Muthuswami Dikshitar Biography in Hindi | मुत्तुस्वामी दीक्षित जीवन परिचय
जीवन परिचय | |
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वास्तविक नाम | मुत्तुस्वामी दीक्षित |
उपनाम | गुरुगुह |
व्यवसाय | शास्त्रीय संगीतकार, महान् कवि व रचनाकार |
व्यक्तिगत जीवन | |
जन्मतिथि | 24 मार्च 1775 |
मृत्यु तिथि | 21 अक्टूबर 1835 |
मृत्यु स्थल | एट्टैय्यापुरम |
मृत्यु कारण | स्वभाविक मृत्यु |
समाधि स्थल | एट्टैय्यापुरम (यह महाकवि सुब्रह्मण्य भारती का जन्म स्थल भी है) कोविलपट्टी और टुटीकोरिन के पास |
आयु (मृत्यु के समय) | 60 वर्ष |
जन्मस्थान | तिरुवारूर, तंजावुर, तमिलनाडु, भारत |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
राशि | मेष |
गृहनगर | तिरुवारूर, तंजावुर, तमिलनाडु, भारत |
परिवार | पिता : रामस्वामी दीक्षित (रागा हम्सधवानी के शोधकर्ता) माता : सुब्बम्मा भाई : बालुस्वामी और चिन्नस्वामी बहन : बालाम्बाल |
धर्म | हिन्दू |
जाति | तमिल ब्राह्मण |
संगीत शैली | कर्नाटक संगीत |
प्रमुख रचनाएं | • श्री नाथादी गुरूगुहो • कमलम्बा नववर्ण कृति • नवग्रह कृति • नीलोत्लांबल कृति • नोत्तुस्वरा साहित्य • अभयाम्बा नवावरणम् कृति • शिव नवावरणम् कृति • पंचलिंग स्थल कृति • मणिपर्वल कृति • उपनिषद ब्राह्मणमंडल |
प्रेम संबन्ध एवं अन्य जानकारियां | |
वैवाहिक स्थिति | अविवाहित |
पत्नी | कोई नहीं |
बच्चे | कोई नहीं |
मुत्तुस्वामी दीक्षित से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ
- मुत्तुस्वामी दीक्षित का जन्म तमिलनाडु के तिरूवरूर (तमिलनाडु राज्य में) में तमिल ब्राह्मण दंपति, रामस्वामी दीक्षित (रागा हम्सधवानी के शोधकर्ता) और सुब्बम्मा के घर हुआ था।
- मुत्तुस्वामी का नाम वैद्येश्वरन मन्दिर में स्थित सेल्वमुत्तु कुमारस्वामी के नाम पर रखा गया था, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि मुत्तुस्वामी का जन्म भगवान् वैद्येश्वरन (या वैद्येश) की कृपा से हुआ था।
- उनके पिता रामस्वामी दीक्षित ने “राग हंसध्वनि” नामक राग का उपार्जन किया था।
- ब्राह्मण शिक्षा परम्परा के अनुसार मुत्तुस्वामि ने संस्कृत भाषा, वेद और अन्य मुख्य धार्मिक ग्रन्थों का गहन अध्ययन किया, जिसके चलते उन्हें प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता से प्राप्त हुई।
- उनके पिता ने किशोरावस्था में ही मुत्तुस्वामी को चिदम्बरनाथ योगी नामक एक भिक्षु के साथ तीर्थयात्रा पर संगीत और दार्शनिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए भेज दिया था।
- तीर्थयात्रा के दौरान, उन्होंने उत्तर भारत के कई स्थानों का दौरा किया और धर्म और संगीत पर एक व्यापक दृष्टिकोण प्राप्त किया।
- कुछ समय बाद मुत्तुस्वामी महान् सन्त चिदम्बरनाथ योगी के साथ बनारस (अब वाराणसी) आ गए और वहां 5 साल तक संगीत का अध्ययन किया। गुरु से मन्त्रोपदेश प्राप्त करने के बाद उन्होंने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्राप्त की। गुरु के देहान्त के बाद मुत्तुस्वामी दक्षिण भारत को लौट आए।
- गुरु के साथ शिक्षा प्राप्त करते हुए मुत्तुस्वामी को एक विशेष प्रकार की वीणा भेंट स्वरूप प्राप्त हुई।
- पौराणिक कथा के अनुसार जब मुत्तुस्वामी के गुरु ने उन्हें तिरुट्टनी (चेन्नई के पास एक शहर) की यात्रा करने के लिए कहा, तब वह ध्यान मुद्रा में बैठे थे, तभी एक बूढ़ा आदमी उनके पास आया और उन्हें मुंह खोलने के लिए कहने लगा। तभी बूढ़े आदमी ने उनके मुंह में शक्कर की मिठाई रख दी और गायब हो गया। जैसे ही मुत्तुस्वामी ने अपना मुंह खोला उन्हें मुरुगन देवता की छवि नजर आई। उसके बाद मुत्तुस्वामी ने अपनी पहली रचना “श्री नाथादी गुरूगुहो” के राग को मेयामलवागोला में गाया।
- कुछ वर्षों के बाद मुत्तुस्वामी तीर्थाटन के लिए निकल गए और कांची, तिरुवन्नमलई, चिदंबरम, तिरुपति और कालहस्ती, श्रीरंगम के मंदिरों की यात्रा की।
- तिरुवरूर लौटने के बाद, उन्होंने तिरुवरूर मंदिर परिसर में हर देवता के ऊपर कृति की रचनाएं की, जिसमें त्यागराज (भगवान शिव का एक अंश), पीठासीन देवता, नीलोत्लांबल, उनकी पत्नी और देवी कमलांबल (उसी मंदिर परिसर में स्थित तांत्रिक महत्व की एक स्वतंत्र देवी), इत्यादि शामिल थीं।
- तंजौर के चार नृतक गुरु भाइयों चिन्नया, पोन्नेय, वडिवलु और शिवानंदम ने मुत्तुस्वामी दीक्षित से संपर्क किया और उनसे संगीत सीखने की इच्छा व्यक्त की और तंजौर में उनके साथ आने के लिए आग्रह किया। जहाँ मुत्तुस्वामी दीक्षित ने उन्हें 72 मेला परंपरा की शिक्षा प्रदान की। जिसके चलते उन्होंने अपने गुरु की महिमा को ध्यान में रखते हुए “नवरत्न माला” नामक नौ गीतों के एक संग्रह को संग्रहित किया। इस प्रकार उनके इन चारों शिष्यों को तंजावुर चौकड़ी के नाम से भी जाना जाता है।
- युवावस्था के दौरान, उन्होंने फोर्ट सेंट जॉर्ज में पश्चिमी बैंड के संगीत का अभ्यास किया।
- उनके द्वारा रचित कृतियों में नवग्रह कृति, कमलाम्बा नवावरणम् कृति, अभयाम्बा नवावरणम् कृति, शिव नवावरणम् कृति, पंचलिंग स्थल कृति, मणिपर्वल कृति आदि सम्मलित हैं।
- उन्होंने ने 3000 से भी अधिक गीतों की रचना की, जोकि देव-प्रशंसा पर या किसी नेक भावना पर आधारित थीं।
- उनके गीतों में मंदिर के इतिहास और उसकी पृष्ठभूमि के बारे में बहुत जानकारी दी गई है, यही नहीं उनके गीतों में मंदिर के देवताओं और पुराने तीर्थों की परंपराओं का उल्लेख किया गया है।
- मुत्तुस्वामी दीक्षित ने कई कृतियों का निर्माण समूहों में किया है, जिनमे “वतापी गणपति” कृति सबसे प्रसिद्ध और सर्वोत्तम कृति मानी जाती है।
- उन्होंने नेल्लैपर मंदिर की देवी कांतिमती अम्मान पर एक गीत (श्री कांतिमातीम शंकर युवतीम श्री गुरुगुजाननीम वंदेहम। समष्टि चरणम ह्रिमकारा ब्रिजकारा वदनम हिरणान्यमंमया शुभ सदनम) का निर्माण किया।
- उन्होंने राम अष्टपति के साथ कांचीपुरम में उपनिषद ब्राह्मणमंडल का भी निर्माण किया था, परन्तु दुर्भाग्यवश यह कृति खो चुकी है।
- मुत्तुस्वामी दीक्षित, त्यागराज और श्यामशास्त्री जी कर्नाटक में त्रिमूर्ति के नाम से प्रसिद्ध हैं।