Major Yogendra Singh Yadav Biography in Hindi| मेजर योगेंद्र सिंह यादव जीवन परिचय
जीवन परिचय | |
---|---|
व्यवसाय | भारतीय सेना अधिकारी |
जाने जाते हैं | वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान बहादुरी के विशिष्ट कार्य के लिए "परमवीर चक्र" (भारत का सर्वोच्च सैन्य सम्मान) प्राप्त करने के नाते |
शारीरिक संरचना | |
लम्बाई (लगभग) | से० मी०- 180 मी०- 1.80 फीट इन्च- 5' 11” |
आँखों का रंग | काला |
बालों का रंग | काला |
सैन्य सेवा | |
सर्विस ब्रांच | भारतीय सेना |
पद | मेजर |
सेवा वर्ष | 1997 से वर्तमान |
रेजिमेंट्स | ग्रेनेडियर्स (18वीं बटालियन) |
सर्विस संख्या | 2690572 |
युद्ध/लड़ाई | 1999 कारगिल युद्ध (तोलोलिंग की लड़ाई और टाइगर हिल की लड़ाई) |
पुरस्कार/उपलब्धियां | "परम वीर चक्र" |
व्यक्तिगत जीवन | |
जन्मतिथि | 10 मई 1980 (शनिवार) |
आयु (2022 के अनुसार) | 42 वर्ष |
जन्मस्थान | औरंगाबाद अहीर गांव, बुलंदशहर जिला, उत्तर प्रदेश |
राशि | वृषभ (Taurus) |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
गृहनगर | औरंगाबाद अहीर गांव, बुलंदशहर जिला, उत्तर प्रदेश |
स्कूल/विद्यालय | उन्होंने अपने गांव औरंगाबाद अहिरो के एक सरकारी स्कूल से पढ़ाई की। |
शैक्षिक योग्यता | कक्षा 10 पास [1]Tomorrow's India YouTube.com |
धर्म | हिन्दू |
प्रेम संबन्ध एवं अन्य जानकारियां | |
वैवाहिक स्थिति | विवाहित |
विवाह तिथि | 5 मई 1999 (बुधवार) |
परिवार | |
पत्नी | रीना यादव |
बच्चे | बेटा- 2 • प्रशांत • विशांति |
माता/पिता | पिता- कर्ण सिंह यादव (सेवानिवृत्त भारतीय सेना अधिकारी) माता- संतरा देवी |
भाई/बहन | भाई-3 • देवेंद्र सिंह यादव • रामबल सिंह यादव • जितेंद्र सिंह यादव (भारतीय सेना में इंजीनियर) |
मेजर योगेंद्र सिंह यादव से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ
- सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव भारतीय सेना में एक सेवारत जूनियर कमीशन अधिकारी (JCO) हैं जिन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान अनुकरणीय साहस प्रदर्शित करते हुए सर्वोच्च सैन्य अलंकरण “परमवीर चक्र” प्राप्त किया। 1999 के कारगिल युद्ध में योगेंद्र सिंह यादव 12 गोलियां खाने के बाद भी बच गए थे और टाइगर हिल पर कब्जा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- वह कुमाऊं रेजिमेंट के एक सेवानिवृत्त भारतीय सेना के जवान के बेटे हैं और उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ 1965 और 1971 के युद्ध में हिस्सा लिया था। योगेंद्र युद्ध के मैदान में बहादुर भारतीय सैनिकों की विस्मयकारी कहानियों को सुनकर बड़े हुए हैं।
- योगेंद्र 15 साल के थे जब उनके भाई जितेंद्र को भारतीय सशस्त्र बलों में शामिल किया गया था। जितेंद्र ने योगेंद्र को सशस्त्र बलों में शामिल होने का सुझाव दिया। योगेंद्र ने जिन्हें अपनी मातृभूमि के प्रति अगाध प्रेम है और राष्ट्र की सेवा करने का दृढ़ संकल्प है एक बार भी नहीं सोचा और चयन की परीक्षा में बैठने के लिए चले गए और जहाँ उन्होंने अपने पहले ही प्रयास में परीक्षा पास की।
- योगेंद्र की मां नहीं चाहती थी कि वह सशस्त्र बलों में शामिल हो। वह चाहती थी कि वह आगे भी अपनी पढ़ाई जारी रखे और एक प्रतिष्ठित नौकरी हासिल करे। एक इंटरव्यू में इस बारे में बात करते हुए योगेंद्र ने कहा-
मेरी मां कभी नहीं चाहती थीं कि मैं आर्मी में जाऊं। वास्तव में, मैं भी आगे पढ़ना चाहता था। लेकिन देश की हालत ऐसी है कि पढ़े-लिखे लोगों को भी नौकरी पाने के लिए बड़ी-बड़ी रिश्वत देनी पड़ती है। एक निम्न-मध्यम वर्गीय परिवार से आने के कारण, सेना ही एकमात्र रास्ता था।”
- जून 1996 में योगेंद्र ने भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) मानेकशॉ बटालियन को ज्वाइन किया। आईएमए में 19 महीने का प्रशिक्षण पूरा करने के बाद उन्होंने 6 दिसंबर 1997 को आईएमए से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। योगेंद्र महज 16 साल 5 महीने के थे तभी वह एक सैनिक के रूप में भारतीय सेना में शामिल हुए थे।
- उनकी शादी को केवल 15 दिन हुए थे जब उन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान देश की सेवा के लिए अपनी तैनाती युद्ध क्षेत्र में सुनिश्चित की। वह सशस्त्र बलों में केवल 2.5 साल के अनुभव के साथ कारगिल युद्ध में गए थे।
- 12 जून 1999 को उनकी बटालियन ने 14 अन्य सैनिकों के साथ टोलोलिंग टॉप पर कब्जा कर लिया और इस ऑपरेशन के दौरान 2 अधिकारी, 2 जूनियर कमीशन अधिकारी और 21 सैनिकों ने अपने जीवन का बलिदान दिया।
- वह घटक पलटन का हिस्सा थे और उन्हें 3/4 जुलाई 1999 की रात को टाइगर हिल पर कब्जा करने का काम सौंपा गया था।
- टाइगर हिल की चोटी पर पहुंचने के लिए पलटन को पहाड़ के 16,500 फीट की खड़ी बर्फीली और चट्टानी पहाड़ी पर चढ़ना था। उन्होंने स्वेच्छा से अपनी टीम के लिए नेतृत्व और रस्सी को ठीक किया। टीम को देखते ही दुश्मन ने चरम स्वचालित ग्रेनेड, रॉकेट और तोप दागने शुरू कर दिए। गोलीबारी में कमांडर और उनके दो साथियों की मौत हो गई। जिसके चलते पलटन वहीं ठप हो गई।
- फिर वह शांति से दुश्मन की स्थिति को जानने के लिए काफी समय तक रेंगते रहे और इस प्रक्रिया में उन्हें कई गोलियां भी लगीं। उन्होंने दुश्मन के ठिकानों की ओर चढ़ना जारी रखा, हथगोले फेंके, अपने हथियारों से फायरिंग जारी रखी और दुश्मन के चार सैनिकों को करीबी मुकाबले में मार गिराया। कई गोली लगने के बावजूद वह तब तक युद्ध करते रहे जब तक वह गोली चलाने में सक्षम थे। उनके वीरतापूर्ण कार्य से प्रेरित होकर, पलटन के अन्य सदस्यों के अंदर भी उत्साह आया और उन्होंने टाइगर हिल टॉप पर कब्जा कर लिया।
- उनके शरीर पर 12 गोलियां लगीं; टाइगर हिल ऑपरेशन के दौरान एक गोली उनके दिल में छेद कर गई और 12 गोलियां उनके हाथ और पैर में लगी थीं। एक दुश्मन सैनिक ने उनके सीने पर निशाना साधा और एक गोली भी चलाई जो उनके जेब में रखे पांच रुपयों के सिक्कों से टकराकर निकल गई।
- कारगिल युद्ध के दौरान अफवाह थी की मेजर योगेंद्र सिंह यादव लड़ाई के दौरान मारे गए। लेकिन जल्द ही यह पता चला कि वह एक अस्पताल में भर्ती हैं और ठीक होने के कगार पर हैं। यह सत्य है कि उन्ही के बटालियन में सोल्जर योगेंद्र यादव नाम के एक सैनिक थे जो युद्ध के दौरान शहीद हो गए थे। मेजर योगेंद्र सिंह यादव के इस बहादुरी और साहस को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें “परम वीर चक्र” से सम्मानित किया।
- परमवीर चक्र पुरस्कार से सम्मानित केवल तीन ही जीवित प्राप्तकर्ता सैनिक हैं जिसमें बाना सिंह, संजय कुमार और योगेंद्र सिंह यादव शामिल हैं।
- ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में सबसे स्पष्ट वीरता, अजेय वीरता और दृढ़ संकल्प के उदाहरण बने।
- 22 जनवरी 2021 को योगेंद्र सिंह यादव कारगिल युद्ध के एक अन्य नायक और “परमवीर चक्र” प्राप्तकर्ता सूबेदार संजय कुमार के साथ भारतीय गेम शो “कौन बनेगा करोड़पति” के 12वें सीजन “करमवीर स्पेशल एपिसोड” में नजर आए थे।
सन्दर्भ
↑1 | Tomorrow's India YouTube.com |
---|