविद्यालय में ‘मास्टरदा सूर्य सेन हॉल’ नामक एक आवासीय हॉल का नाम रखा गया।
सन्दर्भ
↑1 | Byjus |
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↑2 | News Click |
↑3, ↑5 | Bangalapedia |
↑4 | India Today |
↑6 | Abhipedia |
↑7 | Banglapedia |