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Bal Thackerey Story in Hindi | बाल ठाकरे का इतिहास एवं कहानी

बाल ठाकरे शिवसेना नामक दक्षिण पंथी कट्टर मराठा पार्टी के संस्थापक सद्स्य थे। जिनकी गिनती महाराष्ट्र के प्रमुख हस्तियों में होती थी। उनके नेतृत्व के तहत शिवसेना महाराष्ट्र में एक शक्तिशाली राजनीतिक ताकत के रूप में उभर कर आई। एक पत्रकार, एक कट्टर मराठा जातीय राजनीतिज्ञ के रूप में बाल ठाकरे की जिंदगी अलग-अलग घटनाओं से संलिप्त थी। बाल ठाकरे एवं उनके जीवन से जुडी कुछ प्रमुख घटनाओं का विवरण निम्न है :-

बाल ठाकरे की कहानी

पिता के पदचिन्हों पर चलता पुत्र

बाल ठाकरे के पिता

उनके पिता केशव ठाकरे एक समाज सुधारक और पत्रकार थे, जिन्हें प्रबोधनकार के नाम से भी जाना जाता था, क्योंकि उनके पिता ने प्रबोधन नामक एक पत्रिका निकाली थी। केशव ठाकरे ने एक एकीकृत मराठी मुंबई की संकल्पना की थी। उनके इसी दृष्टिकोण को बाल ठाकरे अगले स्तर तक लेकर गए।

दुविधापूर्ण बचपन

बाल ठाकरे की कहानी

बचपन में ही उन्होंने अपनी मां खो को दिया और परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण अपनी पढ़ाई को बीच में ही छोड़ दिया।

बाल ठाकरे एक कार्टूनिस्ट के तौर पर

बाल ठाकरे कार्टून बनाते हुए

ठाकरे ने मुंबई के एक समाचार पत्र “फ्री प्रेस जर्नल” में एक कार्टूनिस्ट के रूप में कार्य करना शुरू किया। हालांकि, रचनात्मक अंतर के कारण, उन्होंने वर्ष 1950 के अंत में नौकरी छोड़ दी। टाइम्स ऑफ इंडिया उनके द्वारा रचित कार्टून को अपने रविवार संस्करण में प्रकाशित करता था।

एक कार्टूनिस्ट से पत्रकार तक का सफर

बाल ठाकरे की मैगजीन मार्मिक

वर्ष 1960 में, अपने भाई श्रीकांत के साथ एक कार्टून साप्ताहिक – मार्मिक का शुभारंभ किया और जिसे मुंबई में गैर-मराठी लोगों के खिलाफ अभियान के रूप में इस्तेमाल किया। मार्मिक जो कि एक ब्रिटिश मैगज़ीन “Punch” के तर्ज पर प्रकाशित की गई थी, जो sons-of-the-soil agenda पर आधारित थी। उन्होंने जॉर्ज फर्नांडिस (राजनीतिज्ञ) और अन्य 4 या 5 लोगों के साथ एक दैनिक – न्यूज़ डे शुरु किया। हालांकि, जो कुछ महीनों तक ही चल सका।

लेखक बाल ठाकरे

बाल ठाकरे अपने लेख के दौरान

उन्होंने मराठी प्रकाशन के तहत कई लेख लिखे, जिसे वह “मावला” नाम से प्रकाशित करते थे।

शिवसेना का उदय

बाल ठाकरे शिवसेना

19 जून 1966 को, मार्मिक की सफलता से प्रेरित होकर उन्होंने शिवसेना का गठन किया; जिसका नाम 17 वीं सदी के मराठा राजा शिवाजी के नाम पर रखा गया। जिसका प्रारंभिक उद्देश्य दक्षिण भारतीयों और गुजराती लोगों के खिलाफ प्रतिस्पर्धा में महाराष्ट्र के स्थानीय मराठी बोलने वाले लोगों की नौकरी की सुरक्षा सुनिश्चित करना था।

पहली चुनावी जीत

बाल ठाकरे मुंबई निकाय चुनाव के दौरान

वर्ष 1967 के ठाणे नगर परिषद चुनाव में शिवसेना ने अपनी पहली जीत दर्ज की। जिसके चलते पार्टी का अगले 10 वर्षों में काफी प्रसार हुआ। हालांकि, वर्ष 1970 के स्थानीय चुनावों के दौरान, शिव सेना सफल नहीं हो सकी, क्योंकि यह राज्य के बाकी हिस्सों की तुलना में केवल मुंबई में सक्रिय थी।

शिवसेना बनाम उपद्रव

शिवसेना का हिंसात्मक रूप

समय बीतने के साथ, बाल ठाकरे और उनकी पार्टी ने हिंसात्मक रणनीति अपना ली, जिसमें प्रवासियों, मीडिया और प्रतिद्वंद्वी पार्टियों के खिलाफ हमले, सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नष्ट करना शामिल था।

कांग्रेस का समर्थन

प्रारंभ में, ठाकरे ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का समर्थन किया। हालांकि, 1980 के दशक तक, वह सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के लिए खतरा बन गए। वर्ष 1975 में, उन्होंने इंदिरा गांधी द्वारा घोषित आपातकाल का समर्थन किया, जिससे राजनीति में हड़कंप मच गया था।

शिवसेना का “सामना”

बाल ठाकरे द्वारा प्रकाशित शिवसेना मुखपत्र "सामना"

वर्ष 1989 में, बाल ठाकरे ने शिवसेना के मुखपत्र “सामना” को प्रकाशित किया।

मंडल आयोग का विरोध

बाल ठाकरे और छगन भुजबल

बाल ठाकरे ने मंडल आयोग की सिफारिशों का विरोध किया, जिसके चलते उनके करीबी समर्थक छगन भुजबल ने वर्ष 1991 में शिवसेना को छोड़ दिया।

“शिवसेना-भाजपा” गठबंधन

शिवसेना भाजपा गठबंधन

वर्ष 1992 में बॉम्बे दंगों के बाद, ठाकरे ने मुसलमानों के खिलाफ प्रचार शुरू किया और एक अतिवादी हिंदूत्ववादी विचारधारा अपनाई, जिससे उनकी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के काफी निकट आ गई। शिवसेना-भाजपा गठबंधन ने वर्ष 1995 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव जीता और वर्ष 1995 से 1999 तक सत्ता में रही। जिसके चलते सरकार में, ठाकरे ने स्वयं को रिमोट कंट्रोल मुख्यमंत्री घोषित किया।

शिवसेना बनाम दंगे

शिवसेना मुंबई 1992-1993 दंगों के दौरान

श्रीकृष्ण आयोग की रिपोर्ट ने वर्ष 1992-1993 के दंगों को उकसाने के लिए ठाकरे और शिवसेना को दोषी ठहराया था।

जब माइकल जैक्सन बाल ठाकरे से मिलें

बाल ठाकरे और माइकल जैक्सन

वर्ष 1996 में, माइकल जैक्सन ने बाल ठाकरे से मुलाकात की और उनकी टॉयलेट सीट पर हस्ताक्षर किया। जिसे वह इस्तेमाल करते थे।

बाल ठाकरे बनाम चुनाव आयोग

28 जुलाई 1999 को, चुनाव आयोग ने 11 दिसंबर 1999 से 10 दिसंबर 2005 तक धर्म के नाम पर वोट मांगने के लिए बाल ठाकरे को दोषी पाते हुए, उन पर 6 वर्षों तक किसी भी चुनाव में मतदान करने और चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा हुआ था।

बाल ठाकरे बनाम भाई-भतीजावाद

वर्ष 2004 में, उन्होंने शिव सेना की बागडोर अपने पुत्र उद्धव ठाकरे को सौंप दी और जिसके चलते उन्हें पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया। उद्धव ठाकरे की अध्यक्ष पदोन्नति से राज ठाकरे को बहुत बड़ा झटका लगा, क्योंकि वह सोचते थे कि राजनीतिक वारिस के रूप में वही पार्टी के अध्यक्ष होंगे। जिसके चलते वर्ष 2010 में दशहरा रैली में, बाल ठाकरे ने अपने पोते आदित्य को नए शिवसेना युवा संगठन (युवा सेना) के प्रमुख के रूप में नियुक्त किया।

शिवसेना का विभाजन

बाल ठाकरे, उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के साथ

वर्ष 2005 में शिवसेना दो बार विभाजित हुई थी, पहली बार वर्ष 2005 में जब नारायण राणे अपने समर्थकों के साथ पार्टी छोड़ कर चले गए थे और वर्ष 2006 में जब राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) का गठन किया था।

बाल ठाकरे के देहांत पर शोकाकुल मुंबई

जैसे ही 17 नवंबर 2012 को उनकी मौत की खबर सामने आई, उसी समय सम्पूर्ण मुंबई शोक में डूब गई, जिसके चलते मुंबई के बाजार और दुकानें बंद कर दी गईं थी और मुंबई स्थित शिवाजी पार्क में सम्पूर्ण राज्यकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया था। यह वर्ष 1920 में बाल गंगाधर तिलक के बाद शहर में दूसरा सार्वजनिक अंतिम संस्कार था।

राजकीय सम्मान (21 तोपों की सलामी)

हालांकि किसी भी आधिकारिक पद पर न होने के बावजूद उन्हें 21 तोपों की सलामी दी गई।

बाल ठाकरे पर बनी फ़िल्में

राम गोपाल वर्मा द्वारा एक बॉलीवुड फिल्म श्रृंखला “सरकार” को निर्देशित किया गया, जो उनके जीवन पर आधारित थी। जिसमें अमिताभ बच्चन ने बाल ठाकरे की भूमिका निभाई थी और वर्ष 2017 में, एक और बॉलीवुड फिल्म की घोषणा की गई, जिसका शीर्षक “ठाकरे” है। जिसमें नवाजुद्दीन सिद्दीकी द्वारा बाल ठाकरे की भूमिका निभाई गई है।

बाल ठाकरे विवादों में

बाल ठाकरे और हिटलर

उनके द्वारा एपीजे अब्दुल कलाम (भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति) का अपमान भी किया गया, क्योंकि उन्होंने अफजल गुरू की मौत की सजा का कोई भी औपचारिक जवाब नहीं दिया था। वह पाकिस्तान के कट्टर आलोचक थे। जिसके चलते वर्ष 1998 में, उन्होंने गुलाम अली के एक गजल समारोह को बाधित कर दिया था। वर्ष 2007 में, दैनिक अख़बार के एक साक्षात्कार में हिटलर की प्रशंसा करने के लिए उन्हें कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। वर्ष 2007 में, शिवसेना रैली के दौरान उन्होंने मुस्लिमों की “हरा जहर” के रूप में परिभाषा दी, जिसके चलते उन्हें गिरफ्तार किया गया।

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