Malik Kafur Biography in Hindi |मलिक काफ़ूर जीवन परिचय

मलिक काफ़ूर से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ कुछ इतिहासकारों के अनुसार मालिक काफ़ूर हिंदू परिवार में पैदा हुआ था और उसने बाद में अपना धर्म इस्लाम में परिवर्तित कर लिया था। कुछ इतिहासकारों का यह भी कहना है कि वह मूल रूप से अफ़्रीकी थे। युवा अवस्था में मलिक काफ़ूर खंभात के एक धनी ख्वाजा का ग़ुलाम था। कुछ इतिहासकारों के अनुसार, काफ़ूर बहुत ही सुन्दर कद-काठी का मालिक था। कुछ इतिहासकारों ने मलिक काफ़ूर की अनुकरणीय सुंदरता के कारण उनका उल्लेख किया है कि उनके मूल मास्टर ने उन्हें 1,000 दिनारों में खरीदा था। जिसकी वजह से उनका नाम 'हज़र-दिनारी' रख दिया गया था। 14 वीं शताब्दी के महान यात्री इब्न बतूता ने भी कफ़ूर को 'अल-अल्फी' ('हज़ार-दीनारी', अरबी के अनुरूप) के रूप में संदर्भित करके इस तथ्य को सिद्ध किया है।   सन 1299 में, गुजरात आक्रमण के दौरान अलाउद्दीन खिलजी के जनरल नुसरत खान ने मलिक कफ़ूर को बंदरगाह शहर खंभात से बंदी बना लिया था और जबरन उसका धर्म इस्लाम में परिवर्तित करवा दिया था। नुसरत खान ने मलिक काफ़ूर को दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को पेश किया था। 14 वीं शताब्दी के इतिहासकार इसामी के अनुसार, मलिक काफ़ूर का समर्थन करते हुए अलाउद्दीन खिलजी ने उन्हें अपने सैन्य कमांडर और सलाहकार के रूप में नियुक्त किया था। सन 1306 में, मलिक काफ़ूर को 'बारबेग' (जो कि एकसैन्य कमांडर के पद के सम्मन है) पद से नियुक्त किया गया था। सन 1309 -10 तक, उन्होंने रापर (वर्तमान में हरियाणा) में 'इक्ता' (प्रशासनिक अनुदान) के रूप में…

जीवन परिचय
वास्तविक नाम मलिक काफ़ूर
अन्य नाम ताज उल-दिन इज़्ज़ उल-दौला
मलिक नायब
हजार दिनारी
अल-अल्फि
व्यवसाय दिल्ली सल्तनत शासक अलाउद्दीन खिलजी का दास-जनरल
लड़ाई/युद्धों• सन 1306 में मंगोल आक्रमण
• सन 1305 में अमरोहा की लड़ाई (16 वीं शताब्दी के इतिहासकार अब्द अल-कादिर बदाउनी के अनुसार)
• सन 1308 में देवगिरि की घेराबंदी
• सन 1310 में वारंगल की घेराबंदी
• सन 1311 में द्वारसमुद्र की घेराबंदी
• सन 1311 में पांड्या राज्य पर हमला
व्यक्तिगत जीवन
जन्मतिथि 13 वीं सदी
जन्मस्थान ज्ञात नहीं
मृत्यु तिथिफरवरी 1316
मृत्यु स्थलदिल्ली (इतिहासकारों के अनुसार)
मृत्यु का कारणहत्या (इतिहासकारों के अनुसार)
आयु (मृत्यु के समय)ज्ञात नहीं
गृहनगर/राज्यदिल्ली सल्तनत
परिवार ज्ञात नहीं
धर्म हिंदू (जन्म), इस्लाम (रूपान्तरित)
शौक/अभिरुचिघुड़सवारी करना और घेराबंदी करना
प्रेम संबन्ध एवं अन्य जानकारियां
वैवाहिक स्थिति इस बात की पुष्टि नहीं है
सेक्सुअल ओरिएंटेशननपुंसक
बॉयफ्रेंड/गर्लफ्रेंड/मामले अलाउद्दीन खिलजी (कुछ इतिहासकारों के अनुसार, हालांकि इसका कोई ठोस सबूत नहीं है)
पत्नी / पति16 वीं शताब्दी के इतिहासकार फिरिस्त के अनुसार, मलिक काफ़ूर ने झत्यपाली (अलाउद्दीन खिलजी की विधवा) से शादी की

मलिक काफ़ूर से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ

  • कुछ इतिहासकारों के अनुसार मालिक काफ़ूर हिंदू परिवार में पैदा हुआ था और उसने बाद में अपना धर्म इस्लाम में परिवर्तित कर लिया था।
  • कुछ इतिहासकारों का यह भी कहना है कि वह मूल रूप से अफ़्रीकी थे।
  • युवा अवस्था में मलिक काफ़ूर खंभात के एक धनी ख्वाजा का ग़ुलाम था।
  • कुछ इतिहासकारों के अनुसार, काफ़ूर बहुत ही सुन्दर कद-काठी का मालिक था।
  • कुछ इतिहासकारों ने मलिक काफ़ूर की अनुकरणीय सुंदरता के कारण उनका उल्लेख किया है कि उनके मूल मास्टर ने उन्हें 1,000 दिनारों में खरीदा था। जिसकी वजह से उनका नाम ‘हज़र-दिनारी’ रख दिया गया था। 14 वीं शताब्दी के महान यात्री इब्न बतूता ने भी कफ़ूर को ‘अल-अल्फी’ (‘हज़ार-दीनारी’, अरबी के अनुरूप) के रूप में संदर्भित करके इस तथ्य को सिद्ध किया है।  
  • सन 1299 में, गुजरात आक्रमण के दौरान अलाउद्दीन खिलजी के जनरल नुसरत खान ने मलिक कफ़ूर को बंदरगाह शहर खंभात से बंदी बना लिया था और जबरन उसका धर्म इस्लाम में परिवर्तित करवा दिया था।
  • नुसरत खान ने मलिक काफ़ूर को दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को पेश किया था। 14 वीं शताब्दी के इतिहासकार इसामी के अनुसार, मलिक काफ़ूर का समर्थन करते हुए अलाउद्दीन खिलजी ने उन्हें अपने सैन्य कमांडर और सलाहकार के रूप में नियुक्त किया था।
  • सन 1306 में, मलिक काफ़ूर को ‘बारबेग’ (जो कि एकसैन्य कमांडर के पद के सम्मन है) पद से नियुक्त किया गया था।
  • सन 1309 -10 तक, उन्होंने रापर (वर्तमान में हरियाणा) में ‘इक्ता’ (प्रशासनिक अनुदान) के रूप में अपनी सेवा प्रदान की।
  • सन 1306 में, मलिक काफ़ूर को पहली बार सैन्य कमांडर के रूप में नियुक्त किया गया था। जब अलाउद्दीन ने मलिक काफ़ूर को पंजाब में मंगोल आक्रमण करने के लिया भेजा और मलिक काफ़ूर ने चग़ताई ख़ान को हराया, और उस समय तक उन्हें नायब-ए बारबाक (‘समारोहों के सहायक मास्टर’) के रूप में जाना जाता था। कुछ इतिहासकारों के अनुसार, उनका नाम मलिक नायब पड़ा था। हालांकि, कुछ अन्य इतिहासकारों के अनुसार, बाद में नायब-ए सुल्तान की भूमिका के कारण उनका यह नाम पड़ा था।  
  • सेनापति के रूप में मालीक काफ़ूर का अगला कार्य डेक्कन क्षेत्र में मुस्लिम साम्राज्य की नींव रखना था।
  • मलिक काफ़ूर ने देवगिरी के यादव साम्राज्य पर आक्रमण किया और वहा पर भारी लूटपाट की। मलिक काफ़ूर अपने साथ राजा रामचंद्र और लूट के सामान के साथ दिल्ली में वापस आ गया।
  • सन 1309 में, अलाउद्दीन ने उन्हें काकतिया साम्राज्य पर आक्रमण करने के लिए भेजा, जो कि कफ़ूर द्वारा सफलतापूर्वक पूरा किया गया था। जून 1310 में मलिक काफ़ूर वापस दिल्ली में लौट आया था, और भारी मात्रा में धन की लूट अपने साथ लेकर आया था। ऐसा कहा जाता है कि कोहिनूर हीरा भी इसी लूट के बीच था, और इस बात से प्रभावित होकर अलाउद्दीन ने उन्हें पुरस्कृत किया।
  • काकतिया की राजधानी वारंगल में अपने सैन्य अभियान के दौरान मलिक काफ़ूर ने दक्षिणी भारत के इलाकों में धन के बारे में जानकारी ली और अलाउद्दीन खिलजी से अगुआई करने के लिए अनुमति मांगी जिसे अलाउद्दीन ने मंजूर कर लिया था।
  • सन 1311 में, काफ़ूर ने द्वारसमुद्र, होयसल और पंड्या साम्राज्य पर विजय प्राप्त कि और बड़ी संख्या में खजाने, घोड़े और हाथियों को प्राप्त किया और 18 अक्टूबर 1311 को काफ़ूर दिल्ली में वापस आ गया।
  • कुछ इतिहासकारों का मानना था कि अलाउद्दीन की अदालत में, मलिक काफ़ूर की दुश्मनी माहरु (अलाउद्दीन की दूसरी पत्नी), अलप खान (माहरु का भाई) और ख़िज़्र खान (अलाउद्दीन का सबसे बड़ा बेटा माहरु से) से थी।
  • मलिक काफ़ूर ने देवगिरी से एक और अभियान चलाया और इसे दिल्ली सल्तनत के साथ जोड़ा दिया था।
  • दो साल तक देवगिरी में गवर्नर के रूप कार्य करने के बाद, उन्हें तत्काल 1315 में दिल्ली भेज दिया गया था जब अलाउद्दीन खिलजी का स्वास्थ्य बिगड़ना शुरू हुआ।
  • अंततः, काफ़ूर नायब (सूबेदार) की पदवी पर थे, हालांकि तारीख की पुष्टि नहीं है।
  • अलाउद्दीन खिलजी के अंतिम दिनों के दौरान, काफ़ूर के पास सभी प्रकार की कार्यकारी शक्तियां प्रदान थी। इस समय तक, अलाउद्दीन ने अपने दासों और उनके परिवारों के हाथों में सभी शक्तियों को ध्यान में रखना शुरू कर दिया क्योंकि वह अपने अन्य अधिकारियों पर संदेह करने लग गए थे। 
  • अलाउद्दीन का विश्वास मलिक काफ़ूर के ऊपर इसलिए था क्योंकि अन्य अधिकारियों की तुलना में काफ़ूर का कोई परिवार या अनुयायी नहीं था।
  • 14 वीं शताब्दी के इतिहासकार इसामी के मुताबिक मलिक काफ़ूर ने अलाउद्दीन के अंतिम शासनकाल के दौरान किसी को भी सुल्तान से मिलने की इजाजत नहीं दी, और वह खुद सल्तनत का वास्तविक शासक बन गया था।
  • इतिहासकार ज़ियाउद्दीन बरनी के विवरण के आधार पर, रूथ वनिता और सलीम किदवाई (समलैंगिक अध्ययन विद्वान) का मानना है कि अलाउद्दीन खिलजी और मलिक काफ़ूर के बीच समलैंगिक संबंध थे। हालांकि, अधिकांश इतिहासकारों ने इस तथ्य से इनकार किया है।   
  • ज़ियाउद्दीन बरनी ने यह दावा किया कि मलिक काफ़ूर ने ही अलाउद्दीन खिलजी की हत्या करवाई थी।
  • अलाउद्दीन की मौत के बाद मलिक काफ़ूर ने अलाउद्दीन के पुत्र सिहुबुद्दीन को उत्तराधिकारी के रूप में पेश किया।
  • कुछ इतिहासकारों के अनुसार अलाउद्दीन खिलजी को दफनाने से पहले मलिक काफ़ूर ने सुल्तान की उंगली से शाही अंगूठी निकली थी।
  • कुछ इतिहासकारों के मुताबिक मलिक काफ़ूर ने अलाउद्दीन खिलजी के पूर्व अंगरक्षकों को मारा था। जिन्होंने मलिक काफ़ूर को अलाउद्दीन के परिवार के खिलाफ कार्य करने से इनकार कर दिया था।
  • वर्ष 2014 में, भारतीय लेखक, अरुण रमन ने “The Treasure of Kafur” नामक एक पुस्तक प्रकाशित की। यह पुस्तक मलिक काफ़ूर के जीवन पर आधारित है।  

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