Ram Prasad Bismil Biography in Hindi | राम प्रसाद बिस्मिल जीवन परिचय
राम प्रसाद बिस्मिल से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ
- क्या राम प्रसाद बिस्मिल धूम्रपान करते थे ?: हाँ
- क्या राम प्रसाद बिस्मिल शराब पीते थे ?: हाँ
- बिस्मिल के दादा जी नारायण लाल का पैतृक गाँव बरबाई था। यह गाँव तत्कालीन ग्वालियर राज्य में चम्बल नदी के बीहड़ों के बीच स्थित तोमरघार क्षेत्र के मुरैना जिले में था और वर्तमान में यह मध्य प्रदेश में है।
- उनके पिता कचहरी में स्टाम्प पेपर बेचने का कार्य करते थे।
- उनके माता-पिता राम के आराधक थे, जिसके चलते उनका नाम रामप्रसाद रखा गया।
- मुरलीधर के घर कुल 9 सन्तानें हुई थी, जिनमें से पाँच लड़कियां एवं चार लड़के थे। जन्म के कुछ समय बाद दो लड़कियां एवं दो लड़कों का निधन हो गया था।
- बाल्यकाल से ही रामप्रसाद की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा। उनका मन खेलने में अधिक और पढ़ने में कम लगता था। इसके कारण उनके पिताजी उन्हें खूब पीटा करते थे, ताकि वह पढ़ाई-लिखाई कर के एक क्रांतिकारी बन सकें। परन्तु उनकी माँ हमेशा प्यार से यही समझाती कि “बेटा राम! ये बहुत बुरी बात है पढ़ाई किया करो।” माँ के प्यार भरी सीख का भी उनपर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
- 18 वर्ष की आयु से, रामप्रसाद को अपने पिता की सन्दूक से रुपए चुराने की लत पड़ गई थी। चोरी के रुपयों से उन्होंने उपन्यास खरीदकर पढ़ना शुरू कर दिया एवं सिगरेट पीना, भाँग पीना, इत्यादि नशा करना शुरू कर दिया।
- उसके बाद उन्होंने उर्दू भाषा में मिडिल की परीक्षा उत्तीर्ण न होने पर अंग्रेजी पढ़नी शुरू की। साथ ही पड़ोस के एक पुजारी ने रामप्रसाद को पूजा-पाठ की विधि बतानी शुरू की। पुजारी के उपदेशों के कारण रामप्रसाद पूजा-पाठ के साथ ब्रह्मचर्य का पालन करने लगे।
- इससे उनके शरीर में अप्रत्याशित परिवर्तन हो चुका था, वह नियमित पूजा-पाठ में समय व्यतीत करने लगे थे। एक दिन उनकी मुलाकात मुंशी इन्द्रजीत से हुई। जिन्होंने रामप्रसाद को आर्य समाज के सम्बन्ध में बताया और स्वामी दयानन्द सरस्वती की लिखी पुस्तक “सत्यार्थ प्रकाश” को पढ़ने की प्रेरणा दी। उस पुस्तक के गम्भीर अध्ययन से रामप्रसाद के जीवन पर आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ा।
- वर्ष 1916 के कांग्रेस अधिवेशन में स्वागताध्यक्ष पं॰ जगत नारायण ‘मुल्ला’ के आदेश की धज्जियाँ बिखेरते हुए, रामप्रसाद ने जब लोकमान्य बालगंगाधर तिलक की पूरे लखनऊ शहर में शोभायात्रा निकाली, तो सभी नवयुवकों का ध्यान उनकी दृढता की ओर आकर्षित हुआ।
- बिस्मिल की एक विशेषता यह भी थी कि वे किसी भी स्थान पर अधिक दिनों तक ठहरते नहीं थे।
- पलायन के दिनों में, उन्होंने वर्ष 1918 में प्रकाशित अंग्रेजी पुस्तक “दि ग्रेण्डमदर ऑफ रसियन रिवोल्यूशन” का हिन्दी अनुवाद किया।
- बिस्मिल ने शाहजहाँपुर में “भारत सिल्क मैनुफैक्चरिंग कंपनी” में एक प्रबंधक के रूप में कार्य किया। उसके बाद उन्होंने सदर बाजार में बनारसीलाल के साथ रेशमी साड़ियों का व्यापार करना शुरू किया।
- वर्ष 1921 में, उन्होंने अहमदाबाद कांग्रेस अधिवेशन में पूर्ण स्वराज के प्रस्ताव पर मौलाना हसरत मोहनी का भरपूर समर्थन किया था। जिसके चलते पूर्ण स्वराज को पारित किया गया।
- वर्ष 1922 में, चौरीचौरा कांड के पश्चात किसी से परामर्श किए बिना ही जब महात्मा गांधी जी ने असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया था, तब गया कांग्रेस में बिस्मिल व उनके साथियों द्वारा गांधी जी का ऐसा विरोध किया गया कि कांग्रेस दो विचारधाराओं में बंट गई – एक उदारवादी या लिबरल और दूसरी विद्रोही या रिबेलियन।
- 6 अप्रैल 1927 को विशेष सेशन जज ए० हैमिल्टन ने 115 पृष्ठ के निर्णय में प्रत्येक क्रान्तिकारी पर लगाए गए आरोपों पर विचार करते हुए लिखा कि यह कोई साधारण ट्रेन डकैती नहीं, अपितु ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ फेंकने की एक सोची समझी साजिश है। हालाँकि इनमें से कोई भी अभियुक्त अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए इस योजना में शामिल नहीं हुआ, बल्कि ब्रिटिश साम्राज्य को ध्वस्त करने के लिए शामिल हुआ।
- उन्हें मैनपुरी षड्यन्त्र और काकोरी कांड में दोषी पाते हुए सेशन जज ए० हैमिल्टन ने फांसी की सजा सुनाई।
- 16 दिसम्बर 1927 को बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा के आखिरी अध्याय (अन्तिम समय की बातें) को पूर्ण करके जेल से बाहर भिजवा दिया।
- 18 दिसम्बर 1927 को राम प्रसाद की अपने माता-पिता से अन्तिम मुलाकात हुई और सोमवार 19 दिसम्बर 1927 को प्रात:काल 6 बजकर 30 मिनट पर उनको गोरखपुर जेल में फाँसी दे दी गई।
- उनका अंतिम संस्कार राप्ती नदी के किनारे राजघाट पर हुआ।
- बिस्मिल की अन्त्येष्टि के बाद बाबा राघव दास ने गोरखपुर के पास स्थित देवरिया जिले के बरहज नामक स्थान पर ताम्रपात्र में उनकी अस्थियों को संचित कर स्मृति-स्थल बनवाया।
- आजादी के इस संघर्ष में राम प्रसाद बिस्मिल में क्रांतिकारीयों में एक नई उमंग भरने के लिए एक देश भक्ति गीत लिखा।
- ग्यारह वर्ष के क्रान्तिकारी जीवन में उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं। जिनमें से ग्यारह पुस्तकें उनके जीवन काल में प्रकाशित हुई थीं, जिन्हे ब्रिटिश राज में ज़ब्त कर लिया गया था। स्वतन्त्र भारत में काफी खोजबीन के पश्चात् उनकी लिखी हुई प्रामाणिक पुस्तकें इस समय पुस्तकालयों में उपलब्ध हैं।
- 19 दिसंबर 1997 को, भारत सरकार द्वारा राम प्रसाद बिस्मिल के जन्मदिवस की वर्षगांठ पर एक स्मरणीय डाक टिकट को जारी किया गया था।
- भारत सरकार द्वारा राम प्रसाद बिस्मिल की याद में उत्तर रेलवे में “पंडित राम प्रसाद बिस्मिल रेलवे स्टेशन” को स्थापित किया गया।
- वर्ष 2010 में, निर्देशक विनोद गणात्रा ने राम प्रसाद बिस्मिल के जीवन पर एक फिल्म बनाई।
One Response
अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल का परिचय लेख अति उत्साहित और भावी पीढ़ी को देश भक्त बनने को प्रेरित करने वाला है।
रामप्रसाद बिस्मिल तंवर तोमर वंश के क्षत्रिय थे न कि ब्राह्मण।
उनका पैतृक गांव मध्य प्रदेश के जिला मुरैना का गांव बरबई है और उनके वंशज आज भी निवास कर रहे है ।
अतः शहीद की वास्तविक देश वासियों को देना हमार फर्ज ही नहीं कर्त्तव्य भी है। संशोधन करने की कृपा करावे।